पाकिस्तान से घुसे टिड्डी दलों का हमला, चट कर रहे हैं फसल

राजस्थान के बाड़मेर व जैसलमेर पर टिड्डी दल रोजाना हमले कर रहे हैं, जिन्हें प्रशासन काबू करने का प्रयास कर रहा है
Photo: Creative commons
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प्रेम सिंह राठौड़

राजस्थान में एक बार फिर टिड्डी दल का हमला मंडरा रहा है एवं इसका प्रभाव अब पश्चिम राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर जिले में देखने को मिल रहा है। वैसे टिड्डी दल का हमला कुछ नया नहीं है इस क्षेत्र में पहले भी टिड्डी दल ने किसानों को काफी नुकसान पहुंचाया है, लेकिन पहले संसाधनों की कमी के करण को नियंत्रण करना बड़ा कठिन होता था पर आज संसाधनों की उपलब्ध है और अथक प्रयास कर इसको नियंत्रण किया जा सकता है।

राजस्थान में मई माह में रामेदवरा, लोहारकी, सादा ग्राम पंचायत क्षेत्र के विभिन्न गांवों में पड़ाव डाला था, लेकिन समय रहते प्रशासन ने इसको नियंत्रण कर लिया। करीब एक पखवाडे तक कड़ी मेहनत करने के बाद टिड्डी प्रतिरक्षा एवं नियंत्रण व कृषि विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों  ने कीटनाशक का छिड़काव कर उस पर नियंत्रण करने में कामयाबी हासिल की, लेकिन एक माह बाद फिर जैसलमेर और बाड़मेर के कुछ स्थानों पर एक बार फिर टिड्डी दल नजर आया है। जो लाठी क्षेत्र के मोहनगढ़, फतेहगढ़ अड़वाला क्षेत्र में सक्रिय हो जाने के कारण किसानों की चिंता बढ़ गई है।

जून के अंतिम सप्ताह में इस दल ने भादरिया गांव के आस पास बड़ी संख्या में पड़ाव डाला, जब सुबह उठकर ग्रामीणों ने देखा, तो बड़ी संख्या में टिड्डी दल जमीन पर रेंगते व पेड़ पौधा को नष्ट करते नजर आए। जो दस सेे पंद्रहा किलोमीटर के दायर में फैला हुआ है। इसको नियंत्रण करने के लिये टिड्डी प्रतिरक्षा एवं नियंत्रण तथा कृषि विभाग के अधिकारी व कार्मिक मौके पर पहुंच कर नियंत्रण का प्रयास कर रहे है।  जहां-जहां उनका पड़ाव है वहां कीटनाशक का छिड़काव किया जा रहा है।

जैसलमेर के लाठी क्षेत्र में नलकुप बाहुल्य क्षेत्र है। जो लाठी, लोहटा रतन की बस्ती, धोलिया एवं आसपास क्षेत्र के कई गांवों में बड़ी संख्या में नलकूपों है जहां पर प्याज व अन्य फसलें खड़ी है। क्षेत्र में टिड्डी दल के आ जाने से किसानों की चिंता बढ़ गई। यदि समय रहने टिड्डी दल को नियंत्रित नहीं किया गया तो इसका असर खरीफ की फसल की बुआई पर भी पड़ने वाला है क्योंकि यह समय राजस्थान में खरीफ के फसल बुआई का है, अगर इस टिड्डी दल पर नियत्रंण नहीं किया गया तो यह यहां अंकुरित होते ही सफाया कर देंगे। कृषि विशेषज्ञों की माने तो एक टिड्डी दल अपने वजन के बराबर प्रतिदिन वनस्पति चट कर जाती है। एक छोटा सा टिड्डी दल भी एक दिन में करीब तीन हजार इंसानों के भोजन जितनी खाद्य सामग्री खा जाता है। छोटे से छोटे टिड्डी दल में भी करोड़ों की संख्या में टिड्डी होती है।

