एमएसपी की कानूनी गारंटी- खाद्य सुरक्षा और किसान की जीवन रेखा

एमएसपी की कानूनी गारंटी- खाद्य सुरक्षा और किसान की जीवन रेखा

एमएसपी की कानूनी गारंटी देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ बाजारी मुद्रास्फीति को भी नियंत्रित करेगी, जिससे किसानों को बिचौलियों के शोषण से बचाया जा सकेगा
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न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की अनुशंसा केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। इसका उद्देश्य किसानों को उनकी कृषि उपज के लिए न्यूनतम लाभकारी मूल्य दिलाना, बाजार में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करके उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

एमएसपी की शुरुआत 1966-67 में की गई थी, जब भारत में खाद्य पदार्थों की भारी कमी थी। तब सरकार ने घरेलू खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने के लिए महंगी सघन 'हरित क्रांति प्रौद्योगिकी' रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के साथ गेहूं और चावल की उन्नत बौनी किस्मों के बीज, बेहतर सिंचाई प्रणाली, मशीनीकरण को प्रोत्साहन दिया। जिससे बढ़ी कृषि लागत की भरपाई के लिए सरकार ने किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की वित्तीय सहायता की गारंटी दी। जिसके परिणाम स्वरूप खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हुई और भारत की खाद्य सुरक्षा और खाद्यान में आत्मनिर्भरता सुरक्षित हुई।

एमएसपी के समुचित कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप ही पंजाब और हरियाणा जैसे अर्ध-शुष्क क्षेत्र राज्यों में भूजल सिंचाई के सहारे सघन कृषि प्रौद्योगिकी को अपनाया गया, जिससे मुख्य अनाज फसलों (गेहूं व चावल) की उच्च उत्पादकता 5 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर से अधिक दर्ज की गई, जो इन दोनों फसलों की वार्षिक उत्पादकता 10- 12 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर बनती है। यह राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी है और विश्व स्तर पर भी उच्चतम श्रेणी में आती है।

पिछले दशक के दौरान एमएसपी व्यवस्थाओं को प्रभावशाली ढंग से अपनाकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ ने भी इसी तरह की उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है। इस प्रकार, एमएसपी नीति ने कृषि में बेहतर तकनीक को अपनाने को सुनिश्चित किया जिससे देश में वर्ष 1960 की तुलना में अब गेहूं का उत्पादन 10 गुना और चावल का 4 गुना बढ़ गया।

इसी दौरान उच्च उत्पादकता सघन कृषि प्रौद्योगिकी उपलब्ध होने के बावजूद तिलहन, दलहन और मोटे अनाज वाली फसलों के क्षेत्र और उत्पादन में कमी आई, क्योंकि इन फसलें की खेती प्रभावशाली एमएसपी व्यवस्था के अभाव में किसानों के लिए अलाभकारी साबित हुईं।

खाद्य सुरक्षा आत्मनिर्भरता भारत के स्थायित्व और सम्मान का विषय है। एमएसपी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ खुले बाजार में कीमतों को नियंत्रित करने के लिए हस्तक्षेप तंत्र भी साबित हुआ है। आयात द्वारा खाद्य सुरक्षा कतर, बहरीन आदि जैसे कम आबादी और मजबूत औद्योगिक - आर्थिक आधार वाले देशों के लिए एक व्यवहार्य मॉडल हो सकता है।

वर्ना ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका प्रतिस्पर्धी कीमतों पर दुनिया के बाकी देशों के लिए गेहूं का उत्पादन और निर्यात कर सकते हैं, लेकिन तब कृषि गतिविधियों में संलग्न भारतीयों सहित दुनिया की आधी आबादी बेरोजगार हो जाएगी। शुल्क मुक्त आयात के सहारे सस्ते पाम तेल के भारी मात्रा में आयात की पक्षपातपूर्ण सरकारी नीति ने भारत में तिलहन किसानों और खाद्य तेलों के उद्योगों के हितों के लिए हानिकारक साबित हुई।

इस प्रकार कृषि को बहुराष्ट्रीय कंपनियों और साधन संपन्न देशों के विश्व-मुक्त व्यापार शासन का विषय नहीं बनाना चाहिए। क्योंकि कृषि सभी मानव संस्कृतियों की जननी हैं, जो सभी देशों के मूल समाज और निवासियों की पहली सामाजिक और व्यावसायिक गतिविधि है, जो उनके अस्तित्व और रोजगार के लिए बहुत आवश्यक है।

स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग ने वर्ष-2006 में एमएसपी के सुधार व बेहतर गणना के लिए की गई सिफारिश ‘एमएसपी कुल औसत लागत (सी-2 लागत) से कम से कम 50% अधिक होना चाहिए’ को लागू नहीं करके सरकार खुद किसानो का शोषण कर रही है, क्योंकि सरकार किसान से कुल लागत से कम पर अनाज ख़रीद रही है।

