ग्राउंड रिपोर्ट: मध्य प्रदेश के श्योपुर में क्यों जली सबसे अधिक पराली?

अधिक बारिश से सोयाबीन और उड़द को नुकसान के चलते पिछले पांच वर्षों में श्योपुर जिले में धान की रकबा दोगुने से अधिक बढ़ गया है
श्योपुर जिले में किसान सोयाबीन और उड़द के स्थान के बासमती धान को तवज्जो दे रहे हैं। फोटो: विकास चौधरी
श्योपुर जिले में किसान सोयाबीन और उड़द के स्थान के बासमती धान को तवज्जो दे रहे हैं। फोटो: विकास चौधरी
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मध्य प्रदेश के नाम इस साल एक अनचाहा रिकॉर्ड दर्ज हो गया। नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोईकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (सीआरईएएमएस) के बुलेटिन के मुताबिक, इस साल 15 सितंबर से 30 नवंबर के बीच धान की पराली में आग की सर्वाधिक 16,360 घटनाएं मध्य प्रदेश में दर्ज की गई हैं। बुलेटिन के मुताबिक, छह राज्यों में 37,602 पराली की घटनाओं में 44 प्रतिशत हिस्सेदारी अकेले मध्य प्रदेश की है।

धान की पराली में आग के लिए पंजाब पिछले कई सालों से बदनाम रहा है, जहां इस साल आग की कुल 10,909 घटनाएं दर्ज की गईं। पहली बार मध्य प्रदेश इस मामले में पंजाब को पछाड़कर पहले स्थान पर आया है।

सीआरईएएमएस छह राज्यों के धान की पराली में आग की घटनाओं की निगरानी सेटेलाइट रिमोट सेंसिंग से करता है। बुलेटिन के आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में सबसे अधिक आग वाले 10 जिलों में 6 जिले मध्य प्रदेश के हैं। पहले स्थान पर मध्य प्रदेश का श्योपुर जिला है, जहां कुल 2,508 आग की घटनाएं रिकॉर्ड की गईं। दूसरे स्थान पर पंजाब का संगरूर (1,725 घटनाएं) जिला है। धान की पराली में आग वाले 10 प्रमुख जिलों में मध्य प्रदेश में श्योपुर के अलावा होशंगाबाद, दतिया, गुना, अशोकनगर, रायसेन और जबलपुर का नाम है।  

साल 2024 में पंजाब में पराली की आग की घटनाओं में 2023 के मुकाबले 300 प्रतिशत से अधिक कमी आई, जबकि मध्य प्रदेश में करीब 25 प्रतिशत बढ़ी हैं।    

साल 2023 में मध्य प्रदेश में 12,500 आग की घटनाएं हुई थीं और वह पंजाब (36,663) के बाद दूसरे नंबर पर था। पिछले साल मध्य प्रदेश के श्योपुर और जबलपुर सबसे अधिक आग वाले दस जिलों में शामिल थे।

2022 में भी मध्य प्रदेश (11,737) पंजाब (49,922) के बाद दूसरे स्थान पर था लेकिन राज्य का कोई भी जिला 10 प्रमुख पराली में आग वाले जिलों में शामिल नहीं था। इसी तरह 2021 में मध्य प्रदेश में धान की पराली में आग की कुल 8,160 घटनाएं दर्ज की गईं और वह पंजाब (71,304) के बाद दूसरे स्थान पर था।   

पिछले दो वर्षों में मध्य प्रदेश के जिलों का सर्वाधिक पराली जलाने वाले जिलों में शामिल होना चौंकाता है, इसलिए इसकी वजह जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने 2024 में सर्वाधिक पराली में आग वाले श्योपुर जिले का दौरा किया। डाउन टू अर्थ को श्योपुर के कराहल और बडौदा ब्लॉक में अनगिनत खेत जले हुए दिखे, जो इस बात का प्रमाण थे कि यहां बड़े पैमाने पर पराली जली है।

श्योपुर में पिछले पांच वर्षों के दौरान धान के रकबे में करीब दोगुनी बढ़ोतरी हुई है। बडौदा ब्लॉक में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक एसएल गुर्जर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि 2018-19 में कुल 1 लाख 65 हजार हेक्टेयर रकबे में धान का रकबा 30-40 हजार हेक्टेयर था जो 2024 में बढ़कर करीब 85 हजार हेक्टेयर पहुंच गया है। इस कारण धान का उत्पादन 2018-19 में 1,68,612 टन से बढ़कर 2022-23 में 2,86,847 टन पर पहुंच गया है।

भूजल में सुधार से बदले हालात

पानी की उपलब्धता को इसकी वजह बताते हुए गुर्जर कहते हैं कि जिले में हालिया वर्षों में मॉनसून की अच्छी बारिश हुई जिससे भूजल की स्थिति बेहतर हुई है। इससे किसान परंपरागत रूप से यहां उगाई जाने वाली सोयाबीन और उड़द के स्थान पर धान को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है।

