प्रधानमंत्री जी! स्पीति में लगातार कम हो रही है मटर की खेती

अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिमाचल प्रदेश के स्पीति क्षेत्र की मटर की तारीफ की थी, लेकिन हकीकत कुछ और है
हिमाचल प्रदेश के शीत रेगिस्तान क्षेत्र स्पीति में इन दिनों हरी मटर की पैदावार होती है। फोटो: रोहित पराशर
हिमाचल प्रदेश के शीत रेगिस्तान क्षेत्र स्पीति में इन दिनों हरी मटर की पैदावार होती है। फोटो: रोहित पराशर
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अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिमाचल प्रदेश के स्पीति क्षेत्र की मटर की तारीफ की थी, लेकिन हकीकत यह है कि इस क्षेत्र के किसान जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ सिंचाई के पानी के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं।  

समुद्र तल से 3,000 से 4,500 मीटर की ऊंचाई पर बसे 'शीत रेगिस्तान' के नाम से स्पीति क्षेत्र को जाना जाता है। यहां रह रहे लोग पूरी तरह से बर्फबारी पर निर्भर हैं। लेकिन साल-दर-साल बर्फबारी कम हो रही है और साथ ही साथ जिन ग्लेशियर से उनको पानी मिलता था, वे भी तेजी से पिघल रहे हैं।

2021-22 की सर्दियों में भी स्पीति क्षेत्र में बर्फबारी बहुत कम हुई, जिसकी वजह से समुद्र तल से 3,500 मीटर से ऊंचाई वाले लांगचा, हिक्किम, कॉमिक, डेमूल, टशीगंग, चिच्चम और डंखर जैसे इलाकों में किसानों के खेतों में नमी बहुत कम थी।

स्पीति में ज्यादातर मटर और जौ की ही खेती की जाती है। नमी कम होने की वजह से किसानों ने पूर्व में की जाने वाली खेती के मुकाबले बहुत कम भूमि पर बीजाई की थी और जो बीज किसानों ने लगाया था वह ठीक ढंग से नहीं उगा और जो उगा उसमें सिंचाई के पानी की कमी की वजह से उचित पैदावार नहीं हो पाई।

इस वजह से साल भर में केवल एक फसल लेने वाले किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। लगभग 50 बीघा भूमि में खेती करने वाली स्पीति के लिदांग गांव की येशे डोलमा ने डाउन टू अर्थ का बताया कि पहले उनका परिवार 50 बीघा में फसलें लगाता था, लेकिन पानी की कमी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। इस बार तो सिंचाई का पानी न मिलने के कारण हमने केवल 4 बीघा भूमि में ही मटर और अन्य फसलें लगाई थी।

येशे बताती हैं कि इतने क्षेत्र में भी वो तब फसलें लगा पाई, क्योंकि उन्होंने सर्दियों में लेह में बनाए जाने वाले आईस स्तूप की तरह अपने गांव में पानी के स्रोत के पास आईस स्तूप बनाया था। उनके गांव में लगभग 200 बीघा के करीब कृषि भूमि है जिसमें से इस बार केवल 40-50 बीघा भूमि में ही बीज लगाया गया था।

उन्होंने बताया कि अब हमारे यहां खेती करना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। किसानों को नुकसान बढ़ता जा रहा है।

4,587 मीटर ऊंचाई पर बसे कॉमिक गांव के नंबरदार छेरिंग आंगदूई का कहना है कि हमारे यहां साल में केवल एक फसल ली जाती है, ऐसे में पूरे साल की कमाई उसी फसल पर निर्धारित होती है। इस बार हमारे क्षेत्र के बहुत कम किसानों ने बीजाई की है। जिन किसानों ने बुवाई की भी थी, वहां मटर की फसल उगी ही नहीं। हमारे यहां सिंचाई की व्यवस्था भी नहीं जिससे किसानों को आजीविका को लेकर संकट गहरा गया है।

स्पीति क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग की आत्मा परियोजना के खंड तकनीकी प्रबंधक सुजाता नेगी ने बताया कि बर्फबारी कम होने की वजह से नमी कम थी और ग्लेशियर का पानी कूहलों के माध्यम से समय पर नहीं पहुंच पाया। जिससे अधिक उंचाई वाले क्षेत्रों में किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया कि इस बार पिछले साल के मुकाबले मटर की फसल के किसानों को अच्छे दाम मिले हैं, लेकिन इस बार सूखे का असर भी फसलों में देखने को मिला है।

स्पीति क्षेत्र में जल और जनजातीय मुद्दों को लेकर काम करने वाली संस्था स्पीति सिविल सोसाइटी के अध्यक्ष सोनम तारगे ने बताया कि इस बार सूखे की वजह से स्पीति क्षेत्र के 70 फीसदी किसान प्रभावित हुए हैं।

उन्होंने बताया कि ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सूखे को ज्यादा असर देखने को मिला है और कई किसानों ने तो अपनी पूरी जमीन में पानी की कमी की वजह से बुवाई ही नहीं की है। स्पीति में वैसे तो नदी बहती है, लेकिन सिंचाई की पर्याप्त सुविधा और बिजली की व्यवस्था न होने की वजह से किसानों को आज दिन तक सिंचाई की सुविधा नहीं मिल पाई है। जिससे उनका नुकसान हर साल बढ़ता जा रहा है।

कृषि विज्ञान केंद्र ताबो में सांइटिस्ट और केंद्र के हैड डॉ. सुधीर वर्मा ने बताया कि इस साल स्पीति क्षेत्र के ऊंचाई वाले इलाकों में पानी की कमी की वजह से किसानों को मुश्किलों को सामना करना पड़ा है। यहां के किसानों की फसलें पानी की कमी की वजह से कम हुई हैं। लेकिन जो कम ऊंचाई वाले क्षेत्र हैं वहां के किसानों ने दो फसलें भी ली हैं।

प्रधानमंत्री ने क्या कहा था?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पीति का जिक्र करते हुए कहा था-  स्पीति एक जनजातीय क्षेत्र है। यहां इन दिनों मटर तोड़ने का काम चलता है। पहाड़ी खेतों पर ये एक मेहनत भरा और मुश्किल काम होता है। लेकिन यहां, गांव की महिलाएं इकट्ठा होकर, एक साथ मिलकर, एक-दूसरे के खेतों से मटर तोड़ती हैं। इस काम के साथ-साथ महिलाएं स्थानीय गीत ‘छपरा माझी छपरा’ ये भी गाती हैं। यानी यहां आपसी सहयोग भी लोक-परंपरा का एक हिस्सा है।

स्पीति में स्थानीय संसाधनों के सदुपयोग का भी बेहतरीन उदाहरण मिलता है। स्पीती में किसान जो गाय पालते हैं, उनके गोबर को सुखाकर बोरियों में भर लेते हैं। जब सर्दियाँ आती हैं, तो इन बोरियों को गाय के रहने की जगह में, जिसे यहाँ खूड़ कहते हैं, उसमें बिछा दिया जाता है।

बर्फबारी के बीच, ये बोरियाँ, गायों को, ठंड से सुरक्षा देती हैं। सर्दियाँ जाने के बाद, यही गोबर, खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यानी, पशुओं के वेस्ट से ही उनकी सुरक्षा भी, और खेतों के लिए खाद भी। खेती की लागत भी कम, और खेत में उपज भी ज्यादा। इसीलिए तो ये क्षेत्र, इन दिनों, प्राकृतिक खेती के लिए भी एक प्रेरणा बन रहा है।

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