किसानों के उग्र आंदोलन के बाद राठीखेड़ा एथेनॉल फैक्ट्री निर्माण रुका, आशंकाओं की होगी जांच

राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में एथेनॉल बनाने वाली फैक्ट्री का विरोध स्थानीय किसान डेढ़ साल से कर रहे थे
एथेनॉल फैक्ट्री के खिलाफ प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया। फोटो: अमरपाल सिंह वर्मा
एथेनॉल फैक्ट्री के खिलाफ प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया। फोटो: अमरपाल सिंह वर्मा
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सारांश

हनुमानगढ़ के राठीखेड़ा गांव में प्रस्तावित एथेनॉल फैक्ट्री का निर्माण किसानों के उग्र आंदोलन के बाद रोक दिया गया है।

किसानों की आशंकाओं की जांच के बाद ही आगे की कार्रवाई होगी।

किसानों का कहना है कि फैक्ट्री से जल प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ेंगी।

प्रशासन के साथ बैठक में यह निर्णय लिया गया। बैठक में कंपनी के अधिकारी भी शामिल रहे।

राजस्थान मेंं हनुमानगढ़ जिले के टिब्बी तहसील के गांव राठीखेड़ा में प्रस्तावित एथनॉल फैक्ट्री का काम फिलहाल रुक गया है। दो दिन पहले किसानों के हिंसक आंदोलन के बाद 12 दिसंबर 2025 की शाम को हुई बैठक में कंपनी को आगे किसी तरह का काम न करने को कहा गया है।

पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के साथ देर शाम तक चली बैठक में निर्णय लिया गया कि किसानों द्वारा जताई जा रही आशंकाओं की व्यापक जांच के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।

दो दिन पहले 10 दिसम्बर को दर्जनों गांवों के हजारों किसान टिब्बी में एसडीएम कार्यालय के बाहर महा पंचायत में जुटे। मंच से बार-बार यह बात उठी कि डेढ़ साल से चल रहे शांतिपूर्ण धरने के बावजूद उनकी बात न सरकार ने सुनी, न कंपनी ने।

महा पंचायत के बाद अपरान्ह करीब 4 बजे करीब पांच हजार किसान ट्रैक्टरों के काफिले के साथ निर्माणाधीन फैक्ट्री साइट की ओर बढ़े। जैसे ही भीड़ स्थल पर पहुंची, किसानों ने ट्रैक्टरों से चारदीवारी को धक्का देना शुरू किया। देखते ही देखते दीवार धराशायी हो गई।

पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े, लाठियां बरसाईं और प्लास्टिक की गोलियों का इस्तेमाल किया। इसके बावजूद किसानों को रोका न जा सका। पुलिस को ही भारी भीड़ के चलते पीछे हटना पड़ा। इसके बाद वहां सोलह वाहनों मेंं तोडफ़ोड़ कर आग लगा दी गई। संघर्ष मेंं दर्जनों किसान एवं पुलिस कर्मियों के चोटें आईं।

किसान 12 अगस्त 2024 से फैक्ट्री लगाने के विरोध में प्रस्तावित भूमि पर धरना लगाए बैठे थे लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। 19 नवम्बर को सुबह प्रशासन ने पुलिस की सहायता से उन्हें खदेड़ दिया। एक दर्जन किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया। इसी के साथ कंपनी ने वहां चारदीवारी का निर्माण शुरू कर दिया।

इस पर किसानों ने गांव-गांव मेंं अभियान चलाकर टिब्बी में महा पंचायत करने का एलान कर दिया। प्रशासन की ओर से पुलिस की मदद से धरना स्थल खाली करवाए जाने को किसान उकसाना मानते हैं।

फैक्ट्री हटाओ क्षेत्र बचाओ संघर्ष समिति के कार्यकर्ता रविन्द्र रणवा का कहना है कि हम एक साल से शांतिपूर्वक धरना देकर बैठे थे लेकिन हमारी बात ही नहीं सुनी गई। जब पुलिस के सहारे किसानों को खदेड़ कर फैक्ट्री का निर्माण शुरू कराने की कोशिश की गई तो यह आंदोलन भडक़ना ही था। जब तक फैक्ट्री की मंजूरी निरस्त नहीं की जाती, तब तक यह आंदोलन चलता रहेगा।

फैक्ट्री हटाओ क्षेत्र बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य मदन दुर्गेसर कहते हैं कि हमारा इलाका पूरी तरह ट्यूबवेल आधारित खेती पर निर्भर है। एथेनॉल निर्माण के बाद प्रतिदिन लाखों लीटर केमिकलयुक्त दूषित पानी बचेगा, जिसे भूगर्भ में डालना पड़ेगा।

इससे भूजल ही खराब हो जाएगा। इससे खेती का खात्मा तय है। फैक्ट्री में लगने वाले पॉवर प्लांट की राख, चिमनी से निकलने वाला धुआं और रसायनों की दुर्गन्ध मानव, पशु और पक्षियों सबके लिए बड़ा खतरा होगी। कैंसर और अन्य बीमारियां फैलेंगी।

