भारत-पाकिस्तान जीआई टैग विवाद : बासमती की डीएनए टेस्टिंग भारत के दावे को कर सकती है मजबूत

बासमती चावल की लंबाई ही मायने नहीं रखती बल्कि उसकी सबसे अहम चीज है उसकी खुशबू जो उसे स्थानीय जलवायु से मिलती है।
भारत-पाकिस्तान जीआई टैग विवाद : बासमती की डीएनए टेस्टिंग भारत के दावे को कर सकती है मजबूत
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बासमती चावल की खुशबू पूरी दुनिया में महकती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में बासमती निर्यात में भारत की हिस्सेदारी जहां 65 फीसदी है वहीं पाकिस्तान की हिस्सेदारी 35 फीसदी है। एक ओर भारत में अपने ही राज्यों के बीच ही बासमती के जीआई टैग की लड़ाई जारी है तो वहीं दूसरी ओर बासमती जीआई टैग की लड़ाई में भारत की ओर से ईयू में दिए गए एक्सक्लुजिविटी के आवेदन के खिलाफ पाकिस्तान ने आवाज उठाने का मन बनाया है। अंतरराष्ट्रीय फोरम पर इस दावे में जीत किसकी हो सकती है, यह निर्भर करेगा कि कौन अपने पक्ष में कितनी मजबूत चीज पेश करता है। बासमती का डीएनए टेस्ट ऐसा ही एक बड़ा और कारगर उपाय है जो भारत की दावेदारी को और मजबूती दे सकता है। 
जियोग्रिफकल इंडिकेशन (जीआई) यानी भौगोलिक संकेतक का मतलब है कि संबंधित वस्तु या उत्पाद उस भौगोलिक विशेष पर बना या उपजा है। साथ ही वहां की भौगोलिक जलवायु ने उस वस्तु या उत्पाद को बेहतर और अद्वितीय बनाया है।   
डाउन टू अर्थ ने जब पाकिस्तान राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन के चेयरमैन अब्दुल कय्यूम पारचा से जीई टैग को लेकर उनका रुख जानने की कोशिश की तो उन्होंने कहा “यह मामला बेहद संवेदनशील है। हम पाकिस्तान की मीडिया को भी इस बारे में कुछ नहीं बोल रहे हैं, कभी किसी और विषय पर बातचीत की जा सकती है।”

पाकिस्तान भले ही जीआई टैग को संवेदनशील कह कर बचने की कोशिश कर रहा हो लेकिन जब पंजाब के फगवाड़ा से ताल्लुक रखने वाले मिनिस्टर ऑफ स्टेट कॉमर्स मिनिस्ट्री एंड इंडस्ट्री, सोम प्रकाश से डाउन टू अर्थ ने बातचीत की तो उन्होंने भी बेहद अजीब जवाब दिया और कहा "भारत-पाकिस्तान जीआई मुद्दे को लेकर उन्हें कोई जानकारी ही नहीं है।" 

जीआई टैग मामले को लेकर पाकिस्तान के पास ईयू जाने के लिए नवंबर तक का समय है और बासमती के जीआई टैग के लिए प्रभावी तैयारियां भी दिखाई नहीं देती हैं। लेकिन भारत बासमती की पहचान को लेकर अपने डीएनए टेस्टिंग प्रोजेक्ट में काफी समय से काम कर रहा है।

प्रोफेसर जयशंकर तेलंगाना स्टेट एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रवीण राव वेल्चेला ने डाउन टू अर्थ को बताया कि भारत के पास जीआई के लिए डीएनए पहचान जैसा मजबूत आधार है। डीएनए आधारित विधि (फिंगरप्रिंट और आजकल जीनोम विश्लेषण ) एक शक्तिशाली टूल है जिससे भारत बासमती जीआई टैग का अपना पक्ष वैज्ञानिकता के साथ मजबूती से रख सकता है। भारत में सीडीएफडी हैदराबाद में कुछ समय पहले प्रोफेसर ईए सिद्दीक के समय बासमती चावल को लेकर एक किट विकसित हुई थी। इसी तरह से आईएआरआई वैज्ञानिक भी डीएनए विश्लेषण पर काम कर रहे हैं।
वहीं भारत के भीतर लगातार मध्य प्रदेश बासमती के जीआई टैग की मांग कर रहा है जबकि इस मांग की पंजाब और हरियाणा के किसान खिलाफत कर रहे हैं। पंजाब के किसानों का तर्क है कि जीआई टैग यदि एक ऐसे राज्य को मिल गया जिसको वैज्ञानिक तौर पर नहीं मिलना चाहिए तो फिर कई राज्य कल जीआई आवेदन के लिए खड़े हो जाएंगे।  

पंजाब के एक कृषि नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि सरकार ने मध्य प्रदेश के जीआई टैग के लिए जो समिति बनाई है वह बिल्कुल ही गलत है, मिट्टी को सोना नहीं कहा जा सकता है। मध्य प्रदेश को जीआई टैग नहीं दिया जाना चाहिए। इससे बासमती की वैल्यू घट सकती है। एक्सपोर्ट से जो वैल्यू आती है वह भी खत्म हो जाएगी।
इसके अलावा जलवायु का भी बासमती चावल पर बेहद ही खास असर है। इस मामले में  वैज्ञानिक डॉ कृष्णा मूर्ति का कहना है कि बासमती के लिए सबसे बड़ी चीज है उसकी खुशबू। इसके साथ ही बासमती चावल की लंबाई और पकने के बाद बढ़ने वाली लंबाई भी मायने रखती है। लेकिन चावल में आने वाली खुशबू दरअसल जलवायु पर निर्भर है। मिसाल के तौर पर सीएसआर 30 जो कि 155 दिन में तैयार होती है, उसे जल्दी काट लिया जाए तो उसमें से सुगंध खत्म हो जाएगी।
भारत में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, यूपी समेत सात राज्यों को जीआई टैग इसी लिए दिया गया है कि यहां की जलवायु के साथ बासमती चावल की खुशबू काफी विकसित होती है और वह अपनी आदर्श अवस्था में होता है। मध्य प्रदेश या किसी दूसरे राज्य में ऐसा जलवायु नहीं है, वहां बासमती के गुणों में कमी आ सकती है और इससे ब्रांडिंग में काफी असर पड़ेगा। फिर कितने और राज्य जीआई टैग की मांग करेंगे उसे भी संभालना मुश्किल होगा। 

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