भारत अभी भी दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने के बजाए आयात निर्भर बना हुआ है। खासतौर से अरहर दाल की कीमतों में हर वर्ष अप्रत्याशित उछाल देखने को मिलता है। फिलहाल दालों की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए भारत सरकार ने उड़द और अरहर दाल के मुक्त आयात को एक साल और बढ़ाकर 31 मार्च 2024 तक कर दिया है।
इससे पहले मार्च 2022 में सरकार ने 31 मार्च 2023 तक अरहर और उड़द दालों के मुफ्त आयात की अनुमति दी थी। अब आयातक बिना किसी मात्रात्मक प्रतिबंध के कितनी भी मात्रा में उड़द और तूर का आयात कर सकते हैं। सरकार ने यह कदम देश में पर्याप्त घरेलू आपूर्ति सुनिश्चित करने और इन दालों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए उठाया है। भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक, आयातक और उपभोक्ता है। आंकड़ों के मुताबिक भारत अपनी दालों की जरूरत का 10 से 12 फीसदी आयात से पूरा करता है।
आंकड़ों के मुताबिक भारत में दलहन का उत्पादन वैश्विक उत्पादन की 25 फीसदी हिस्सेदारी करता है। वहीं, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का 15 फीसदी और विश्व की खपत का 27 फीसदी है। भारत दालों का सर्वाधिक आयात कनाडा और उसके बाद म्यांमार से करता है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक 2020-21 में भारत में कुल दलहन उत्पादन करीब 2.6 करोड़ टन रहा।
भारत सरकार ने दालों के आयात के लिए विदेशों के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। मसलन एक समझौते के तहत 2021 से 2025 तक मोजाम्बिक से प्रति वर्ष 2 लाख टन अरहर का आयात करेगा। इसके अलावा 2025 तक मलावी से प्रति वर्ष 50,000 टन अरहर और 2025 तक म्यांमार से प्रति वर्ष 100,000 टन अरहर का आयात करेगा।
भारत सरकार ने अधिसूचित किया है कि म्यांमार, मलावी और मोजाम्बिक से दालों के आयात को पांच बंदरगाहों - मुंबई, तूतीकोरिन, चेन्नई, कोलकाता और हजीरा के माध्यम से अनुमति दी जाएगी। मुंबई बंदरगाह महाराष्ट्र में, तमिलनाडु में तूतीकोरिन और चेन्नई, पश्चिम बंगाल में कोलकाता और गुजरात में हजीरा में है।
भारत में सर्वाधिक अरहर उत्पादन में महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना हैं जबकि यदि सभी तरह के दालों के मामले में सर्वाधिक बड़े उत्पादक राज्यों को देखें तो इनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र का नाम शामिल है।