हरियाणा ने बढ़ाया सरसों का लक्ष्य, क्या किसानों को होगा फायदा?

प्रति हेक्टेयर उत्पादकता की दृष्टि से हरियाणा देश में सबसे ऊपर है, लेकिन कई खामियों के चलते किसानों को इसका फायदा नहीं मिल पाता
Photo: Vikas Choudhary
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पड़ोसी राजस्थान को टक्कर देने के चक्कर में हरियाणा सरकार ने खरीद एवं उठान की बिना ठोस व्यवस्था किए इस बार सरसों उत्पादन का लक्ष्य बढ़ा दिया है। लक्ष्य भी इतना कि जो अब तक का सर्वाधिक है। इसके लिए प्रदेश के सवा लाख किसानों को सरसों बीज के मिनी किट बांटे जा रहे हैं।

एक किट में दो किलो बीज हैं, जिसमें तिलहन की चार किस्में, आरएच-0749,आरएच-0406, आरवीएस-दो व गिराज हैं। हर जिले के लिए अलग-अलग बांटने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। सरसों उत्पादन में रेवाड़ी हरियाणा में अव्वल है। पिछले साल 64 हजार हेक्टेयर में बिजाई हुई थी, जिससे बढ़ाकर इस बार 70 हजार हेक्टेयर कर दिया गया है। रेवाड़ी के अलावा महेंद्रगढ, झज्जर, दादरी, भिवानी, जींद, रोहतक, फतेहाबाद, सिरसा और मेवात भी सरसों का अच्छा उत्पादन होता है।

प्रदेश सरकार ने इस बार सरसों बिजाई का लक्ष्य बढ़ा कर 6 लाख 36 हजार हेक्टेयर कर दिया है, जो अब तक का सबसे ज्यादा है। पिछले वर्ष 6.12 लाख हेक्टेयर में सरसों की बिजाई हुई थी। इसे आप आंकड़ों में यूं समझ सकते है-

साल   बिजाई (हेक्टेयर में)          उत्पादन (क्विंटल, प्रति हेक्टेयर)
2008   5.15 लाख                   17.38  
2009   5.13                          16.55
2010   5.04                          18.69
2011   5.36                          13.94
2012   5.39                          17.16
2013   5.73                          16.39
2014   4.82                          14.34
2015   5.12                           16.69
2016   5.10                           18.53
2017   5.82                           16.31
2018   6.12                           18.42
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स्रोतः हरियाणा कृषि विभाग

सरसों को सिंचाई और लागत के हिसाब से किसानों के लिए सर्वाधिक लाभदायक फसल माना जाता है। भारत में क्षेत्रफल के हिसाब से इसकी सबसे ज्याद खेती हरियाणा के पड़ोसी राजस्थान में होती है। इसके बाद मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, असम, झारखंड, बिहार एवं पंजाब का नंबर आता है। मगर उत्पादकता में औसतन 17.21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से हरियाणा अव्वल है। मध्य प्रदेश में 2012-13 में उत्पादकता 13.25 प्रति हेक्टेयर था, जिमसें अब तक खास सुधार नहीं हुआ है।

मगर हरियाणा में सबसे बड़ी दिक्कत खरीद और उठान की है। प्रदेश सरकार हर खरीद के समय दावे तो ‘एक-एक दाना’ खरीदने की करती है। मगर होता इसके उलट है। इस समय भी बाजरे और धान की खरीद को लेकर सूबे में बवाल बचा है। मंडियों के बाहर किसान ट्रैक्टरों में फसलें लेकर खड़े हैं और खरीद बंद है। उठान की उचित व्यवस्था नहीं होने के चलते मंडियों में अनाज के ढेर लगे हुए हैं। हाल में हरियाणा में नई सरकार के गठन के साथ ही मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने चेतावनी दी है कि यदि मंडी के बाहर खड़े किसानों की फसल जल्द नहीं खरीदी गई तो आंदालन किया जाएगा।

पिछले वर्ष भी सरसों खरीद के समय यही स्थिति थी। बीज खरीद के दौरान बहादुरगढ़ और सिरसा में खरीद बंद कर दी गई थी। भारतीय किसान संघ के प्रदेश कोषाध्यक्ष रणदीप आर्य का आरोप है कि मंडियों में खरीद की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण प्रत्येक फसल बिक्री के दौरान खरीद बीच में रोक दी जाती है। पिछले वर्ष सरसों का समर्थन मूल्य 4250 रुपए क्विंटल था। खरीद बीच में बंद होने से किसानों को आढ़तियों को 3500 रुपए क्विंटल बेचना पड़ा था।

किसान नेता सुखबीर सिंह कहते हैं कि प्रदेश सरकार एक तरफ तो किसानों की कमाई बढ़ाने के नाम पर उन्हें अधिक उत्पादन के लिए प्रेरित करती है। जब खरीद की बारी आती है तो उत्पाद लेने में कोताही बरती जाती है। लगातार यह क्रम चलने से प्रदेश के किसान हतोत्साहित हैं। पिछले साल प्रदेश सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था कि कोई भी किसान 20 मन यानी आठ क्विंटल से अधिक सरसों नहीं बेच सकता। जब कि दक्षिण हरियाणा में प्रत्येक किसान औसतन 28 से 30 मन सरसों का उत्पादन करता है।

हरियाणा में उन किसानों के उत्पाद की खरीद पर ध्यान दिया जाता है जिन के नाम सरकार के पोर्टल पर पंजीकृत होते हैं। भारतीय किसान संघ के रणदीप सिंह कहते हैं कि ई-रजिस्ट्रेशन में कई खामियां हैं। अधिक समय सर्वर डाउन रहता है। फार्म भरने के बाद ‘सेव’ का बटन दबाने ही अक्सर ‘सेव’ नहीं होता। इस बारे में कई बार संबंधित अधिकारियों को संगठन की ओर से शिकायत दी जा चुकी है।

इसके बावजूद कोई सुधार नहीं है। जननायक जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता देशपाल कहते हैं कि बिजाई के बाद विभागीय सर्वे में लापरवाही के चलते अधिकांश बार सरकार को उत्पादन के बारे में गलत फीड बैक मिलता है, जिसके चलते खरीद के आंकलन में गलत फहमियों पैदा होती हैं और किसानों एवं खरीद एजेसियों को फसल बेचने और खरीदने में दिक्कत आती है। इन्हीं कारणों से पिछले साल सरसों की खरीद के समय किसानों को काफी परेशानियां पेश आई थीं। यहां तक कि उन्हें मंडी के बाहर धरना-प्रदर्शन करना पड़ गया था। किसान संगठनों की राय है कि पैदावार का लक्ष्य बढ़ाने से पहले सरकार को मंडी और खरीद व्यवस्था दुरूस्त करनी चाहिए थी।
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सरसों तेल में अव्वल हरियाणा

हरियाणा सरसों की पैदावार के साथ यहां के सरसों की कच्ची घानी तेल के लिए भी देशभर में काफी चर्चित है। सरसों तेल के अधिकांश चर्चित ब्रांडों का उत्पादन इस प्रदेश में होता है। देश में 2012-13 में सरसों तेल का उत्पादन 23 लाख टन था। हरियाणा सरकार का मुख्य संयंत्र ‘हेफेड’ सरसों तेल के उत्पादन के लिए देशभर में काफी चर्चित है। सन 1986 में रेवाड़ी में  हेफेड के तेल मिल की स्थापना हुई थी। अभी इसके पास 3300 मीट्रिक टन का गोदाम और 1500 मीट्रिक टन का पैकिंग अनुभाग है।

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