मध्य प्रदेश में गेहूं की पराली में आग और ग्रीष्मकालीन मूंग का कनेक्शन

ग्रीष्मकालीन मूंग का प्रमुख उत्पादक होशंगाबाद जिला कई साल से गेहूं की पराली में सर्वाधिक आग लगाने वाले जिलों में शामिल है
फोटो : आईस्टॉक
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मध्य प्रदेश में पराली (नरवाई) में आग की घटनाओं को देखते हुए प्रशासन ने सख्ती बरतनी शुरू कर दी है। इंदौर कलेक्टर कार्यालय ने सोशल मीडिया के माध्यम से बताया है कि केवल 16 अप्रैल को ही प्रशासन ने 102 किसानों के विरुद्ध मामले दर्ज कर 3 लाख रुपए से अधिक का जुर्माना लगाया है। इंदौर में अब तक पराली में आग लगाने के लिए 770 किसानों के खिलाफ कार्रवाई की गई है और कुल 16.71 लाख रुपए का अर्थदंड लगाया गया है।

नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोईकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (सीआरईएएमएस) के डैशबोर्ड के अनुसार, मध्य प्रदेश में इस साल अब तक 14,118 गेहूं की पराली में आग की घटनाएं हुई हैं। ग्रीष्मकालीन मूंग के बढ़ते चलन को इन घटनाओं की बड़ी वजह बताया जा रहा है।

सीआरईएएमएस के अनुसार, इंदौर में पराली में आग की 1,240 घटनाएं रिकॉर्ड की गई हैं और वह मध्य प्रदेश के विदिशा, होशंगाबाद (नर्मदापुरम), उज्जैन और उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर के बाद पराली में आग के मामले में पांचवे स्थान पर है।     

इंदौर प्रशासन का कहना है कि नरवाई में आग के खिलाफ कार्यवाही आने वाले दिनों में भी जारी रहेगी। यह भी कहा गया है कि दो एकड़ तक की भूमि वाले किसानों को नरवाई जलाने पर पर्यावरण क्षति के रूप में 2,500 रुपए प्रति घटना के मान से आर्थिक दंड भरना होगा। जिसके पास 2 से 5 एकड़ तक की भूमि है तो उनको नरवाई जलाने पर पर्यावरण क्षति के रूप में 5 हजार रुपए प्रति घटना और जिसके पास 5 एकड़ से अधिक भूमि है तो उनको 15 हजार प्रति घटना के मान से आर्थिक दंड भरना होगा।

"कार्रवाई गलत"

प्रशासन की इस कार्रवाई को गलत बताते हुए क्रांतिकारी किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष लीलाधर राजपूत कहते हैं कि आग की घटनाओं के कई कारण हैं। बहुत सी आग गर्मी, बिजली गिरने और बिजली के तारों की वजह से भी लगती हैं। उनका कहना है कि आग की सभी घटनाओं के लिए किसानों को दोष देना ठीक नहीं है।

वह कहते हैं कि किसान परिस्थितियों का मारा है। उसे गेहूं और धान से कुछ हासिल नहीं हो रहा है। इसलिए नुकसान की भरपाई और बोनस के तौर पर ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती करता है और खेतों को जल्द तैयार करने के लिए बहुत से किसानों को मजबूरन गेहूं की पराली में आग लगानी पड़ती है।

लीलाधर कहते हैं कि वह पराली में आग का समर्थन नहीं करते लेकिन सरकार ने किसानों के पास कोई विकल्प नहीं छोड़ा है। पराली के प्रबंधन या उसके वैकल्पिक उपयोग के लिए सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है।

मूंग की खेती

मध्य प्रदेश के उन जिलों में गेहूं की पराली में आग की अधिक घटनाएं दर्ज हो रही हैं जहां जायद फसल के रूप में मूंग की खेती का चलन बढ़ा है। इनमें मुख्य रूप से होशंगाबाद (नर्मदापुरम), रायसेन, देवास, विदिशा, हरदा और सीहोर जिले शामिल हैं।

लीलाधर कहते हैं कि मध्य प्रदेश के जिन जिलों में पानी की उपलब्धता है, अब वहां ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती जोर पकड़ रही है, लेकिन सबसे व्यापक स्तर पर होशंगाबाद में इसकी खेती हो रही है। पिछले 10 वर्षों के दौरान नहर से पानी मिलने पर लगभग सभी  किसान तीसरी फसल के रूप में मूंग की खेती करने लगे हैं। वह कहते हैं कि नहर में मई तक पानी रहता है, जिससे मूंग की सिंचाई की मुख्यत: हो जाती है। होशंगाबाद पिछले चार साल में दो बार (2022-2023) गेहूं की पराली में आग के मामले में पहले और दो बार पहले तीन जिलों में शामिल रहा है।       

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