तलवाड़ा झील के किसान विनोद कुमार कहते हैं कि सरकार कहती है फैक्ट्री लगाकर विकास करना चाहते हैं लेकिन जब आम जनता ऐसे विकास के खिलाफ है तो सरकार विकास की रट क्यों लगा रही है।

इसी गांव के जुल्फिकार अली कहते हैं कि फैक्ट्री में अत्यधिक पानी इस्तेमाल होगा, जिससे क्षेत्र में पानी की कमी आ जाएगी। दूषित पानी को भूगर्भ मेंं डाला जाएगा, जिससे भूजल खराब होगा। फैक्ट्री का धुआं समूचे वातावरण को प्रदूषित कर देगा।

किसान केसर खान कहते हैं कि यह फैक्ट्री हमारी आने वाली पीढिय़ों का भविष्य खराब कर देगा। यह जन स्वास्थ्य, खेती, पर्यावरण और भूजल के लिए खतरनाक है। 

लोकसभा मेंं हुई गूंज

लोकसभा में गत दिवस श्रीगंगानगर के सांसद कुलदीप इंदौरा ने इस मुद्दे को उठाते हुए सरकार और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए। इंदौहुए रा ने कहा कि वहां किसान पिछले लंबे समय से शांतिपूर्वक इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं लेकिन उनकी चिंताओं को सुना नहीं जा रहा। 

सांसद ने लोकसभा में परियोजना के तकनीकी और पर्यावरणीय प्रभावों का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि जिस संयंत्र को एशिया का सबसे बड़ा एथेनॉल प्रोजेक्ट बताया जा रहा है, उससे कई गंभीर जोखिम जुड़े हैं। टिब्बी क्षेत्र पूर्णत: भूजल आधारित कृषि पर निर्भर है। ऐसे में इतना बड़ा जल दोहन और प्रदूषण भूमि, जलस्तर, फसलों और किसानों की आजीविका पर भारी असर डाल सकता है। 

नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल ने आरोप लगाया कि राजस्थान सरकार उद्योगपतियों के दबाव में आकर इस परियोजना को पर्यावरण अनुकूल बताने में जुटी है, जबकि स्थानीय लोगों की आशंकाओं की लगातार अनदेखी की जा रही हैं।

यह है प्रोजेक्ट का विवरण

चंडीगढ़ की ड्यून एथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड ने चक 5 आरके राठीखेड़ा में लगभग 45 एकड़ जमीन खरीदी और 450 करोड़ रुपये के निवेश से अनाज आधारित 1320 किलो लीटर प्रतिदिन क्षमता का एथेनॉल प्लांट और 24.5 मेगावाट पावर प्लांट स्थापित करना चाहती है।

कंपनी के प्रतिनिधियों ने हाल में जिला प्रशासन की ओर से आयोजित बैठक में बताया कि फैक्ट्री में बॉयलरों (2 गुणा 120 टीपीएच) के साथ 70 मीटर ऊंचाई वाले पांच फील्ड इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर (ईएसपी) स्थापित किए जाएंगे। जिससे इन चिमनियों से निकली हवा, वायुमंडल को प्रदूषित नहीं करेगी। 

प्लांट में कच्चे माल के लिए चावल और मक्का तथा जलाने के लिए पराली की आवश्यकता पड़ती है, जिससे जिले में धान की खेती करने वाले किसानों को उचित कीमत भी मिलेगी। प्लांट में 9,76,500 टन से अधिक चावल एवं मक्का उपयोग में लिया जाएगा और सालाना 2100 करोड़ रुपये का चावल एवं मक्का खरीदा जाएगा। इसके अलावा कम से कम दस करोड़ रुपये की प्रतिमाह पराली खरीदी जाएगी।

कंपनी अधिकारियों ने कहा कि ईंधन के जलने से उत्पन्न राख को संग्रहित करने के लिए बेलनाकार साईलों की स्थापना की जाएगी। राख पर पानी का छिडक़ाव होने से राख का फैलाव नहीं होगा। राख को ईंट भट्टों द्वारा ईंट बनाने में प्रयोग किया जाएगा, जिसके लिए ईंट भट्टा संचालकों से एमओयू किए जाएंगे। प्रदूषण की निगरानी के लिए ऑनलाइन डेटा प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के सर्वर पर उपलब्ध एवं निगरानी मेंं होगा।

कंपनी लगातार यह दावे कर रही है कि फैक्ट्री जीरो लिक्विड डिस्चार्ज पर चलेगी। हर बूंद पानी का इस्तेमाल होगा। दूषित जल भूगर्भ में नहीं छोड़ा जाएगा। वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए 70 ऊंची चिमनी में पांच स्टेज का इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रीसिपेटेटर (ईएसपी) होगा, जिससे जहरीला धुआं नहीं निकलेगा। बड़ी संख्या में लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा लेकिन यह तर्क ग्रामीणों के भरोसे को नहीं जीत पाए हैं।  

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