पारम्परिक तरीके से धान को पौधे से अलग करते किसान; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
पारम्परिक तरीके से धान को पौधे से अलग करते किसान; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

बासमती चावल न्यूनतम निर्यात मूल्य नीति: भारतीय किसानों का नुकसान, पाकिस्तान का फायदा!

देश के बासमती धान किसानों को साल 2023-24 में 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का आर्थिक नुकसान हुआ और 2024-25 में अब तक लगभग एक हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है
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केन्द्र सरकार ने पिछले वर्ष बासमती धान मंडियों में आने से पहले, 25 अगस्त 2023 को बासमती चावल के निर्यात के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य 1200 अमेरिकी डालर प्रति टन से कम पर करने पर प्रतिबंध लगाया था, जिसे बाद मे 10 अक्टूबर 2023 को घटाकर 950 अमेरिकी डालर प्रति टन कर दिया।

फिर इस प्रतिबंध को 13 सितम्बर 2024 को पूर्णतया हटा भी लिया गया। इसके चलते भारतीय बासमती चावल के निर्यात मेंं भारी कमी आ गई है और भारतीय बाजारों में बासमती धान के औसत भाव 1200-1500 रुपये प्रति किवंटल तक कम हो गए।

सरकार के इस फैसले की वजह से बासमती धान उगाने वाले किसानों को 25,000 से 30,000 रुपए प्रति एकड़ का औसतन नुकसान हुआ है। और अगर पूरे देश के बासमती धान किसानों की बात करें तो उन्हें साल 2023-24 में तकरीबन दस हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का अर्थिक नुकसान झेलना पड़ा और वर्ष 2024-25 में लगभग एक हजार करोड़ रुपए का नुकसान अभी तक हो चुका है। 

निसंदेह, वर्ष 2023-24 में देश में 13.6 करोड़ टन का रिकार्ड धान उत्पादन हुआ। भारत सरकार द्वारा 2 फरवरी 2024 को जारी सूचनानुसार, सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए 600 लाख मीट्रिक टन धान की रिकार्ड सरकारी खरीद की।

केन्द्र सरकार बासमती धान की ना तो सरकारी खरीद करती है और ना ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बासमती चावल वितरण करती है। फिर बासमती चावल पर न्यूनतम निर्यात मूल्य नीति सरकार ने किसके फायदे के लिए बनाई है ?

यह नीति न केवल भारतीय किसानों के लिए नुकसानदायक साबित हो रही है, बल्कि इसके चलते बासमती चावल का निर्यात भी कम हुआ, जिसका सीधा फायदा पाकिस्तान के बासमती चावल निर्यात को मिला।

पाकिस्तान के प्रमुख अखबार 'दी डान' में 27 मई 2024 को प्रकाशित खबर के अनुसार बासमती चावल पर भारत सरकार द्वारा लगाए निर्यात प्रतिबंध के कारण, पिछले वर्ष पाकिस्तान के बासमती चावल निर्यात मे उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज हुई। पाकिस्तान ने वर्ष 2022-23 के 32 लाख टन के मुकाबले वर्ष 2023-24 में लगभग दोगुना 60 लाख टन बासमती चावल निर्यात किया।

एपिडा (कृषि और प्रसंसकृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्रधिकरण) द्वारा दिसम्बर 2023 में प्रकाशित सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, खरीफ सीजन-2023, में देश में कुल 21.354 लाख हेक्टयर भूमि पर बासमती धान उगाई और 98.46 लाख टन उत्पादन हुआ।

जिसमें से लगभग एक तिहाई क्षेत्र पर कम अवधि में पकने वाली पूसा-1509, 1692, 1847 किस्में शामिल थी और इनका उत्पादन 31 लाख टन हुआ। इसी सर्वेक्षण में आगे बताया गया है कि वर्ष 2022-23 मे 3400-3800 रुपए पर बिकने वाली बासमती धान किस्म पूसा-1509 के भाव वर्ष 2023-24 मे 2200-2600 रुपए प्रति क्विंटल तक कम हो गए, यानि सरकार द्वारा 25 अगस्त 2023 को न्यूनतम निर्यात मुल्य आदेश लागू करने से बासमती धान के भाव में 1200 से 1400 रुपए प्रति किवंटल कमी आई।

उल्लेखनीय है कि बासमती धान की खेती मुख्यत हरियाणा- पंजाब - पश्चिम उत्तर प्रदेश आदि उन राज्यों में होती है, जहां के किसानों ने केन्द्र के तीन काले कृषि के खिलाफ अन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई और जो अभी भी एमएसपी गारंटी कानून की मांग को लेकर अन्दोलनरत है। अब ये मामला माननीय सर्वोच न्यायालय के संज्ञान में है।

केन्द्र सरकार की बासमती चावल न्यूनतम निर्यात मूल्य नीति से इन्ही राज्यों के किसानों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ। जो वर्ष 2023-24 में लगभग दस हजार करोड़ रुपए और वर्ष 2024- 25 में एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है। 

केंद्र सरकार ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के मद्देनजर 13 सितम्बर 2024 को इस प्रतिबंध को पूर्णतया हटा लिया, लेकिन भारत सरकार के एगमार्कनेट पोर्टल के अनुसार तब तक किसान पचास लाख किवंटल (पांच लाख टन) बासमती धान कृषि उपज मंडियों में 2000-2600 रुपए प्रति क्विंटल का भारी आर्थिक नुकसान उठाकर बेच चुके थे, जिसका सीधा फायदा बासमती राइस मिलर्स को हुआ। 

 उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार द्वारा, इन प्रतिबंधों को पूर्णतया हटाने के अगले ही दिन 14 सितम्बर 2024 को बासमती धान के भाव मे 500-800 रुपए प्रति किवंटल की तेजी दर्ज हुई। इसलिए देश का किसान पूछता है कि केन्द्र सरकार ने ऐसी बासमती चावल न्यूनतम निर्यात मुल्य नीति क्यों बनाई, जिससे राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध भारत के बासमती चावल निर्यात में भारी कमी आई और जिसकी बदौलत पाकिस्तान के बासमती चावल निर्यात में एक वर्ष में दोगुनी वृद्धि दर्ज हुई। साथ ही, बासमती धान किसान को लगभग 30,000 रुपए प्रति एकड़ से ज्यादा का भारी आर्थिक नुकसान हुआ।   

(डॉ. लाठर आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक हैं और लेख में व्यक्त विचार उनके व्यक्तिगत है)

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