
केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात पर लग रहा 20 प्रतिशत शुल्क वापस लेने की घोषणा की है। माना जाता है कि इस शुल्क की वजह से ही किसानों को प्याज की सही कीमत नहीं मिल पा रही है।
सरकार ने 22 मार्च 2025 को यह घोषणा की। लगभग हर घर की रसोई में इस्तेमाल होने वाली इस फसल के निर्यात पर 8 दिसंबर 2023 से पाबंदी लगा दी गई थी। तर्क दिया गया था कि घरेलू आपूर्ति में कमी होने के कारण भारतीय उपभोक्ताओं को प्याज महंगे दामों में न खरीदना पड़े, इसलिए यह फैसला लिया गया है।
शुरू में यह प्रतिबंध 31 मार्च, 2024 को समाप्त होने वाला था, लेकिन अंततः 4 मई को इसे हटा लिए जाने से पहले इसे अनिश्चित काल के लिए बढ़ा दिया गया था।
लोकसभा 2024 के चुनाव के करीब आते ही प्रतिबंध हटा लिया गया, लेकिन प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य 550 डॉलर (45,884 रुपये) प्रति टन रखा गया, जिस पर 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाया गया। 13 सितंबर, 2024 को इसे घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया।
अब 22 मार्च 2025 को उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार निर्यात शुल्क की वापसी 1 अप्रैल, 2025 से प्रभावी होगी। 2024 से ही किसान, खासकर महाराष्ट्र में, जहां एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव है, प्रतिबंध हटाने के लिए विरोध कर रहे हैं।
2023 में घरेलू कमी को दूर करने के लिए शुरुआती प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन किसानों के अनुसार, इसे मार्च से आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए था क्योंकि बाद के महीनों में फसल पर्याप्त थी। और जब प्रतिबंध हटाया गया, तो निर्यात शुल्क लगाने के पीछे कोई तर्क नहीं दिया गया है।
शनिवार को एक बयान में सरकार ने यह भी कहा कि बेंचमार्क बाजारों लासलगांव और पिंपलगांव में इस महीने से प्याज की आवक बढ़ गई है, जिससे कीमतों को कम करने में मदद मिली है। 21 मार्च, 2025 को लासलगांव और पिंपलगांव में मॉडल कीमतें क्रमशः 1,330 रुपए प्रति क्विंटल और 1,325 रुपए प्रति क्विंटल थीं।
इसका मतलब यह हुआ कि किसान अपनी उत्पादन लागत भी नहीं निकाल पाए, क्योंकि एक किलोग्राम प्याज की खेती का खर्च औसतन 2,200-2,500 रुपये प्रति क्विंटल है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, हालांकि प्याज की मौजूदा मंडी कीमतें पिछले वर्षों की इसी अवधि के स्तर से ऊपर थीं, लेकिन अखिल भारतीय भारित औसत मॉडल कीमतों में 39 प्रतिशत की गिरावट देखी गई।
इसी तरह, पिछले एक महीने में अखिल भारतीय औसत खुदरा कीमतों में 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अनुमान के अनुसार, इस साल रबी का उत्पादन 22.7 मिलियन टन था। यह पिछले साल के 19.2 मिलियन टन उत्पादन से 18 प्रतिशत अधिक है।