अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता व्यापारिक तनाव न केवल व्यापार और अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह है, साथ ही वो पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहा है। यह न केवल उन दोनों देशों के पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है, साथ ही अन्य देशों के पर्यावरण पर भी दबाव डाल रहा है।
हाल ही में इस विषय पर किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि जिस तरह से इन दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ रहा है उसके चलते चीन ने अमेरिका से आयात किए जाने वाले कृषि उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिया है नतीजन सोयाबीन जैसी फसलों के आयात में कमी आई है, जिस वजह से अमेरिका में किसानों को इन फसलों के स्थान पर कहीं ज्यादा प्रदूषण करने वाली फसलों की तरफ जाना पड़ा है जो सोयाबीन के मुकाबले कहीं ज्यादा नाइट्रोजन और फास्फोरस प्रदूषण करती हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड द्वारा किया यह शोध जर्नल नेचर फूड में प्रकाशित हुआ है।
साथ ही उनकी सिंचाई के लिए कहीं ज्यादा पानी की जरुरत पड़ती है जो वहां पानी की मांग में भी वृद्धि का कारण बन रहा है। यदि देखा जाए तो इस के प्रभाव केवल दो देशों के बीच में ही सीमित नहीं रहते हैं, यह अंतराष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से अन्य देशों में भी फैल जाते हैं। इसका असर अतरिक्त दबाव के रूप में पहले से ही तनाव झेल रहे पारिस्थितिकी तंत्रों जैसे की ब्राजील के अमेज़न आदि पर पड़ता है।
यदि 2017 के आंकड़ों को देखें तो उस वर्ष में चीन ने अमेरिका से करीब 145,740 करोड़ रुपए (1,960 करोड़ डॉलर) मूल्य के कृषि उत्पादों का आयात किया था। नतीजन चीन, अमेरिका के कृषि उत्पादों के लिए एक प्रमुख खरीदार बन गया था। इन अमेरिकी कृषि निर्यातों में से 86 फीसदी फसल उत्पाद थे। जिनमें से 74 फीसदी सोयाबीन था।
वहीं यदि 2018 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो चीन द्वारा कृषि उत्पादों पर लगाए शुल्कों के चलते सीधे तौर पर अमेरिकी किसानों पर असर पड़ा था, इसके कारण अमेरिका से चीन के कुल कृषि आयात में लगभग 74,358 करोड़ रुपए (एक हजार करोड़ डॉलर) की गिरावट आई थी, जिसने विशेष रूप से सोयाबीन को प्रभावित किया था। हालांकि इसके बावजूद अनिश्चित व्यापारिक संबंधों के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले असर पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है, जो सीधे तौर पर किसानों के सामाजिक आर्थिक विकास और पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करते हैं।
यदि देखा जाए तो चीन अपनी जरुरतों के लिए अमेरिका से जो फसल आयात करता है उससे अमेरिका के पर्यावरण पर दबाव बढ़ गया है, लेकिन वहीं देखा जाए तो उससे चीन और दुनिया के अन्य देशों में पर्यावरण पर पड़ने वाले तनाव से राहत मिली है।
किस तरह पर्यावरण पर असर डाल रहा है घटता व्यापारिक सम्बन्ध
2014 से 2016 के दौरान चीन को निर्यात की जाने वाली फसलों के उत्पादन के लिए अमेरिका ने औसतन 1.2 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र पर फसलें उगाई थी। साथ ही इनके लिए 4 लाख करोड़ लीटर साफ पानी की जरुरत पड़ी थी। साथ ही इसके लिए 50 करोड़ किलोग्राम नाइट्रोजन और 70 लाख किलोग्राम अतिरिक्त फास्फोरस की जरुरत पड़ी थी।
वहीं अपनी इस जरुरत को पूरा करने के लिए चीन अपने देश में वर्तमान तकनीकों की मदद से फसल का उत्पादन करता तो उसके लिए उसे 2 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र पर फसलें उगानी पड़ती। इसके लिए 9 लाख करोड़ लीटर साफ पानी की जरुरत पड़ती। साथ ही इसके लिए चीन को 170 करोड़ किलोग्राम नाइट्रोजन और 30 करोड़ किलोग्राम फास्फोरस की जरुरत पड़ती।
इस तरह देखा जाए तो चीन ने फसलों का जो आयात किया था उससे करीब 80 लाख हेक्टेयर भूमि और 5 लाख करोड़ लीटर पानी की बचत हुई थी। साथ ही इससे 120 करोड़ किलोग्राम नाइट्रोजन और 29.3 करोड़ किलोग्राम फास्फोरस के उपयोग में कमी आई थी, जो पर्यावरण के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है।
वहीं यदि चीन अपनी सोयाबीन की मांग को पूरा करने के लिए ब्राजील का रुख करता है तो उसके चलते ब्राजील में फसलों में होने वाला बदलाव नाइट्रोजन प्रदूषण और पानी की मांग को कम कर देगा पर साथ ही वो फास्फोरस प्रदूषण और जंगलों की कटाई की वजह बन सकता है।
इस शोध के बारे में जानकारी देते हुए इस शोध से जुड़े अन्य शोधकर्ता शिन झांग ने बताया कि इस अध्ययन में पोषक तत्वों से लेकर कृषि में होने वाली पानी की खपत सहित पर्यावरण पर पड़ने वाले कई प्रमुख प्रभावों को स्पष्ट किया गया है। इस तरह के प्रभाव व्यापार और व्यापारिक नीतियों के पर्यावरण पर पड़ने वाले असर पर विचार करने के लिए एक आधार प्रदान करते हैं।
इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता गुओलिन याओ के अनुसार व्यापारिक वार्ताओं में अक्सर प्रत्यक्ष आर्थिक और राजनीतिक प्रभावों पर ही ध्यान केंद्रित किया जाता है, पर इस व्यापार का इन दो देशों के साथ-साथ अन्य देशों के पर्यावरण पर भी असर पड़ता है। जो आर्थिक और सामाजिक विकास पर भी असर डालता है।