हरियाणा में पानीपत जिले के हल्दाना गांव में सूखे पौधों से बासमती धान अलग करता एक मजदूर (फाइल फोटो: विकास चौधरी / सीएसई)
हरियाणा में पानीपत जिले के हल्दाना गांव में सूखे पौधों से बासमती धान अलग करता एक मजदूर (फाइल फोटो: विकास चौधरी / सीएसई)

15 सितम्बर से पहले बासमती धान की बिक्री पर प्रतिबंध लगाए सरकार

दुर्भाग्य से किसान अधिक मुनाफे के लालच में ग्रीष्मकालीन साथी बासमती धान की रोपाई अप्रैल-मई में करके जुलाई-अगस्त में मंडियों में बेचने लगते हैं
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कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की फसल सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023-24 में भारत में बासमती धान का कुल क्षेत्रफल लगभग 25 लाख हेक्टेयर रहा और उत्पादन लगभग 1.5 करोड़ टन हुआ। इसमें से पंजाब का क्षेत्रफल 8.12 लाख हेक्टेयर, हरियाणा का 7.87 लाख हेक्टेयर तथा उत्तर प्रदेश का 4.61 लाख हेक्टेयर रहा।

बासमती चावल उत्पादन में पंजाब 3.84 लाख मीट्रिक टन उत्पादन के साथ पहले स्थान पर है, जबकि हरियाणा 3.67 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन के साथ दूसरे और उत्तर प्रदेश 2.0 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन के साथ तीसरे स्थान पर है। वैश्विक स्तर पर कुल बासमती चावल का लगभग 70 प्रतिशत उत्पादन भारत और 30 प्रतिशत पाकिस्तान में होता है।

भारतीय बासमती चावल अपने अतिरिक्त लंबे, पतले दानों और अनूठी सुगंध के कारण प्रसिद्ध है। पकने पर इसके दाने अपने मूल आकार से कम से कम दोगुने हो जाते हैं। इसकी नरम, फूली हुई बनावट और स्वादिष्ट सुगंध इसे अन्य सुगंधित लंबे दाने वाले चावलों से अलग करती है। इसी गुणवत्ता के कारण बासमती चावल की भारी मांग अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों में रहती है। एपीडा के अनुसार वर्ष 2024-25 में भारत ने लगभग 5.24 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात कर 50,312 करोड़ रुपये अर्जित किए।

बासमती चावल की विशिष्टता का मुख्य कारण हिमालय की तलहटी का कृषि-जलवायु वातावरण, सावधानीपूर्वक कटाई, प्रसंस्करण तथा परिपक्व होने की पारंपरिक विधियां हैं। बासमती धान में सुगंध जीन (बीएडीएच2) रासायनिक यौगिक 2-एसिटाइल-1-पाइरोलाइन (2-एपी) के उत्पादन को नियंत्रित करता है, जो इसकी खुशबू के लिए जिम्मेदार है।

तापमान में बदलाव के अनुसार इस यौगिक की मात्रा प्रभावित होती है। जब दिन-रात का औसत तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से कम रहता है तो यह जीन सक्रिय होकर चावल के दानों में सुगंध की मात्रा कई गुना बढ़ा देता है।

इसी वैज्ञानिक आधार पर उत्तर-पश्चिम भारत के सात राज्यों (पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली) को बासमती धान का भौगोलिक संकेत (जी.आई.) क्षेत्र घोषित किया गया है।

इन क्षेत्रों में सुगंध जीन की सकारात्मक कार्यशीलता के लिए उपयुक्त तापमान सितम्बर से नवम्बर तक रहता है। यही कारण है कि 15 सितम्बर से पहले पके और कटे हुए धान में सुगंध के लिए जिम्मेदार रासायनिक यौगिक 2-एपी की पर्याप्त मात्रा नहीं पाई जाती।

बीज अधिनियम 1966 की धारा 3 के अंतर्गत बासमती धान की किस्मों के बीज की गुणवत्ता, सुगंध की मात्रा और दानों की लंबाई-चौड़ाई के आधार पर निर्धारित की गई है।

लेकिन दुर्भाग्य से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसान अधिक मुनाफे के लालच में ग्रीष्मकालीन साथी बासमती धान की रोपाई अप्रैल-मई में करके जुलाई-अगस्त में मंडियों में बेचने लगते हैं। इस समय तैयार होने वाले धान में सुगंध का मुख्य रासायनिक यौगिक 2-एपी पर्याप्त मात्रा में नहीं बन पाता, इसलिए यह तकनीकी दृष्टि से बासमती धान की श्रेणी में नहीं आता।

व्यापारी और बिचौलिए ऐसे धान को सस्ते दामों पर खरीदकर असली बासमती में मिलावट करते हैं। इससे निर्यात होने वाले चावल की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ता है और भारत की साख को नुकसान पहुंचता है।

राष्ट्रीय पोर्टल एगमार्कनेट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष खरीफ मौसम में 18 अगस्त 2025 तक उत्तर प्रदेश और हरियाणा की मंडियों में 76 हजार टन से अधिक बासमती धान की बिक्री हो चुकी है। यह उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में उत्पादित बासमती धान का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा है।

वहीं, पंजाब और हरियाणा में ग्रीष्मकालीन साथी धान की खेती पर प्रिजर्वेशन ऑफ सब-सॉइल ग्राउंड वाटर अधिनियम 2009 के अंतर्गत पूर्ण प्रतिबंध है।

अतः राष्ट्रीय हित में भूजल संरक्षण और बासमती धान की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों में भी इसी तरह का कानूनी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। साथ ही, 15 सितम्बर से पहले मंडियों में बासमती धान की बिक्री पर पूर्ण रोक आवश्यक है।

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