पाकिस्तान एवं अरब देशों की नाकामी का नुकसान उठाना पड़ता है राजस्थान के सीमावर्ती जिलों को अक्सर यह देखा गया है टिड्डी दल का जब भी हमला होता है वह पाकिस्तान से होता है। पाकिस्तान इनको रोकने के कारगर कदम नहीं उठाती, इसके चलते यह सीमा रेखा पार कर हिदुस्तान पर धावा बोल देता है। इससे पहले 1998 और 1993 में भी टिड्डी दल ने पश्चिमी राजस्थान के कई जिलों में धावा बोला और फसल को तबाह कर दिया था। 1993 में इसका असर बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, गंगानगर, जोधपुर, पाली, जालौर जिलों में बड़ा असर देखने को मिला था, इसके साथ गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब में भी काफी नुकसान पहुंचाया था। उस वक्त सितम्बर, अक्टूबर माह में टिड्डी दल ने हमला बोला था और उस वक्त खरीफ की फसल पकी हुई थी और रबी की तैयारी चल रही थी, तो किसानों को दोहरा नुकसान उठाना पड़ा था।

सरकार कर रही है नियंत्रण का प्रयास

इस बार सरकार टिड्डी दल को नियंत्रण का प्रयास कर रही है ओर इसके लिए टिड्डी प्रतिरक्षा एवं नियंत्रण तथा कृषि विभाग संयुक्त रूप से प्रयास कर रहे है। हाल ही में सरकार ने हमले के बढ़ने की आशंका को देखते हुए चुरू और बीकानेर से टिड्डी प्रतिरक्षा एवं नियंत्रण को जैसलमेर बुलाया है, ताकि इस दल को आगे बढ़ने से रोका जा सके और इसके प्रभाव को कम किया जा सके।

उप-निदेशक, कृषि राधेश्याम नरवाल ने बताया कि अभी जैसलमेर के कुछ हिस्सों में इसका प्रभाव है और इसको लगातार नियंत्रण का प्रयास किया जा रहा है। हम लोग ग्रामीणों से लगातार सम्पर्क बनाये हुये है ताकि हमें सटीक सूचना मिल सके और हम समय पर उनका नियंत्रण कर सकते है। नरवाल ने बताया कि दिन में इनका छितराव हो जाता है, लेकिन जब शाम को यह एक एक जगह एकत्रित होते है तो छिड़काव में आसानी होती है और जल्दी नियंत्रण किया जा सकता है। इसलिए शाम और सवेरे छिड़काव करके नियंत्रण का प्रयास किया जा रहा है। हम ज्यादा से ज्यादा सूचना एकत्रित कर टिड्डी प्रतिरक्षा एवं नियंत्रण कक्ष को  देते हैं, ताकि वे जल्द से जल्द उस पर नियंत्रण कर सकें।

पौधा संरक्षण, टिड्डी प्रतिरक्षा एवं नियंत्रण विभाग के राजेश कुमार ने बताया कि करीब 6000 हेक्टेयर क्षेत्र में इसका असर है, जिसको लगातर नियंत्रण किया जा रहा है। प्रतिदिन चार से पांच दल पाकिस्तान से भारत में आ जाते हैं, हम उसको वहीं नियंत्रण कर रहे हैं। इसके लिए मिथेल एवं अल्वा मॉव का छिड़काव कर उनको नियंत्रण किया जा रहा है। एक लीटर मिथेल से करीब एक हेक्टेयर पर छिड़काव कर नियंत्रण किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के सिंध प्रांत में भी टिड्डी नियंत्रण कक्ष बना हुआ है। वहां से हमारा सम्पर्क है और कुछ समय पहले एक प्रतिनिधिमंडल के साथ बाड़मेर में बैठक हुई थी। पाकिस्तान के प्रतिनिधित्व ने बताया कि सिंध प्रांत में इसका बड़ा प्रभाव है। जहां हवाई स्प्रे भी करवाया गया है, लेकिन उनके झुंड लगातार आ रहे हैं, इसके चलते पूरी तरह नियंत्रित नहीं हो पा रहा है। राजेश कुमार ने बताया कि टिड्डी काफी लम्बे समय से अरब देश में सक्रिय है। वहां भी उनको रोकने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन उसके बावजूद ईरान, अमान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान होते कुछ दल भारत तक पहुंच गये हैं।

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