फिर एमएसपी गारंटी कानून नहीं बनाकर सरकार ने बिचोलियों को भी किसानों का शोषण करने की खुली छूट दे रखी है। जो किसानों के कृषि उत्पादन को घोषित एमएसपी से कम दामों पर ख़रीदते है। एमएसपी कानूनी गारंटी के अभाव में देश में उत्पादित कृषि फसलें 90 प्रतिशत से अधिक उत्पादन को बिचोलिये एमएसपी मूल्यों से 20 से 50 प्रतिशत कम कीमतों पर खरीदते हैं, जिससे किसानों को प्रति एकड़ औसतन 20-30 हजार रुपये और देश के किसानों को लगभग 15-20 लाख करोड़ रुपये वार्षिक का नुकसान होता है।

बिचौलियों द्वारा एमएसपी से कम पर कृषि उत्पादन खरीदने का उपभोक्ता को कोई लाभ नहीं मिल रहा है, क्योंकि उपभोगता के लिए खुदरा खुले बाजार में कृषि उत्पादकों के दाम, हमेशा एमएसपी दाम से 50 प्रतिशत ज्यादा ही रहते हैं, यानि एमएसपी गारंटी कानून नहीं बनाने की पक्षपाती सरकारी नीतियों के कारण भारतीय कृषि उत्पादन बाजार का सारा लाभ बिचोलिये खा रहे हैं।

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल रिलेशंस-ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कॉपरेशन एंड डेवलमेंट (आईसीआरआईईआर-ओईसीडी) का अध्ययन बताता है कि खेती की कीमतों को कृत्रिम रूप से कम रखने की पक्षपाती सरकारी नीतियों के कारण भारतीय किसान वर्ष 2000 के बाद से लगातार घाटा उठा रहे हैं, जिसने किसानों को लगातार गरीबी रेखा से नीचे रखा हुआ है।

इस रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि पक्षपातपूर्ण सरकारी नीतियों के कारण कम कृषि कीमतों के कारण भारतीय किसानों को अकेले वर्ष-2022 में 14 लाख करोड़ रुपये (169 बिलियन अमेरिकी डॉलर) और 2000-2017 के दौरान 2017 की कीमतों पर 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इन पक्षपाती सरकारी नीति आधारित शोषण के कारण ही किसान आत्महत्याएं करने को मजबूर हैं।

एमएसपी पर केवल सार्वजनिक खरीद की बजाय, इस बारे व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि एमएसपी मूल रूप से भारत की खाद्य सुरक्षा और किसानों की जीवन रेखा सुनिश्चित करने के लिए एक मूल्य गारंटी तंत्र है, जिसे सरकार और बाजार दोनों द्वारा सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

एमएसपी को कानूनी गारंटी बनाने के लिए एपीएमसी अधिनियम में आवश्यक संशोधन द्वारा एक खंड को शामिल करने की आवश्यकता है कि 'एपीएमसी मंडियों में कृषि उपज की नीलामी घोषित एमएसपी कीमतों से कम पर करने की कानूनी अनुमति नहीं है'।

एमएसपी कानूनी गारंटी लागू करने व संचालन पर अनेक आशंकाएं व्यक्त की जा रही है कि
1. कृषि उपज की अधिकांश बिक्री एपीएमसी मंडियों में नहीं होती है;
2. व्यापारी कृषि उपज की खरीद का बहिष्कार कर सकते हैं;
3. सरकार के पास खरीदे गए कृषि उपज को खरीदने, भंडारण करने, विपणन करने के लिए भौतिक और आर्थिक संसाधन नहीं हैं आदि ।

प्रशासनिक और व्यापारिक समुदायों के निहित स्वार्थी पैरवीकारों द्वारा प्रचारित यह सभी आशंकाएं तर्कहीन हैं। क्योंकि भारत में घरेलू मांग के मुकाबले गेहूं और चावल के उत्पादन में मामूली अधिशेष है, जबकि तिलहन, दालों और अन्य फसलों के उत्पादन में अभी बहुत कमी है।

देश में 2022 में गेहूं की घरेलू खपत मांग लगभग 103 मिलियन मीट्रिक टन और चावल की 109 मिलियन मीट्रिक टन थी। फरवरी-2022 के दौरान तापमान में अचानक हुई वृद्धि के कारण गेहूं उत्पादन में गिरावट के प्रभाव से भारत सरकार को मई-2022 में गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

