किसान को मॉनीटर पर दिखेगा कहां नहीं गिरे हैं बीज

वैज्ञानिकों ने सीड ड्रील की नई तकनीक का इजाद किया है जिससे बुआई के दौरान किसान को पता चल जाएगा खेत के किस हिस्से में बीज नहीं गिरा
जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई सीड ड्रिल मशीन। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई सीड ड्रिल मशीन। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
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सीड ड्रील मशीन यानि ट्रेक्टर के पीछे लगने वाला वह यंत्र जिसकी मदद से किसान कम समय में व्यवस्थित रूप से खेत में खाद के साथ बीज गिरा सकता है। हालांकि इस मशीन के साथ एक दिक्कत हमेशा किसानों को होती है, वह है मशीन का चोक हो जाना। ट्रैक्टर की ड्राइविंग सीट पर बैठा किसान, मशीन ने कब काम करना बंद कर दिया इसका अंदाजा नहीं लगा पाता, और खेत में कई स्थानों पर बीज नहीं पड़ते। इस वजह से खेत का हिस्सा कई बार खाली रह जाता है और खेती प्रभावित होती है।

मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थित जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस जरूरत को समझते हुए "उन्नत सीड ड्रिल अवरोध (चोक) सूचक यंत्र" का निर्माण किया और इस यंत्र का पेटेंट कराया। इसका पेटेंट नंबर 232368 है। यह कम खर्चे में तैयार हुई तकनीक है और भारत में इससे पहले ऐसी कोई तकनीक उपलब्ध नहीं थी। इस समस्या के समाधान के लिए विदेशों में कुछ यंत्र हैं लेकिन वे काफी महंगे हैं और किसानों की पहुंच से दूर हैं। 

ट्रैक्टर के ड्राइविंग सीट पर लगा होगा मॉनीटर 

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. पीके बिसेन बताते हैं कि किसानों की तरफ से लगातार ये फीडबैक मिल रहा था कि वे बुआई के समय मशीन चोक हो जाने की वजह से खेत के सभी हिस्सों में समान मात्रा में फसल नहीं बो पा रहे हैं। बिसेन बताते हैं कि इस अनुसंधान की वजह यही रही। जब ड्राइवर ट्रैक्टर चलाता है तो उसे पीछे का कुछ नहीं दिखता। बीज बोने की प्रक्रिया इतनी तेज होती है कि किसी मनुष्य के लिए उसे लगातार मॉनीटर करना काफी मुश्किल काम है। यह काम किसी मशीन को ही करना होगा।  इस मशीन के आने के बाद किसान को बीज अवरोध होने की स्थिति में सामने मॉनीटर पर सिग्नल मिल जाएगा। बड़े स्तर पर प्रोडक्शन करने पर इसकी कीमत में कोई खास अंतर नहीं आएगा।

इस उपकरण की इन्हीं तमाम खूबियों की वजह से भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की वेबसाइट पर भी इसे प्रदर्शित किया गया है। इस होमपेज में चुनिंदा और उत्कृष्ट उपकरणों को ही स्थान दिया जाता है।

डॉ. बिसेन ने कहा कि इस यंत्र के निर्माण के लिए नेशनल एग्रो इंडस्ट्रीज लुधियाना (पंजाब) के साथ कृषि विश्वविद्यालय ने औद्योगिक भागीदारी की है। इस यंत्र का सफल परीक्षण कृषि विश्वविद्यालय के विभिन्न प्रक्षेत्रों में बुआई के लिए किया जा चुका है। इस यंत्र के निर्माण एवं विकास में विश्वविद्यालय के संचालक उपकरण डॉ. एके राय (पीआई) के साथ डॉ. केबी तिवारी (सीओपीआई),  इंजीनियर भारती दास, इंजीनियर प्रेम रंजन,इंजीनियर शुभम साहू एवं एचसी झा का विशेष योगदान रहा है।

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