बेमौसमी बारिश और बर्फबारी ने हिमाचल के सेब बागवानों के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है। एक ओर जहां सेब और अन्य गुटलीदार फलों की सेटिंग (फूल से फल बनने की प्रक्रिया) में गहरा असर पड़ा है। वहीं दूसरी ओर पॉलिनेशन (परागण) के लिए रखी इटालियन मधुमक्खियों की मौत से बागवानों के साथ-साथ मधुमक्खी पालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है।
मधुमक्खियों के मरने की ज्यादातर घटनाएं शिमला, किन्नौर, लाहौल स्पीति और कुल्लू जिले के 7 हजार फुट से ऊपर के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हुई है। राज्य के बागवानी विभाग ने मधुमक्खियों की मौत के कारण और इनके नुकसान का आकलन करने के लिए फील्ड में कर्मचारियों की तैनाती की गई है, जबकि बागवानों का अनुमान है कि मौसम की मार और मधुमक्खियों के मरने की वजह से सही पॉलिनेशन न होने से लगभग 20 फीसदी तक नुकसान हो सकता है।
गौरतलब है कि मधुमक्खियां नर फूल से परागण लेकर मादा फूल में डाल देती है इसे परागण क्रिया (पॉलिनेशन) कहते हैं क्रिया के पूरा होने के बाद फूल फल में परिवर्तित हो जाता है। बागवान अप्रैल माह में फूलों की सेटिंग के लिए किराये पर मधुमक्खियां लेते हैं इसका दाम 1200 से 2000 रुपए प्रति माह तक तय है।
हिमाचल प्रदेश में सेब व अन्य फलों से जुडे़ बागवानों की संख्या 2 लाख से अधिक है और इनकी आजीविका पूरी तरह से बागवानी पर निर्भर है। हर साल प्रदेश में 4 हजार करोड़ रुपए से अधिक का सेब कारोबार होता है।
सेब बहुल क्षेत्र रोहडू के दशान गांव के किसान रजनीश भा्रमटा ने डाउन टू अर्थ को बताया, "सेब की पॉलिनेशन के लिए मैंने किराये पर मधुमक्खियों के 300 बॉक्स अपने बागीचे में रखे थे, जिनमें से आधे बॉक्स में मधुमक्खियां मृत पाई गई।
शिमला के बागवान जोगेंद्र शर्मा बताते हैं कि प्राकृतिक तौर पर पाए जाने वाली मधुमक्खियां अब नहीं रही, इसलिए बागवान किराये पर इन्हें अपने बागीचे पर रखते हैं, लेकिन अचानक ठंड बढ़ने की वजह से इन इटालियन मधुमक्खियों को सही खुराक नहीं मिल पाई और ठंड अधिक होने की वजह से वे बॉक्स में ही मर गई।
मधुमक्खी पालक इकबाल सिंह ठाकुर डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि मैंने इस बार कुल्लू के बागवानों को अपनी मधुमक्खियां पॉलिनेशन के लिए दी थी, वहां से मधुमक्खियों के मरने को लेकर हमें सूचना मिली है। अभी तक कितने बॉक्स खाली हो चुके हैं इसका आकलन करना बाकी है।
जबकि बागवान प्रशांत सेहटा का कहना है कि कई बार ऐसा भी होता हैकि कई बागवान फ्लावरिंग के समय रसायनों का प्रयोग करते हैं, जिससे भी मधुमक्खियां मर जाती हैं ।
डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के सहायक प्रोफेसर किशोर शर्मा का कहना है कि सेब की पैदावार में मधुमक्खियों की अहम भूमिका होती है। इसलिए बागवानों को अपने सेब के पौधों के साथ मधुमक्खियों का भी सही से रखरखाव करना चाहिए, ताकि नुकसान से बचा जा सके।
बागवानी विभाग के सीनियर प्लांट प्रोटेक्शन ऑफिसर कीर्ति सिन्हा ने डॉउन टू अर्थ को बताया कि मौसम में आई गिरावट से मधुमक्खियों के काम करने की दर कम हो जाती है। यदि तापमान 15 डिग्री से कम होता है तो ऐसे में वे काम नहीं कर पाती और अपने पास रख रिजर्व खाने से कुछ दिन तक ही जिंदा रह पाती हैं। तब तापमान में गिरावट व ओले गिरने की स्थिति में उन्हें फीडिंग की जरूरत रहती है। इन मधुमक्खियों के लिए सुगर सिरप और गुड़ को बारीक पीसकर बॉक्स में रखना चाहिए, ताकि वे अपने खाने की जरूरत को पूरा कर सकें।
कौन हैं इटेलियन मधमुक्खियां
इटेलियन मधुमक्खी को एपिस मेलिफेरा के नाम से भी जाना जाता है। इन मधुमक्खियों को सबसे पहले 1962 में भारत में लाकर हिमाचल प्रदेश के नगरोटा में पाला गया था। इसके बाद इस मधुमक्खी का पालन दूसरे राज्यों में भी सफलतापूर्वक किया जा रहा है।