क्या गेहूं-धान की सरकारी खरीद से बचने के लिए सरकार अपनाने जा रही है नया रास्ता?

भारतीय खाद्य निगम ने गेहूं और धान में नमी की मात्रा कम करने संबंधी प्रस्ताव तैयार किया है, जिससे किसानों की चिंताएं बढ़ गई हैं
हरियाणा के जिला पलवल की होडल अनाज मंडी में धान की नमी दूर करने का प्रयास करते किसान। फोटो: श्रीकांत चौधरी
हरियाणा के जिला पलवल की होडल अनाज मंडी में धान की नमी दूर करने का प्रयास करते किसान। फोटो: श्रीकांत चौधरी
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अप्रैल में रबी की फसलों के मौसम से पहले केंद्र सरकार के एक प्रस्ताव ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। दरअसल केंद्र सरकार, गेहूं और धान की फसलों की सरकारी खरीद से पहले उनमें नमी की मात्रा के पैमानों को बदलना चाहती है।

इसे लेकर फिलहाल उपभोक्ता मामले, खाद्य व सार्वजनिक वितरण मंत्रालय और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के बीच विचार-विमर्श चल रहा है, जो किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खाद्यान्न खरीदता है। मंत्रालय और एफसीआई गेहूं में नमी की वर्तमान मात्रा 14 फीसद को संशोधित कर 12 फीसद और धान में मौजूदा नमी की मात्रा 17 फीसद को 16 फीसदी करना चाहता है।

फिलहाल गेहूं में नमी की आदर्श मात्रा 12 फीसदी है, जो अधिकतम 14 फीसदी तक जा सकती है। हालांकि एफसीआई 12 फीसदी की सीमा से ऊपर भी स्टॉक खरीदती है लेकिन उसे किसानों के लिए तय एमएसपी पर मूल्य में कटौती के साथ खरीदा जाता है। जबकि 14 फीसदी से अधिक नमी वाले स्टॉक को खारिज कर दिया जाता है।

इस मसौदे के प्रस्ताव में सरकार विचार-विमर्श कर रही है कि 12 फीसद से ज्यादा नमी वाले गेहूं के स्टॉक की एमएसपी में कटौती के बाद भी सरकारी खरीद न की जाए। अपना नाम न जाहिर करने वाले एफसीआई के एक अधिकारी के मुताबिक, ‘सरकार का यह कदम उस खाद्यान्न की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए है, जिसे हम सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए खरीद रहे हैं। इस कवायद के पीछे का मकसद यही है।’

हालांकि यह पूछे जाने पर कि क्या यह बदलाव किसी शोध या एफसीआई के उस विश्लेषण के आधार पर किए जा रहे हैं, जिसमें 14 फीसद नमी वाले गेहूं में खामियां पाई गई थीं, अधिकारी ने कहा कि यह बदलाव उससे जुड़ा हुआ नहीं है। उन्होंने कहा कि इन बदलावों को किसी तरह के सुधारात्मक उपायों के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। ये दरअसल गुणवत्ता और सुधार की दिशा में एक प्रगतिशील कदम हैं।

एफसीआई, पंजाब के एक दूसरे अधिकारी ने बताया कि उपभोक्ता मामले, खाद्य व सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने राज्य सरकारों के कृषि विभागों को पत्र लिखकर इन बदलावों पर उनसे टिप्पणी मांगी है। उन्होंने कहा कि जिस फसल में नमी की मात्रा जितनी ज्यादा होती है, उसे लंबे समय तक स्टोर करके रखना उतना ही मुश्किल होता है। मंत्रालय में जिन अन्य प्रावधानों पर चर्चा की जा रही है उनमें गेहूं की फसल में बाहरी पदार्थ को 0.75 फीसदी से घटाकर 0.50 फीसदी और धान में दो फीसदी से घटाकर एक फीसदी करना शामिल है।

कटी हुई फसल में नमी होती है और कम नमी वाले अनाज को लंबे समय तक संरक्षित किया जा सकता है। गेहूं कटने के बाद नमी सोंकता है जबकि धान कटने के बाद नमी खोता है। औसतन कटने के बाद गेहूं की फसल में 15 से 22 फीसद नमी होती है। कटाई के बाद किसान उसे सुखाते हैं, यहां तक कि मंडियों में भी सरकारी खरीद से पहले भी वे उसे सुखाते हैं।

यह पहली बार नहीं है, जब सरकार इस बारे में विचार-विमर्श कर रही है। ऐसे ही एक प्रस्ताव पर पिछले साल मार्च 2021 में चर्चा की गई थी। नमी का मामला किसानों के लिए संवेदनशील रहा है क्योंकि इसके चलते उन्हें सरकारी खरीद में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। उनकी दिक्कत खासतौर से तब और बढ़ जाती है, जब फसल को बारिश का सामना करना पड़ता है। पहले तो कटाई के समय बारिश की वजह से दिक्कत होती है और बाद में मंडियों में सरकारी खरीद से पहले उनका इंतजार बढ़ जाता है।

किसानों का कहना है कि पिछले कुछ सालों से मंडियों में किसी न किसी दिक्कत के चलते सरकारी खरीद में देरी होती रहती है, जिससे किसानों को वहां लंबा इंतजार करना पड़ता है और इसका भी फसल की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।

पटियाला जिले के किसान सुखविंदर सिंह के मुताबिक, ‘मौसम और दूसरे हालात हमारे नियंत्रण में नहीं हैं। पिछले साल टाट की बोरियों की दिक्कत थी, जिसके चलते मुझे मंडियों में सरकार द्वारा फसल की खरीद के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ा और फिर बारिश भी हुई, इसलिए गेहूं में नमी की मात्रा बढ़ गई और फिर मुझे इसे एमएसपी से नीचे बेचना पड़ा।’

किसान इस बदलाव की प्रक्रिया को सरकार के उस कदम के रूप में देख रहे हैं, जिसमें वह धीरे- धीरे अपने को सरकारी खरीद और एमएसपी की गारंटी से अलग कर रही है।
गुरदासपुर जिले के एक प्रगतिशल किसान जीएस बाजवा के मुताबिक, जब सरकार पंजाब में गेहूं और धान के उत्पादन को बढ़ावा दे रही थी, तब वह किसानों से कहीं ज्यादा नमी वाली फसलें भी खरीदती थी।

वह कहते हैं, ‘अब सरकार इसकी हमें सजा दे रही है। एक किसान फसल तब काटता है, जब वह पक चुकी होती है। उसके बाद कई चरणों के बाद भारतीय खाद्य निगम इसे खरीदता है। कटने के बाद फसल को पैक किया जाता है, उसके बाद इसे मंडी पंहुचाया जाता है, जहां इसे सुखाया जाता है। यह तो भारतीय खाद्य निगम की जिम्मेदारी है कि वह वितरण से पहले इन अनाजों की नमी को अपने वांछित स्तर के अनुकूल करे। निगमों के गोदामों में अभी तक आधुनिक तकनीक इस्तेमाल नहीं की जाती तो सरकार इसका दायित्व भी किसानों के ऊपर डाल रही है।’

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