मॉनसून की अनिश्चितता के कारण खरीफ सीजन-2023 के दौरान धान के रोपण क्षेत्र में कमी के मद्देनजर स्थानीय आपूर्ति बढ़ाने के प्रयास में, चावल के निर्यात पर भी रोक लगा दी गई। इसलिए व्यापारियों द्वारा एमएसपी कानूनी व्यवस्थाओं में कृषि उपज का संभावित बहिष्कार एक कुतर्क है, क्योंकि कृषि उपज की मांग के मुकाबले खाद्य पदार्थों की आपूर्ति कम है और आयात सरकारी नीति पर निर्भर करेगा।

अगर व्यापारी सरकारी नीति के विरोध में कृषि उपज की खरीद का बहिष्कार करेंगे , सरकार उनको आयात की अनुमति क्यों देगी। जो इन तथ्यों से भी साबित होता है कि वर्ष-2023 के लिए निर्धारित 44.4 मिलियन मीट्रिक टन के लक्ष्य के विरुद्ध सरकार केवल 26 मिलियन मीट्रिक टन गेंहूं ही खरीद पाई है और सरकार ने घरेलू बाज़ार में दाम नियंत्रित करने के लिए गेहूं निर्यात, भण्डारण सीमा जैसी अनेक पाबंदियाँ व्यापारिक समुदायों पर लगाई।

भारत जैसे देश में जो पांच ट्रिलियन डालर यानि 415 लाख करोड़ रुपये वार्षिक की अर्थव्यवस्था के दावे और उद्योगपतियों के 20-25 लाख करोड़ कर्ज माफी सरकार कर रही हो, किसानों को बिचोलियों के शोषण से बचाने और खाद्य सुरक्षा के लिए एमएसपी गारंटी कानून बनने से देश की अर्थव्यवस्था के चरमराने के बचकने दावे निहित स्वार्थी पैरवीकार ही कर सकते है।

सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 60 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक धान (राष्ट्रीय विपणन योग्य अधिशेष का 65%) और 26 मिलियन मीट्रिक टन गेहूं की खरीद के लिए किसानों को 2.26 करोड़ रुपये से अधिक हस्तांतरित किए गए।

इसके अलावा, भारत 2022-23 में 1.38 लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल और 20 हजार करोड़ रुपये की दालों का आयात करता है, यानि भारत पहले से ही कृषि उपज की सरकारी खरीद और आयात आदि पर 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर रहा है।

इसलिए, यह दावा कि एमएसपी कानूनी गारंटी भारत के लिए वित्तीय आपदाओं का कारण बनेगी, बिलकुल तर्कहीन हैं क्योंकि 23 फसलों के कुल उत्पादन का एमएसपी मूल्य सरकारी अनुमान के अनुसार लगभग 17 लाख करोड़ रुपये और एसकेएम (संयुक्त किसान मोर्चा) के अनुसार केवल 10 लाख करोड़ रुपये बनता है।

जबकि केवल 70% कृषि उपज विपणन योग्य अधिशेष के रूप में बाजारों में बिकने आती है, और बाकी किसान परिवारों द्वारा घरेलू उद्देश्यों के लिए उपभोग किया जाता है।

इसलिए यदि कभी व्यापारी वर्ग एपीएमसी के बाजारों का पूरी तरह से बहिष्कार भी कर दे तो क्रिसिल के अनुसंधान निदेशक के अनुसार सरकार केवल वह कृषि उत्पादन खरीदेगी जिसके दाम बाजार में एमएसपी से कम पर होंगे, उसके लिए सरकार को केवल 6 लाख करोड़ केंद्रीय निधि की आवश्यकता पड़ेगी। जिसे सरकार उसी वर्ष ख़रीदे हुए कृषि उत्पादन को खुले बाजार में बेचकर या अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात करके वापस प्राप्त कर सकती है।

एमएसपी की कानूनी गारंटी देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ और बाजारी मुद्रास्फीति को भी नियंत्रित करेगी, जिससे किसानों को बिचौलियों से शोषण से बचाया जा सकेगा, जिससे उन्हें बेहतर कृषि उत्पादन प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। इसके अलावा, यह उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए हस्तक्षेप तंत्र के साथ बाजार मुद्रास्फीति के भ्रष्ट हेरफेर को नियंत्रित करेगा, जैसा कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार द्वारा खरीदी गई कृषि उपज को खुले बाजारों में बेचकर नियमित रूप से किया जा रहा है।

एमएसपी कानूनी गारंटी तिलहन और दालों सहित सभी कृषि वस्तुओं में आत्मनिर्भरता के माध्यम से भारत की सदाबहार खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करेगी जो ज़्यादा पानी और संसाधनों की ज़्यादा खपत वाले अनाज फसलों के उत्पादन की तुलना में किसानों के लिए अधिक लाभदायक होगी।

(लेखक डॉ. वीरेंद्र सिंह लाठर, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक (जेनेटिक्स एवं साइटोजेनेटिक) हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके व्यक्तिगत हैं)

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