मूंगफली का होगा एक्सरे, इक्रीसेट ने विकसित की नई तकनीक

यह पहला मौका है जब देश में मूंगफली की व्यावसायिक गुणवत्ता और लक्षणों को मापने के लिए एक्स-रे रेडियोग्राफी तकनीक का सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है
मूंगफली की एक्स-रे से ली गई छवि; फोटो: इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसेट)
मूंगफली की एक्स-रे से ली गई छवि; फोटो: इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसेट)
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मूंगफली की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसेट) ने नई तकनीक का उपयोग किया है। गौरतलब है कि यह पहला मौका है जब इस तरह की जांच के लिए एक्स-रे का उपयोग किया गया है।      

वैसे तो एक्स-रे रेडियोग्राफी तकनीक का उपयोग लम्बे समय से चिकित्सा और हवाई अड्डों में स्कैनर के रूप में किया जा रहा है। लेकिन यह पहला मौका है जब देश में बिना छिली मूंगफली की व्यावसायिक गुणवत्ता और लक्षणों को मापने के लिए एक्स-रे रेडियोग्राफी तकनीक का सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है।

इस तकनीक को इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसेट) और फ्राउनहोफर डेवलपमेंट सेंटर फॉर एक्स-रे टेक्नोलॉजी (ईजेडआरटी) के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित किया गया है।

इस बारे में ईजेडआरटी से जुड़े स्टीफन गर्थ का कहना है कि इक्रीसेट के शोधकर्ताओं ने उन महत्वपूर्ण गैप्स को भरने का प्रयास किया है, जो अक्सर भारतीय किसानों को उनकी कड़ी मेहनत का लाभ लेने से से रोक देते हैं। साथ ही यह अवरोध शोधकर्ताओं को भी बेहतर फसलों की ब्रीडिंग से रोक रहे हैं। उनके अनुसार यह तकनीक उन गैप्स को भरने में मददगार हो सकती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक इस तकनीक की मदद से मूंगफली के फलियों की मूल्यांकन प्रक्रिया, श्रम और समय के दृष्टिकोण से कहीं ज्यादा बेहतर हो गई है, जिस काम को करने में तीन से पांच कुशल श्रमिकों को 30 मिनट का समय लगता था, अब इस तकनीक की मदद से उसे एक तकनीशियन दो मिनट में कर सकता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह तरीका मूंगफली की फलियों का सटीक और समय पर मूल्यांकन करने में मददगार होता है, जिससे बाजार में जाने से पहले इनकी गुणवत्ता की पूरी जांच हो सके। जैसे इनके दाने का वजन और छिलकों का प्रतिशत कितना है। गौरतलब है कि इस तरह के विश्लेषण को सक्षम बनाने वाली कंप्यूटर टोमोग्राफी (सीटी) प्रणाली हैदराबाद में इक्रीसेट के मुख्यालय में लगाई गई है।

इस बारे में इक्रीसेट से जुड़ी वैज्ञानिक डॉक्टर सुनीता चौधरी का कहना है कि एक्स-रे आधारित तकनीकों का उपयोग कृषि अनुसंधान में क्रांति ला सकता है। उनके अनुसार फसल कटाई के बाद उसकी गुणवत्ता का निर्धारण सदियों से पुरानी मैन्युअल तकनीकों और समय लेने वाले प्रयोगशाला परीक्षणों पर निर्भर रहा है। 

किसानों के लिए कैसे फायदेमंद साबित हो सकती है यह तकनीक

जानकारी मिली है कि वैज्ञानिकों ने एआई-आधारित एल्गोरिदम भी विकसित किया है, जो मूंगफली की फली के एक्स-रे रेडियोग्राफी से भौतिक लक्षणों का सटीक अनुमान निकाल सकता है।

गौरतलब है कि इक्रीसेट में इस तकनीक की मदद से मूंगफली ब्रीडर अब मौसम के लिए सर्वोत्तम फसलों का चुनाव कर सकते हैं, जिसके लिए वो एक दिन में 100 तक नमूने  स्कैन कर सकते हैं। इस काम में लगने वाला समय भी काफी घट गया है। अब ब्रीडर इस पर सामान्य तौर पर लगने वाले समय का केवल एक हिस्सा ही खर्च कर रहे हैं।

इक्रीसेट से जुड़ी शोधकर्ता डॉक्टर जनिला पसुपुलेटी ने इस एल्गोरिदम के बारे में जानकारी दी है कि वर्तमान में इस उन्नत इमेज प्रोसेसिंग एल्गोरिदम को मूंगफली के छिलकों का प्रतिशत, उसमें दानों की संख्या और भार का पता लगाने के लिए तैयार किया है। आगे वो इसे बीज के आकार के वितरण और अनुमानों के लिए तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं।

साथ ही इसकी मदद से अन्य फसलों जैसे चावल, जई, जौ, और अरहर की गुणवत्ता के निर्धारण और अन्य व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण लक्षणों जैसे पिसाई से प्राप्त होने वाले उत्पाद की गुणवत्ता का पता लगाने के लिए भी किया जा रहा है।  

अध्ययन के अनुसार भविष्य में एक्स-रे रेडियोग्राफी आधारित यह तकनीक किसानों की उपज का सही मूल्यांकन उनके खेत में ही कर सकती हैं। अंतर्राष्ट्रीय खाद्य मूल्य और सुरक्षा समिति भी इसकी मांग करती रही है। ऐसे में शोधकर्ताओं का मानना है कि एक पोर्टेबल एक्स-रे इमेजिंग सिस्टम उन अनाज मूल्य श्रृंखलाओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी होगा, जहां अनाज के आर्थिक मूल्य का आकलन करने के लिए समय एक महत्वपूर्ण बाधा है।

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