पहली बार परती ही छूट गई मोकामा टाल की 10 हजार एकड़ जमीन, किसान परेशान

दाल के कटोरे के नाम से मशहूर टाल इलाके में इस बार गंगा नदी का पानी जनवरी के पहले सप्ताह तक जमा रह गया, जो अमूमन सितंबर महीने तक निकल जाता था
बिहार के मोकामा टाल में इस साल करीब 10 हजार एकड़ जमीन परती छूट गई। फोटो: पुष्यमित्र
बिहार के मोकामा टाल में इस साल करीब 10 हजार एकड़ जमीन परती छूट गई। फोटो: पुष्यमित्र
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अपनी खास भौगोलिक स्थिति के कारण पहचाने जाने वाले मोकामा टाल में इस साल करीब 10 हजार एकड़ जमीन परती छूट गई। स्थानीय लोग बताते हैं कि उनके ज्ञात इतिहास में ऐसा पहली दफा हुआ है। दाल के कटोरे के नाम से मशहूर टाल इलाके में इस बार गंगा नदी का पानी जनवरी के पहले सप्ताह तक जमा रह गया, जो अमूमन सितंबर महीने तक निकल जाता था, इस वजह से यहां इस साल रबी की फसल की बुआई नहीं हो पायी। स्थानीय किसान इस परिस्थिति को देखकर सकते में हैं और इससे निबटने के उपाय तलाश रहे हैं, सरकार से भी इसके समाधान की मांग कर रहे हैं।

खास किस्म की भौगोलिक स्थिति होती है टाल की

ताल शब्द के अपभ्रंश होने से बने शब्द टाल की एक अलग किस्म की भौगोलिक स्थिति होती है। बिहार के पटना, नालन्दा, शेखपुरा और लखीसराय जिले के तकरीबन एक लाख हेक्टेयर जमीन पर फैला इस मोकामा-बड़हिया टाल गंगा का प्राकृतिक जल संरक्षण क्षेत्र है। हर साल बारिश के दिनों में इस पूरे इलाके में आठ से दस फीट की ऊंचाई तक पानी जमा हो जाता है, जो गंगा नदी का और दक्षिण बिहार से आने वाली दूसरी नदियों का अतिरिक्त जल होता है। और फिर बारिश की समाप्ति के बाद सितंबर महीने में यह पानी एक स्थानीय नदी हरोहर के जरिये निकलने लगता है और धीरे-धीरे गंगा नदी में पहुंच जाता है।

इस तरह यह एक किस्म का गंगा का रिजर्व है। सितंबर में जब यह इलाका खाली हो जाता है तो नवंबर में यहां के किसान अपनी जमीन पर रबी की बुआई कर लेते हैं। अमूमन वे दलहन और तिलहन की ही खेती करते हैं। हर साल जलप्लावित होने के कारण यह इलाका काफी उपजाऊ माना जाता है और वहां अभी भी खाद का इस्तेमाल न के बराबर होता है, खेती में सिंचाई की भी जरूरत नहीं होती। इस वजह से साल में एक ही फसल पैदा करके वहां के किसानों का काम चल जाता है।

पिछले कुछ साल से बिगड़ रही स्थिति

मगर पिछले कुछ साल से इसके निकास में अतिक्रमण और दूसरी मानवीय गतिविधियों के कारण यहां की स्थिति बिगड़ने लगी है। टाल में जमा पानी के निकासी में विलंब होने लगा है। स्थानीय युवा और प्रगतिशील किसान प्रणव शेखर शाही कहते हैं, इस साल मरांची टाल और हाथीदह टाल के गहरे इलाके में जनवरी के पहले सप्ताह तक पानी जमा रहा, इसलिए लोग चाह कर भी फसल की बुआई नहीं कर पाये। पहले भी पानी यहां विलंब से निकलता रहा था। मगर ऐसी स्थिति नहीं आयी थी। इस बार पानी आने में भी देरी हो गयी और निकासी में भी।

प्रणव बताते हैं कि इस इलाके से जलनिकासी का एक बड़ा रास्ता हरोहर नदी है और इसके अलावा विभिन्न टालों में कट बने हुए हैं, जिससे पानी गंगा तक पहुंचता है। मगर हाल के वर्षों में ये कट अतिक्रमण के शिकार हो गये हैं। उन पर लोगों ने घर बना लिये हैं। हरोहर नदी पर बाहर के मछली व्यापारियों का कब्जा है। वे पानी को लंबे समय तक रोक के रखना चाहते हैं, ताकि उन्हें अधिक से अधिक मछली मिल सके। अगर पानी सितंबर में ही खाली हो जायेगा तो उन्हें मछली कैसे मिलेगी?

स्थानीय किसान नेता अरविंद कुमार सिंह कहते हैं, इस साल एक और गड़बड़ी हुई है। बिहार के जल संसाधन विभाग की ओऱ से हरोहर नदी पर स्लूइस गेट बनवाया जा रहा है। उसकी वजह से भी पानी के निकासी में दिक्कत हुई। उन्होंने स्थानीय किसानों की तरफ से मांग की है कि जल्द से जल्द वे इस मामले की जांच कर टाल से जल निकासी में व्यवधानों को खत्म कराएं।

इस साल मरांची और हाथीदह बुजुर्ग के ज्यादातर किसान खाली रह गये हैं। इसके कारण वहां कई तरह का संकट उत्पन्न हुआ है। छोटे किसानों के सामने भुखमरी की नौबत है, मजदूर पलायन कर गये हैं। बड़े किसानों को भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में वे खुद भी आपस में बैठक कर इसका समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं। अपने स्तर पर वे टाल का जल निकालने के लिए बने कट की सफाई करने की भी योजना बना रहे हैं।

स्थानीय पत्रकार अनुभव सिंह कहते हैं, पीढ़ियों से इस इलाके के किसानों की सिर्फ एक फसल से संपन्न कर देने वाला टाल इलाका अपने इतिहास के सबसे बड़े संकट से जूझ रहा है। किसानों को लगता है कि अगर ऐसा रहा तो कहीं टाल का अस्तित्व ही खत्म न हो जाये। इसलिए अब इस बात को लेकर सर्वसम्मति दिख रही है कि हरोहर नदी और टाल से जुड़े दूसरे कट की साफ-सफाई की जाये, इसे अतिक्रमण मुक्त कराया जाये। इसलिए थोड़ी उम्मीद बनती है। वरना इस बार तो जो हुआ उसने इस पूरे क्षेत्र को डरा ही दिया है।

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