ग्राउंड रिपोर्ट: 1200 रुपए प्रति क्विंटल धान बेचने को मजबूर हुए किसान, एमएसपी है 1868 रुपए

देश में कृषि कानून लागू होने के बाद पहली बार अनाज की खरीद शुरू हो गई है। क्या है माहौल, पड़ताल करती एक रिपोर्ट-
उत्तर प्रदेश से सटी हरियाणा की अनाज मंडी होडल में किसान अपनी धान लेकर पहुंच रहे हैं। फोटो: श्रीकांत चौधरी
उत्तर प्रदेश से सटी हरियाणा की अनाज मंडी होडल में किसान अपनी धान लेकर पहुंच रहे हैं। फोटो: श्रीकांत चौधरी
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उत्तर प्रदेश से सटे हरियाणा के कस्बे होडल की अनाज मंडी में धान के ढेर लगे हैं। यहां लगभग 20 दिन से धान आ रहा है, लेकिन सरकार के दावे के विपरीत यहां धान की सरकारी खरीद शुरू नहीं हुई है। देश में नए कृषि कानून लागू हो चुके हैं, जिसके बाद किसान को देश में कहीं भी अपनी उपज बेचने की छूट है, लेकिन लगभग छह दशक पुरानी इस मंडी में न तो उत्तर प्रदेश के किसान का गेहूं खरीदा जा रहा है और न ही हरियाणा के।

ऐसे में किसान सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से लगभग 33 फीसदी कम कीमत पर आढ़ती को धान बेचने को मजबूर है। हालांकि एमएसपी की बजाय आढ़ती को कम कीमत पर अपनी उपज बेचने की किसान की कहानी नई नहीं है, लेकिन इस बार खास बात यह है कि किसान को पिछले साल के मुकाबले 400 रुपए प्रति क्विंटल कम मिल रहे हैं। पिछले साल जिन किसानों ने 1600 रुपए प्रति क्विंटल धान बेचा था, इस साल अब वही किसान उसी आढ़ती को 1200 से 1250 रुपए प्रति क्विंटल बेच रहे हैं। जबकि केंद्र सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1868 रुपए क्विंटल है।

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एक ओर, जहां केंद्र सरकार बार-बार यह दावा कर रही है कि नए कृषि कानून लागू होने के बावजूद न तो कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) की मंडियां बंद की जाएंगी और न ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदारी बंद की जाएगी, लेकिन हरियाणा सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अनाज मंडियों में सरकारी खरीद केवल उन किसानों से की जाएगी, जिन्होंने ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’ पोर्टल पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया हुआ है। यहां यह उल्लेखनीय है कि इस पोर्टल पर केवल हरियाणा के ही किसान का रजिस्ट्रेशन किया जाता है। वह भी तब, जब क्षेत्र का पटवारी या तहसील विभाग के कर्मचारी खेत का मुआयना करके यह सत्यापित कर दे कि किसान ने जो जानकारी दी है, वह बिल्कुल सही है।

हालांकि 30 सितंबर 2020 तक इस मंडी में धान का एक दाना नहीं खरीदा गया। जबकि केंद्रीय कृषि मंत्रालय की ओर से 30 सितंबर 2020 को जारी बयान में कहा गया है कि 29 सितंबर तक हरियाणा में 3,506 मीट्रिक टन और पंजाब में 41,303 मीट्रिक टन धान की खरीद की गई है।

सरकार के दबाव के बाद होडल का स्थानीय प्रशासन 30 सितंबर को दिनभर मशक्कत में जुटा रहा, लेकिन खरीद एजेंसी हेफेड ने धान में नमी की बात कहकर धान की खरीदारी नहीं की। करमन गांव के सरपंच राम गोपाल उन किसानों में शामिल हैं, जिन्होंने राज्य सरकार के पोर्टल मेरी फसल मेरा ब्यौरा में पहले ही रजिस्ट्रेशन करा लिया था, इसके चलते उनके पास 27 सितंबर की शाम को एसएमएस आया कि वह अपनी फसल मंडी में बेचने आ जाएं। उन्होंने अपनी तसल्ली के लिए मंडी अधिकारियों से बात की और फिर तुरत-फुरत में धान काटकर 28 को मंडी में ले आए, लेकिन तीन दिन बीतने के बाद उनकी फसल खरीदी नहीं जा रही है। उन्होंने बताया कि हेफेड अधिकारियों का कहना है कि धान में नमी है, लेकिन आप ही बताइए (धान दिखाते हुए) कहीं से नमी दिखती है।

वहीं बिजेंद्र भी अपने खेतों से कटी धान लेकर अनाज मंडी पहुंचे हैं। वह भी हरियाणा के होडल तहसील के गांव बासा के रहने वाले हैं। लेकिन उन्हें इस बात का पता नहीं था कि सरकार ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करा चुके किसानों का ही धान खरीदेगी। मंडी में आकर इस बात का पता चला। बिजेंद्र के अनुसार, प्रधानमंत्री कहते हैं कि किसान कहीं भी अपनी फसल बेच सकता है, लेकिन यहां तो हम अपने ही राज्य की मंडी में बेच नहीं पा रहे हैं, इसलिए आढ़ती को 1250 रुपए प्रति क्विंटल धान बेचना पड़ा।

