“एक हफ्ते से दिन-रात मंडी में पड़े हैं पर खाद नहीं मिली”

बुंदेलखंड में खाद की जबर्दस्त किल्लत, कालाबाजारी जोरों पर, पिछड़ रही है रबी की बुवाई
महोबा मंडी में पिछले एक हफ्ते से रोज लाइन में लग रही हैं गिरिजा लेकिन खाद अब तक नहीं मिली। फोटो: भागीरथ
महोबा मंडी में पिछले एक हफ्ते से रोज लाइन में लग रही हैं गिरिजा लेकिन खाद अब तक नहीं मिली। फोटो: भागीरथ
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महोबा के नाथुपुरा की रहने वाली 57 साल की गिरिजा बुखार से तप रही हैं। अपने स्वास्थ्य की बिना परवाह किए वह 25 अक्टूबर से महोबा (उत्तर प्रदेश) जिला मुख्यालय में स्थित नवीन अनाज मंडी में बने खाद वितरण केंद्र के चक्कर काट रही हैं। तीन दिन तक तो वह रातभर अपने पति के साथ मंडी में पड़ी ठिठुरती रहीं। इतने संघर्ष के बाद भी उन्हें अब तक खाद नहीं मिली है। उन्होंने डाउन टू अर्थ को बताया कि इससे पहले उन्होंने खाद को लेकर इतनी मारामारी कभी नहीं देखी।  

गिरिजा के साथ खाद के लिए लाइन में लगी शशि देवी ने बताया कि किसी को एक बोरी खाद नहीं मिल रही है और कोई अफसरों और समिति के कर्मचारियों की मिलीभगत से कई-कई बोरी बोरी खाद गाड़ी में लादकर ले जा रहा है। वह बताती हैं “ऊपर से खाद कम आ रही है और जो आ रही है उसकी जमकर कालाबाजारी हो रही है।” शशि भी पिछले 6 दिन से खाद के लिए मंडी के चक्कर काट रही हैं।

महोबा के वितरण केंद्र में पिछले कई दिन से खाद दोपहर तक खत्म हो रही है, जबकि खाद वितरण का समय शाम पांच बजे तक है। यहां बहुत से किसान 50-60 किलोमीटर दूर से आए हैं। ऐसे ही एक किसान ने डाउन टू अर्थ को बताया कि घर लौटना और अगले दिन फिर से आना संभव नहीं है, इसलिए वह रातभर मंडी में रहेंगे और अगले दिन खाद लेने की कोशिश करेंगे। बार-बार आने-जाने का खर्च भी अधिक होने के कारण बहुत से किसानों ने रातभर मंडी में ही रहने का निर्णय किया है।    

महोबा से करीब 20 किलोमीटर दूर कमालपुरा गांव से खाद की आस में आए काशी प्रसाद ने बताया कि पूरे जिले में कहीं भी खाद उपलब्ध नहीं है। महोबा के केवल इसी केंद्र में सीमित मात्रा में खाद आ रही है और उसे हासिल करने के लिए सैकड़ों लोगों की भीड़ के बीच मारामारी है। काशी प्रसाद महोबा अलावा हमीरपुर और छतरपुर तक जा चुके हैं लेकिन खाद नसीब नहीं हुई है। वह बताते हैं, “खेत बुवाई के लिए तैयार हैं। खाद न मिलने से रबी की बुवाई पिछड़ रही है।”  

बुंदेलखंड के बांदा जिले में भी खाद की भारी किल्लत चल रही है और आक्रोशित किसान सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर चुके हैं। पिछले तीन-चार दिनों से खाद की किल्लत को लेकर डीएम ज्ञापन दिए जा रहे हैं। बांदा में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर बताते हैं कि व्यवस्था में खामियां खाद की कमी की बड़ी वजह है। मंडियों में चोरी छिपे-खाद बिक रही है।

बहुत से नेता अधिकारियों के साथ मिलकर अपने खासमखास लोगों को खाद दे रहे हैं। उनका कहना है कि अगर यही स्थिति रही तो किसानों को महंगी दर पर प्राइवेट एजेंसियों से खाद खरीदनी पड़ेगी जिससे खेती की लागत बढ़ जाएगी। बांदा के मथना खेड़ा में रहने वाले एक किसान ने डाउन टू अर्थ को बताया कि जिले में 2 महीने से खाद का संकट जारी है। जब कहीं से खाद नहीं मिली तो उन्होंने अपने परिचित एक मंडी समिति के अध्यक्ष से कहकर तीन बोरी खाद का इंतजाम किया।  

महोबा मंडी में तैनात एक सरकारी कर्मचारी ने बताया कि इस बार खाद की कमी की एक बड़ी वजह यह है कि सभी किसान एक साथ बुवाई कर रहे हैं और एक साथ ही खाद खरीदने के लिए उमड़ रहे हैं। प्रशासन को उम्मीद नहीं थी कि अचानक से खाद की मांग इतनी बढ़ जाएगी। सरकार को जब तक इसकी भनक लगती, तब तक देर हो चुकी थी।  

ललितपुर जिले में खाद की कमी के कारण पांच किसानों की मौत और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के पीड़ित परिवारों से मिलने के बाद बुंदेलखंड में खाद की कमी एक बड़ा सियासी मुद्दा बन चुका है। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के भी मृतक किसानों के परिजनों से मिलने वाले हैं।

खाद की कमी और कालाबाजारी की शिकायतों के बीच केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया ने 1 नवंबर 2021 को किसानों से खाद की जमाखोरी न करने और अफवाहों पर ध्यान न देने की अपील की। और साथ ही और कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात कही।

मंत्रालय द्वारा विज्ञप्ति में दावा किया गया है कि नवंबर में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की मांग से अधिक उर्वरकों का उत्पादन किया जाएगा। विज्ञप्ति के अनुसार 41 लाख मीट्रिक टन मांग के मुकाबले 76 लाख मीट्रिक टन यूरिया का उत्पादन किया जाएगा। वहीं 17 लाख मीट्रिक टन अनुमानित डीएपी की मांग के मुकाबले 18 लाख मीट्रिक टन डीएपी का उत्पादन किया जाएगा। 

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