जीआई विवाद : भारत से एक दशक बाद अब पाकिस्तान ने दिया बासमती को जीआई टैग

पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय फोरम में अपना पक्ष मजबूत करने के लिए एक लंबे इंतजार के बाद बासमती चावल का जीआई पंजीकरण किया है लेकिन जानकारों का कहना है कि भारत पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
पानीपत की अनाज मंडी में बासमाती धान बेचने आया किसान, अपनी फसल के बिकने का इंतजार कर रहा है। फोटो: विकास चौधरी
पानीपत की अनाज मंडी में बासमाती धान बेचने आया किसान, अपनी फसल के बिकने का इंतजार कर रहा है। फोटो: विकास चौधरी
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पाकिस्तान ने एक दशक से भी ज्यादा इंतजार के बाद बासमती चावल को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग दिया है। पाकिस्तान का यह कदम भारत के उस आवेदन के बाद उठाया गया है, जिसमें भारत ने यूरोपियन यूनियन में पाकिस्तान से अलग अपने बासमती के लिए विशेष जीआई टैग की मांग की गई थी।

भारत ने मई, 2010 में अपने यहां सात राज्यों में हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली के बाहरी क्षेत्रों, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ भागों में बासमती को जीआई टैग दिया था। 

किसी उत्पाद को उसके उत्पत्ति की विशेष भौगोलिक पहचान से जोड़ने के लिए जीआई टैग दिया जाता है ताकि वह उत्पाद अलग और खास बन सके। पाकिस्तान के बासमती चावल उत्पादक इसकी मांग लंबे समय से कर रहे थे। दरअसल पाकिस्तान में जीआई पंजीकरण के लिए कानून की जद्दोजहद करीब दो दशक से चल रही थी, जिसे हाल ही में अमलीजामा पहनाया गया है।   

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के वाणिज्य एवं निवेश मामलों के सलाहकार अब्दुल रज्जाक दाउद ने 26 जनवरी, 2021 को अपने ट्वीट में  लिखा है कि मुझे खुशी है कि पाकिस्तान ने ज्योग्राफिकल इंडिकेशन एक्ट, 2020 के तहत बासमती चावल को जीआई में पंजीकृत कर लिया है।

आधिकारिक ईयू जर्नल में  बताया गया है कि 11 सितंबर, 2020 को भारत ने अपने यहां पैदा होने वाली बासमती के लिए विशेष भौगोलिक पहचान (एक्सकलूसिव ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) के लिए आवेदन किया था। भारत ने अपने बासमती की अहमियत बनाए रखने के लिए यूरोपियन यूनियन में पाकिस्तान से अलग होकर ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग की मांग की थी।

वहीं, बासमती का जीआई पंजीकरण न होने के कारण भारत के इस आवेदन के बाद पाकिस्तान को यह चिंता सताने लगी थी कि जीआई टैग के बिना उसका बासमती  कहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में पूरी तरह से बाहर न हो जाए, क्योंकि 2006 में ईयू की अनुमति के बाद भी पाकिस्तान ने अब तक अपने बासमती को जीआई टैग में पंजीकृत नहीं किया था। उनका जीआई कानून बीते दो दशक से लंबित था।   

अब पाकिस्तान में जीआई एक्ट, 2020 के तहत जीआई रजिस्ट्री बनाई गई है जो कि जीआई पंजीकरण का काम करती है। रज्जाक दाऊद ने ट्वीट में आगे लिखा है कि इस कदम से हमारे उत्पाद का बेजा इस्तेमाल नहीं हो सकेगा। साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में उनके बामसती को संरक्षण भी मिलेगा। उन्होंने अपने लोगों से इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन के तहत रजिस्ट्रेशन के लिए उत्पादों के सुझाव भी मांगे हैं।

जीआई टैग किसी उत्पाद को बाजार में उसके विशेष होने का कानूनी संरक्षण भी देता है।  

भारत-पाकिस्तान दायरे में हिमायल के कुछ खास भौगोलिक निचले क्षेत्रों में ही बासमती पैदा होती है। इस भौगोलिक क्षेत्र की जलवायु ही इसे एक अनूठा स्वाद -सुगंध और आकार देती है, जिसकी अच्छी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में है। कई ऐसे चावल अब दुनिया भर में पैदा होते हैं जो लंबे दाने वाले होते हैं लेकिन उनमें कोई विशेष सुगंध नहीं होती है। इसलिए बासमती का महत्व अब भी बना हुआ है। 

पाकिस्तान के इस कदम का भारत पर क्या कोई असर होगा? 

बासमती चावल के निर्यातक और चमन लाल सेतिया एक्सपोर्ट्स लिमिटेड के चेयरमैन विजय कुमार सेतिया ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि  2006 में जीई टैग को लेकर भारत-पाकिस्तान का मामला यूरोपियन यूनियन में पहुंचा था। वहां, पर जीआई टैग मान्यता के लिए भारत ने अपने बहुत ही खास और वैज्ञानिक मानकों पर बासमती उत्पादकों में सात राज्यों की सूची दी थी जबकि पाकिस्तान ने अपने बहुत ही छोटे भौगोलिक हिस्से में पैदा होने वाली बासमती के लिए सिर्फ 14 जिलों के नाम ही गिनवाए थे।

अब पाकिस्तान ने इन्हीं 14 जिलों में, जहां बासमती पैदा की जाती है उसको अपने देश में जीआई मान्यता दे दी है। सेतिया ने कहा कि  यह भारत के लिए काफी अच्छा है क्योंकि उन्होंने अपनी सीमा परिभाषित कर दी है और भारत का बहुत बड़ा भू-भाग है जो बासमती जीआई के दायरे में है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की बासमती का दबदबा बना रहेगा। अंतरराष्ट्रीय लड़ाई में भी पाकिस्तान शायद भारत से अब कमजोर भी  पड़ जाए। 

क्या जीआई टैग के पंजीकरण से भीतरी कलह सुलझेगी? 

वर्ष 2006 में ईयू के सामने भारत ने बासमती की गुणवत्ता को सर्वोपरि रखते हुए जीआई सूची से उस वक्त राजस्थान को भी बाहर कर दिया था, जबकि मध्य प्रदेश बासमती के जीआई टैग को लेकर कुछ वर्षों से अपना दावा कर रहा है। जानकारों का कहना है कि यदि बासमती का दायरा विशेष और जलवायु मानकों पर सीमित नहीं होगा और एक के बाद एक राज्य दावा करेंगे तो बासमती की गुणवत्ता प्रभावित हो जाएगी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक बड़ा झटका लगेगा। इसी तरह से पाकिस्तान यदि अब अपने जीआई टैग के भौगोलिक दायरे को बढ़ाने की कोशिश करेगा तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसे भी एक बड़ा झटका मिल सकता है। हालांकि, पाकिस्तान के भीतर यदि कोई जिला अब नए सिरे से जीआई क्लेम करेगा तो कलह वहां भी बढ़ सकती है। 

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