होडल अनाज मंडी में 65 फीसदी से अधिक अनाज साथ लगते उत्तर प्रदेश के गांवों से आता है। इस बार भी उत्तर प्रदेश के छाता तहसील के कई गांवों के किसान धान लेकर आए हैं, पिछले साल तक उनकी उपज भी सरकारी एजेंसी खरीद लेती थी, लेकिन इस बार मना कर दिया गया है। छाता (उ.प्र.) तहसील के गांव सांखी के किसान रामकिशोर कहते हैं कि वह पिछले कई साल से हरियाणा के होडल में ही अपनी उपज बेचते हैं। उत्तर प्रदेश के कोसी कस्बे में भी अनाज मंडी है, लेकिन वहां बहुत कम सरकारी खरीद होती है। आढ़ती भी बहुत कम कीमत पर प्राइवेट खरीद करते हैं। ऐसे में, वह और उनके गांव के ज्यादातर किसान होडल मंडी में अपनी उपज बेचते हैं।

रामकिशोर बताते हैं कि यहां आकर वह उपज पहचान के आढ़ती के सुपुर्द कर देते हैं, जो कभी-कभी एमएसपी दिलवा देता है। जब सरकारी खरीद नहीं हो पाती तो वह थोड़ा कम कीमत देकर नगद पैसा दे देता है। रामकिशोर सवाल करते हैं कि एक ओर तो केंद्र सरकार कह रही है कि किसान देश के किसी भी हिस्से में अपनी उपज बेच सकता है तो दूसरी ओर हरियाणा सरकार ने ऐसा इंतजाम कर दिया है कि हम उत्तर प्रदेश के किसान यहां (हरियाणा में) अपनी उपज एमएसपी पर नहीं बेच सकते। इससे बेहतर स्थिति तो पहले थी। हम यहां आकर गेहूं-धान या तो एमएसपी पर बेच देते थे। अगर सरकार नहीं खरीदती थी तो आढ़ती को बेच देते थे। इस बार तो आढ़ती भी पिछले साल से काफी कम कीमत पर धान खरीद रहे हैं।

होडल अनाज मंडी के सचिव बताते हैं कि हरियाणा सरकार का फैसला है कि इस बार एमएसपी पर उस किसान की उपज खरीदी जाएगी, जिसने पहले हरियाणा सरकार के पोर्टल मेरी फसल मेरा ब्यौरा में रजिस्ट्रेशन कराया है। उन्होंने माना कि इससे पहले उत्तर प्रदेश के किसानों का भी अनाज एमएसपी पर खरीदा जाता था, क्योंकि उत्तर प्रदेश के गांव यहां से सटे हुए हैं, लेकिन पहले भी कई बार राज्य सरकार के निर्देश पर उत्तर प्रदेश के किसानों से खरीद रोक दी जाती रही है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि उत्तर प्रदेश का किसान अनाज मंडी में व्यापारी को सीधे अपनी उपज बेचता है, तब भी व्यापारी को मार्केट फीस देनी होती है।

पिछले साल के मुकाबले इस साल धान बहुत सस्ती खरीदने का कारण किसानों को बताया जा रहा है कि इस बार सरकारी खरीद केवल रजिस्टर्ड किसान की होगी, इसलिए बहुत से किसान अपना धान सरकारी एजेंसी को नहीं बेच पाएंगे और ये किसान भी व्यापारी को ही अपनी उपज बेचेगा। वैसे भी इस बार पिछले साल के मुकाबले उपज अच्छी हुई है। यानी मंडी में धान अधिक आएगा, इसलिए व्यापारियों ने धान की कीमत कम कर दी है। किसान की मजबूरी यह है कि वह धान को पकने के बाद दो से तीन दिन भी खेत में नहीं छोड़ सकता, क्योंकि इससे धान के रंग बदलने और खराब होने का खतरा रहता है। इसलिए जैसे ही धान पकता है, किसान तुरंत काट कर मंडी पहुंच जाता है और व्यापारियों को उनकी कीमत पर बेच देता है।

होडल व्यापार मंडल (अनाज मंडी) के पूर्व प्रधान सतपाल पहलवान का कहना है कि आढ़ती और किसान के बीच पारिवारिक रिश्ते होते हैं। जब किसान को पैसे की जरूरत होती है, वो आढ़ती से ले लेता है। लेकिन अब देश को समझाया जा रहा है कि आढ़ती बिचौलिया होता है और किसान को लूटता है। पिछले साल जब धान का एमएसपी 1815 रुपए क्विंटल था तब हमने किसान को 1650 रुपए तक कीमत दिलवाई थी। इस पर हमारा भी खर्च आता है और आढ़ती को 50 रुपए प्रति क्विंटल से ज्यादा नहीं बचता। इस बार सरकार की नीतियों की वजह से रेट कम हुआ है। एक ओर केंद्र सरकार कह रही है कि एमएसपी पर खरीद की जाएगी, दूसरी ओर, राज्य सरकारें कह रही हैं कि केवल पोर्टल पर रजिस्टर्ड किसान का ही धान खरीदा जाएगा। वैसे भी इस बार धान की पैदावार काफी हुई है। ऐसे में, मंडी में धान की आवक अधिक हो जाएगी और बड़े व्यापारी भी कम कीमत पर धान खरीदेंगे।

मंडी में आढ़त काम कर रहे कंज्यूमर फेडरेशन ऑफ हरियाणा के पूर्व महाप्रबंधक कश्मीरी लाल कहते हैं कि सरकार की नीतियों का तो असर पड़ा ही है। साथ ही, इस बार अब तक चावल का निर्यात भी शुरू नहीं हुआ है और न ही निर्यात शुरू होने की संभावना है, इसलिए भी पिछले साल के मुकाबले इस साल धान की कीमत कम है।

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