दिल्ली और आसपास सटे राज्यों के लगभग सात से आठ जिलों के लोग हर रविवार को पुरानी दिल्ली स्थित पीली कोठी नया बाजार में जुटते हैं। आसमान छूती दालों की कीमतों ने लोगों को इस बाजार की ओर मोड़ दिया है। दरअसल इस बाजार में बेहद सस्ती दालें मिल जाती हैं।
सड़क किनारे अरहर, चना और उड़द की दाल बेच रहे गोविंद कुमार कहते हैं कि हर आदमी को दाल तो खानी ही पड़ती है, भले ही दाल अच्छी हो या खराब। वह बताते हैं, “यह दाल दिल्ली के गोदाम के आसपास मिट्टी में सनी पड़ी थी। इसे मैंने वहां से सस्ते में खरीदा। इसे दो दिनों तक साफ किया है, फिर यहां बेचने ले आया।”
गोविंद अरहर की दाल 45 रुपए किलो बेच रहे हैं। दाल में बहुत मिट्टी और कंकड़ दिख रहे हैं, लेकिन बाजार भाव से यह काफी सस्ती है। इसी बाजार की एक दुकान पर यह दाल 135 रुपए और दूसरी पर 70 रुपए प्रति किलो में बिक रही हैं।
बाजार के आखिरी कोने में दाल बेच रहीं बुजुर्ग जनकीदास कहती हैं कि सस्ती दाल तभी मिलेगी, जब उसमें कुछ खराबी होगी। जो दाल वह बेच रही हैं, उसमें कीड़े लग गए थे। इसे साफ करके वह बेचने लाई हैं। आप यह दाल कहां से लाती हैं? इस प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया कि दाल के बड़े व्यापारियों की दुकानों में खराब हो गई दालों को बाहर रख दिया जाता है। हम उसे औने-पौने दाम में खरीद लाते हैं और मेहनत करके उसे खाने लायक बनाते हैं। एक अन्य विक्रेता रामकुमार ने बताया कि वह अलग-अलग दालों के टुकड़ों को मिलाकर बनाई गई मिक्स दाल बेचते हैं। वह इसे 35 रुपए किलो के भाव पर बेच रहे हैं।
बाजार में पिछले 14 साल से व्यापार करने वाले सतीश कुमार ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यहां दाल के गोदामों पर गिरी हुई दालों को धूल-कंकड़ के साथ बेचा जाता है। बाजार के बीचोंबीच एक कोने में पांच प्रकार की अत्यंत खराब गुणवत्ता की दाल बेच रहे घासीराम ने कहा कि हमारी दाल खराब है, तभी तो हम अरहर की दाल 35 रुपए और अन्य दालें 25 से 30 रुपए किलो बेच रहे हैं। इसे कौन खाता है? पूछने पर वह बड़े ही दार्शनिक अंदाज में वह जवाब देते हैं कि उनकी दाल आदमी और जानवर दोनों के लिए है। वह बताते हैं, “यहां आने वाले ग्राहक यह नहीं देखते कि कौन-सी दाल सबसे अच्छी है, बल्कि यह देखते हैं कि कौन-सी सबसे कम खराब है।” गाजियाबाद से यहां से दाल खरीदने आईं बीना त्रिपाठी बताती हैं कि पिछले तीन घंटे से मैं सबसे कम खराब दाल खोज रही हूं।
सतीश के अनुसार, कई ट्रांसपोर्ट वाले भी आसपास के राज्यों से किसानों से उनके खेतों से ही सीधे धूल मिट्टी से सनी हुई दाल भी ले आते हैं और यहां खपा देते हैं। उनके अनुसार, दाल के बाजार के भाव के हिसाब से यहां भीड़ घटती और बढ़ती रहती है।
बाजार में ही दाल बेचने वाले अखिलेश कुमार ने बताया कि जब दाल की कीमत बढ़ जाती है तो पूरी दिल्ली, पड़ोसी राज्य हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से भी लोग खरीदारी करने आते हैं। उन्होंने बताया कि कुछ महीनों में यहां बिक्री 10 फीसदी तक बढ़ी है।