खाद सब्सिडी कम करे सरकार, एलपीजी सिलेंडरों की तरह खाद के बोरों की संख्या सीमित करने की सलाह

कृषि लागत और मूल्य आयोग ने सरकार से सिफारिश की है कि यूरिया को पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) व्यवस्था में शामिल किया जाए
कृषि लागत और मूल्य आयोग ने कहा है कि सब्सिडी की वजह से सस्ता होने के कारण यूरिया का इस्तेमाल बढ़ रहा है। फोटो: विकास चौधरी
कृषि लागत और मूल्य आयोग ने कहा है कि सब्सिडी की वजह से सस्ता होने के कारण यूरिया का इस्तेमाल बढ़ रहा है। फोटो: विकास चौधरी
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फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण करने वाले कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने सरकार से सिफारिश की है कि यूरिया को पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) व्यवस्था में शामिल किया जाए।

हालांकि इससे लगभग चार माह पहले सरकार ने संसद को बताया था कि यूरिया को एनबीएस में स्थानांतरित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है। एनबीएस की शुरुआत 2010 में हुई थी, जिसमें सब्सिडी को खादों की पोषक सामग्री से जोड़ा जाता है।

सीएसीपी ने यह सिफारिश "खरीफ फसलों के लिए मूल्य नीति, मार्केटिंग सीजन 2023-24" रिपोर्ट में की है। इसी रिपोर्ट के आधार पर 7 जून 2023 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खरीफ (सीजन 2023-24) फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को मंजूरी दी है। 

रिपोर्ट में सीएसीपी ने कहा है, "जहां एक ओर खाद सब्सिडी लगातार बढ़ रही है, वहीं खाद से होने वाले फायदों में कमी आ रही है, इनमें पोषक तत्वों में असंतुलन, सूक्ष्म और द्वितीयक पोषक तत्वों की कमी, मिट्टी में जैविक कार्बन में गिरावट आदि शामिल हैं। यह कारण गिनाते हुए आयोग ने अनुशंसा की है पोषक तत्वों के असंतुलित उपयोग की समस्या को दूर करने के लिए यूरिया को एनबीएस व्यवस्था के तहत लाया जाना चाहिए।

वर्षों से खेतों में यूरिया का अनुपातहीन उपयोग पौधों के पोषक तत्वों के असंतुलन के बिगड़ने के प्राथमिक कारणों में से एक रहा है। यूरिया एनबीएस के अंतर्गत नहीं आता है, जिसमें फॉस्फोरस और पोटेशियम जैसे गैर-यूरिया खाद शामिल हैं।

यूरिया को एनबीएस से बाहर रखने का मतलब है कि सरकार ने यूरिया की एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) और इसकी सब्सिडी पर सीधा नियंत्रण बनाए रखा है। एनबीएस नीति में शामिल अन्य खादों की एमआरपी पर सरकार का नियंत्रण नहीं रहता। इन खादों के निर्माताओं को "उचित सीमा" के भीतर एमआरपी तय करने की स्वतंत्रता है और उनकी पोषक सामग्री से जुड़ी एक निश्चित प्रति टन सब्सिडी दी जाती है।

इससे पिछले कुछ वर्षों में एनबीएस में शामिल खादों की एमआरपी में वृद्धि हुई है, जबकि यूरिया की कीमत में कोई खास बदलाव नहीं आया। इससे किसानों का झुकाव यूरिया के प्रति अधिक रहा और इसकी कम कीमत के कारण किसानों ने इसका अत्यधिक उपयोग किया है, जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है।

अप्रैल में यूरिया की कीमत 5,360 रुपए प्रति मीट्रिक टन और डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) की कीमत 27,000 रुपए प्रति मीट्रिक टन थी। इस अंतर की वजह से अप्रैल में यूरिया की बिक्री 11.77 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गई, वहीं दूसरी ओर रसायन और खाद मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार डीएपी की बिक्री लाख मीट्रिक टन और एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाशियम) की बिक्री 2.62 लाख मीट्रिक टन ही हुई।

भारत दुनिया में खादों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है और पिछले कुछ वर्षों में खाद की खपत में काफी वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पोषक तत्वों के असंतुलन का मुख्य कारण खाद सब्सिडी की वजह से कम कीमत होना है। सब्सिडी नाटकीय रूप से बढ़ी हैं और तेजी से बढ़ती जा रही हैं।

सीएसीपी ने कहा है कि जिस तसह सब्सिडी वाले घरेलू गैस सिलेंडरों की संख्या सीमित कर दी गई है। उसी तरह किसानों को भी खादों के सब्सिडी वाले बैग की संख्या सीमित की जानी चाहिए। सीएसीपी ने कहा, "यह सरकार के सब्सिडी बोझ को कम करेगा और कृषि अनुसंधान और विकास (अनुसंधान और विकास) और बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश करने के लिए संसाधन जारी करेगा।"

रिपोर्ट में कहा गया है, "इसे आसानी से लागू किया जा सकता है, क्योंकि किसानों को सब्सिडी वाले खादों की बिक्री खुदरा दुकानों पर स्थापित प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) उपकरणों के माध्यम से की जाती है और लाभार्थियों की पहचान आधार कार्ड, केसीसी, मतदाता पहचान पत्र आदि के माध्यम से की जाती है।"

खरीफ सीजन 2023-24 के लिए सरकार ने 17 मई, 2023 को 1.08 लाख करोड़ रुपए खाद सब्सिडी के रूप में स्वीकृत किए। इसमें से 70,000 करोड़ रुपए यूरिया सब्सिडी और 38,000 करोड़ रुपए डीएपी और अन्य खादों पर सब्सिडी के लिए खर्च किए जाएंगे।

इस बीच, वैश्विक खाद कीमतें 2022 के अपने उच्चतम स्तर से कम हो गई हैं लेकिन अभी भी ऐतिहासिक रूप से उच्च स्तर पर बनी हुई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, "किसानों को उचित मूल्य पर खादों की समय पर और पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए खादों और कच्चे माल की उच्च और अस्थिर अंतरराष्ट्रीय कीमतें एक बड़ी चुनौती बनी हुई हैं।"

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