2024 के मॉनसून सीजन में श्योपुर में कुल 1,323 एमएम बारिश हुई जो सामान्य 666 एमएम बारिश से 99 प्रतिशत अधिक है। इस साल मध्य प्रदेश में किसी भी जिले में औसत के मुकाबले सबसे अधिक बारिश श्योपुर में हुई है। 2023 में सामान्य से दो प्रतिशत अधिक बारिश हुई थी। इससे पहले 2022 में 1000 एमएम से अधिक और 2021 में भी जिले में सामान्य से 100 प्रतिशत अधिक मॉनसूनी बारिश दर्ज की गई।      

पिछले पांच सालों में अधिक बारिश ने कराहल ब्लॉक के सिलपुरी गांव में रहने वाले हरिओम यादव सहित अधिकांश किसानों को धान उगाने के लिए प्रेरित किया। यादव कहते हैं कि उनके परिवार के हिस्से में 80 बीघा जमीन है। वह सोयाबीन और उड़द के स्थान पर धान की खेती करने लगे हैं। उनके गांव में करीब 2,500 बीघा कृषि भूमि है, जिसमें करीब 70 प्रतिशत पर इस साल धान लगाया गया है।

हरिओम यादव आगे बताते हैं कि पूरे जिले में यह चलन तेजी से बढ़ रहा है। हर साल धान के रकबे में बढ़त हो रही है क्योंकि ज्यादा बारिश से सोयाबीन और उड़द को नुकसान पहुंच रहा है। जिले में पिछले चार-पांच सालों में धान की खेती के कारण बोरवेल का भी चलन जोर पकड़ रहा है। पिछले चार वर्षों में बिजली की आपूर्ति दुरुस्त हुई है। इसने बोरवेल के चलन में मदद पहुंचाई है।

नागदा गांव के रोहित सुमन के मुताबिक, उनके 35 बीघा के खेत में पांच बोरवेल हैं। उनका कहना है कि धान की खेती में लागत तो अधिक है लेकिन मुनाफा भी अन्य फसलों के मुकाबले बेहतर है। उन्हें इस बात का एहसास है कि धान की खेती में रसायनों का अधिक प्रयोग है और भूजल की खपत भी अधिक है। खुद उनके गांव में इस साल 20 नए बोरवेल हुए हैं। वह मानते हैं कि धान की खेती में अधिक पानी लगता है और जिस रफ्तार से लोग धान की तरफ जा रहे हैं, उसके कारण आने वाले वर्षों में भूजल संकट गहरा सकता है।

रोहित और जिले के बहुत से किसानों ने धान की खेती यहां बसे पंजाबियों से सीखी है। सिलपुरी के किसान शंभुदयाल प्रजापति बताते हैं कि हम धान उगाना नहीं जानते थे, यह कला हमने पंजाबियों से सीखी है। कराहल में बसे 32 साल के अमनदीप ऐसे ही किसान हैं जो 2013 में श्योपुर आए थे। वह बताते हैं कि उनके पिताजी 1982 में बटिंडा से गुना जिले में आकर बसे थे। गुना में पानी की कमी होने पर वह श्योपुर में बस गए और यहां 50 बीघा खेत खरीद लिए। वह बताते हैं कराहल में करीब 50-60 घर पंजाबियों के हैं। पंजाबियों की अधिक आबादी के कारण बडौदा ब्लॉक में स्थित मऊ और जानपुरा गांव को मिनी पंजाब कहा जाने लगा है।

जिले के अधिकांश किसान बासमती धान की 17-18 वैरायटी को पसंद कर रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में धान की उपज में गुणात्मक वृद्धि के कारण श्योपुर अनाज मंडी में धान की खरीद तेजी से बढ़ी है। मंडी में 2018-19 में धान की आवक 2514 क्विंटल थी जो 2023-24 में बढ़कर 12,40,225 क्विंटल तक पहुंच गई। जबकि इस अवधि में सोयाबीन की आवक 95,198 क्विंटल से घटकर 7,197 क्विंटल तक पहुंच गई है।

मंडी में धान के व्यापारी मनोज धाकड़ कहते हैं कि इस वक्त श्योपुर मंडी में प्रतिदिन करीब 40 हजार क्विंटल धान बिक रहा है। उनका अनुमान है कि जिले के 90 प्रतिशत से अधिक रकबे में धान ही लगाया जा रहा है। यही वजह है कि मंडी में आ रही कुल उपज में 95 प्रतिशत हिस्सेदारी केवल धान की है। मंडी में धान किसानों की उपज 6-7 दिन में बिक रही है।

जानपुरा निवासी गुरुप्रीत सिंह कहते हैं कि धान के किसान पराली में आग लगा रहे हैं क्योंकि अभी प्रशासन का ध्यान इस तरफ नहीं है। श्योपुर के पड़ोसी जिले शिवपुरी में जाकनौंद गांव में रहने वाले अजय यादव कहते हैं कि उनके गांव में इस साल पहली बार दो लोगों ने धान की खेती की है। वह मध्य प्रदेश में धान के बढ़ते चलन को खतरे की घंटी के रूप में देख रहे हैं।

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