नैनौ यूरिया ट्रायल से खेत तक, भाग 3 : वैज्ञानिकों के पास एक भी फसल का तीन सीजन का आंकड़ा उपलब्ध नहीं

आईसीएआर के मुताबिक खाद को मंजूरी के लिए कम से कम तीन सीजन का आंकड़ा उपलब्ध होना चाहिए।
नैनौ यूरिया ट्रायल से खेत तक, भाग 3 : वैज्ञानिकों के पास एक भी फसल का तीन सीजन का आंकड़ा उपलब्ध नहीं
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नैनो यूरिया के कॉमर्शियल उत्पादन की इजाजत क्या वाकई जल्दी दी गई। किसी भी नए खाद को मंजूरी देने के लिए भारतीय कृषि अनसुंधान परिषद (आईसीएआर) के द्वारा कम से कम तीन सीजन का आंकड़ा होना चाहिए। अगस्त, 2021 में नैनो तरल यूरिया के कॉमर्शियल उत्पादन की मंजूरी दी गई थी।

नैनो यूरिया ट्रायल के पब्लिक डाटा के मुताबिक रिसर्च और फार्मर फील्ड ट्रायल के लिए 4 सीजन में 13 फसलों का 43 स्थानों (ऑन स्टेशन) और 94 क्रॉप का 21 राज्यों में खेतों में ट्रायल किया गया है। हालांकि, किसी एक भी फसल का तीन सीजन का डाटा उपलब्ध नहीं है। इफको के जरिए डाउन टू अर्थ को दी गई जानकारी के मुताबिक एक सिंगल क्रॉप का उनके पास दो सीजन का ही डाटा अब तक मौजूद है।

गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के एन रघुराम ने कहा कि “ एक नई तकनीकी के तौर पर नैनो तरल यूरिया का आना स्वागत योग्य कदम है। हालांकि, इसे अनुमति देने के लिए यदि अगर तीन साल और छह सीजन का क्रॉप ट्रायल डाटा होता तो काफी बेहतर होता। जब सरकार ने नैनो यूरिया को वर्ष 2021 में अनुमति दी तब तक बहुत कम फसलों पर इसके ट्रायल का डाटा उपलब्ध था, यहां तक कि किसी भी फसल पर नैनो यूरिया के इस्तेमाल के पूरे तीन सीजन का आंकड़ा भी सरकार के पास नहीं था। ऐसे में इसके भविष्यगत परिणाम अभी क्या होंगे कहा नहीं जा सकता।”

वह आगे कहते हैं “500 एमएल का एक यूरिया 45 किलो यूरिया के बराबर काम कर सकता है। मेरा मानना है कि नैनो तरल यूरिया से यदि उपज बढ़े न तो कम से कम घटे भी ना। इसके अलावा इसका  लाभदायक कीट, पर्यावरण, जैव सुरक्षा व मानवों पर कोई बुरा असर नहीं पड़ना चाहिए।

रघुराम कहते हैं मिसाल के तौर पर किसी जीएम क्रॉप को पहले लैब से गुजरना होता है उसके बाद उसे फील्ड ट्रायल के लिए लाया जाता है। रेग्युलेटरी बॉडी इसका परीक्षण करती है, जिसमें वह बिंदुवार लैब रिजल्ट्स को पास करता है। ऐसे में नैनो यूरिया का लैब रिजल्ट क्या रहा है इसके बारे में हम नहीं जानते हैं।

वहीं, पार्लियामेंट स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक नैनो यूरिया का डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के गाइडलाइन के आधार पर बायो-सेफ्टी और टॉक्सिसिटी टेस्ट किया गया है। यह गाइडलाइन ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कॉरपोरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) ने तैयार किया है जो कि वैश्विक स्तर पर मान्य है। रिपोर्ट में बताया गया है कि नैनो यूरिया पूरी तरह से मानवों, पशु और पक्षियों व राइजोस्पर ऑरगेनिज्म व पर्यावरण के लिए सुरक्षित है।

रघुराम कहते हैं किसी भी क्रिटिकल ट्रॉयल में फेस वन से फेस 3 तक जो भी उत्पाद फेस 3 को पास नहीं करता है उसे हम बेहतर उत्पाद नहीं मानते हैं। अगर इमीडिएट क्राइसिस नहीं था तो नैनो तरल यूरिया के ट्रायल को पूरा करने के बाद किसानों के बीच लाया जाना चाहिए था।

नैनो यूरिया के रॉ मटेरियल को लेकर भी संशय बना हुआ है। इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं है।

पढ़िए अगले भाग में क्यों है नैनो यूरिया एक मिस्ट्री...

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