टिड्डी दल राजस्थान के बाद मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के कई जिलों में फैल चुका है जिसके बाद इससे सटे राज्य छत्तीसगढ़ पर खतरा बढ़ गया है। छत्तीसगढ़ कृषि विभाग के मुताबिक टिड्डी का एक बड़ा दल प्रदेश के पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के सीमावर्ती जिले सिंगरौली में 27 मई की सुबह देखा गया। इस समय टिड्डी दल छत्तीसगढ़ से तकरीबन एक दिन की दूरी पर है और हवा का बहाव किसी भी दिशा में होने की स्थिति में राज्य में दल का हमला हो सकता है। मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ में महाराष्ट्र के अमरावती और नागपुर की ओर से टिड्डी दल के कबीरधाम जिला पहुंचने का भी खतरा है। छत्तीसगढ़ में अगर टिड्डी दल का हमला होता है तो राज्य के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा।
कृषि विभाग को केन्द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केन्द्र (इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट), रायपुर से मिले पत्र के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य के सीमावर्ती जिले कोरिया, सूरजपुर और बलरामपुर की ओर से टिड्डी दल छत्तीसगढ़ राज्य में प्रवेश कर सकता है। कृषि विभाग के संचालक टामन सिंह सोनवाली ने बताया कि सभी कलेक्टरों को आपदा प्रबंधन मद से टिड्डी दल के नियंत्रण के लिए इंतजाम करने को कहा है। राज्य सरकार ने जिला स्तर पर कंट्रोल रूम बनाने के निर्देश दिए हैं। राज्य ने किसानों के लिए टोल फ्री नंबर 18002331850 जारी किया है जिसपर टिड्डी दल की स्थिति की जानकारी दी जा सके। छत्तीसगढ़ में इस समय दलहन और तिलहन फसलें लगी हुई हैं जिसे टिड्डी दल से काफी नुकसान हो सकता है।
पारंपरिक उपाय से लेकर रासायन छिड़काव तक की सलाह
विभाग ने अपनी सलाह में कहा है कि टिड्डी दल जब भी समूह में खेत के आसपास आकाश में उड़ते दिखाई दे, तो उनको उतरने से रोकने के लिए तुरंत खेत के आसपास मौजूद घास-फूस को जलाकर धुंआ करना चाहिए। इससे टिड्डी दल खेत में न बैठकर आगे निकल जाएगा। सलाह में आगे कहा गया है कि टिड्डी दल के दिखाई देते ही लाउड स्पीकर या डीजे से आवाज कर उनको अपने खेत में न बैठने दें। अपने खेत में पटाके फोड़कर, थाली बजाकर, ढोल नगाड़े बजाकर, शोरगुल करने से टिड्डी दल आगे निकल जाता है। इसी तरह ट्रेक्टर के साइंलेसर की तेज ध्वनि की जा सकती है। कल्टीवेटर या रोटावेटर चलाकर टिड्डी को तथा उसके अड्डे को नष्ट किया जा सकता है। किसी भी क्षेत्र से टिड्डी दल को भगाने के लिए ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से सुबह के समय में शोरगुल भी कारगर हो सकता है।
रसायन के छिड़काव को लेकर विभाग की सलाह है कि टिड्डी दल शाम को 6 से 7 बजे के आसपास जमीन में बैठ जाता है और सुबह 8 से 9 बजे के करीब उड़ता है। रासायनिक यंत्रों के लिए इस अवधि में इनके ऊपर ट्रेक्टर चलित स्पेयर की मदद से कीट नाशक दवाइयों का छिड़काव करके इनको मारा जा सकता है। दवाओं का छिड़काव का सबसे उपयुक्त समय रात 11 बजे से सुबह 8 बजे तक होता है। टिड्डी के नियंत्रण के लिए डाईफ्लूबेनज्यूरान 25 प्रतिशत घुलनशील पावडर 120 ग्राम या लैम्बडा-साईहेलोथ्रिन 5 प्रतिशत ईसी 400 मिली या क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी 200 मिली प्रति हेक्टेयर कीटनाशक का छिड़काव किया जाना चाहिए।