बैठे ठाले: कोलंबस की यात्रा
वह कोई अक्टूबर की सुहावनी रात थी। सांता मारिया, ला-नीना और ला-पिंता नामक तीन जहाजों का बेड़ा समुद्र की ऊंची लहरों के थपेड़ों के बीच होता हुआ चलता चला जा रहा था। पिछले कई हफ्तों से समुद्र में यूं ही चलते चले जा रहे नाविक अब बुरी तरह बोर हो चुके थे। जहाज का डॉक्टर जुआन संचेज बोला, “मियां, हम आखिर जा कहां रहे हैं, कुछ पता भी है?”
जहाज का कारपेंटर अंतोनीयो दे कोईलर बोला, “किसी इंडिया नामक देश की खोज में निकले हैं। मुझे तो यही कहकर नौकरी दी गई। बाकी आप लोगों का नहीं जानता।”
अचानक लोगों ने एक चीख सुनी, “जमीन!”
यह रॉड्रीगो दे ट्रीऐना नामक एक नाविक की चीख थी। इस चीख को सुनकर नाविकों में खुशी की लहर दौड़ गई। सारे नाविक जहाज से जमीन पर कूदने को उतावले हो गए पर जहाज के कप्तान कोलंबस ने सबको डपटकर चुप करवा दिया। तय यह किया गया कि सुबह होते ही नाविक जमीन पर उतरेंगे।
दूसरे दिन कोलंबस अपने नाविकों के साथ जमीन पर उतरकर बोला, “भाइयों-बहनों! नए देश में आपका स्वागत है। अब हम सब इस नए देश को एक्सप्लोर करेंगे। आधे नाविक दायीं ओर जाएंगे, आधे बांयी ओर जाएंगे और बाकी मेरे पीछे आएंगे। आज से ठीक हफ्ते भर बाद हम यहीं पर इसी समय मिलेंगे….हुर्र*!” (*हुर्र एक आदिम भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है जा सिमरन, जी ले अपनी जिंदगी)
जल्द ही नाविक नए देश की यात्रा को निकल पड़े। हफ्ते भर बाद सारे लोग ठीक इसी जगह पर आकर मिले, जैसा कि प्लान था। ज्यादातर नाविकों के पैर लहूलुहान थे। उनके कपड़े तार-तार हो गए थे। उनके चेहरे पर उदासी और निराशा की छटा साफ झलक रही थी। सारे खामोश बैठे थे। आखिरकार चुप्पी को तोड़ते हुए कोलंबस बोला, “अब आप सब एक-एक करके बताएं कि आपको यह नया देश कैसा लगा? आपने क्या-क्या देखा?”
जहाज के पायलट पेड्रो आलोनसो नीन्यो ने कहा, “जनाबे आली, लगता है गूगल मैप ने हमें धोखा दिया है। जिस “सोने की चिड़िया के देश” की खोज में हम चले थे वह यह नहीं है। मैंने इस देश के कई शहरों में जाने की कोशिश की पर कहीं नहीं जा सका। हर नेशनल हाइवे पर कंटीले तार और पुलिस के बैरिकेड मिले। हर सड़क पर खाइयां खुदी थीं। और तो और सड़कों पर कीलें लगाई गई थीं।”
“मेरे साथ तो और बुरी बीती” जहाज के पेंटर डिएगो पेरेज ने कहा, “चला जा रहा था मैं गुजरता हुआ, तभी सामने से कुछ किसान आते दिखे। मैंने उनसे कुछ बात करने की कोशिश की तो अचानक ऊपर से आंसू-गैस के गोलों की बारिश शुरू हो गई। मेरा तो खांसते-खांसते बुरा हाल था। मैं किसी तरह अपनी जान बचाकर भागा हूं।”
जहाज के मास्टर ऐट आर्मस डिएगो डे अराना का कहना था, “बड़ा अजीब देश है यह! लोगों के बने-बनाए घरों को बुलडोजर चलाकर गिराया जा रहा है। पहाड़ों पर शहर के शहर खुद ब खुद जमीन में समा रहे हैं क्योंकि वहां की जमीन दरक रही है।”
जहाज के ओनर और मास्टर जुआन दे ला कोसा ने कोलंबस की ओर देखते हुए कहा, “एडमिरल! इस देश में रहना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। हमें यह देश जल्द से जल्द छोड़ देना चाहिए।”
तभी एक आंसू गैस का गोला जहाज पर आकर गिरा। नाविकों ने समुद्र के पानी से भीगे कपड़े से गोले को फटने से बचा लिया। सभी नाविक डर के मारे जल्दी से अपने-अपने जहाजों पर चढ़ गए। देखते ही देखते तीनों जहाज एक बार फिर गहरे समुद्र की ओर चल पड़े।
कोलंबस ने चीख कर कहा, “हुर्र-हुर्र हट्ट!”
जिसका मतलब था चलो भाग चलें पच्छिम की ओर!