पिछले कुछ वर्षों से देश में एक राजकोषीय संकट मंडरा रहा है। इसकी प्रमुख वजह है बढ़ती हुई खाद्य सब्सिडी, जो कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के लिए देय है। दरअसल एक के बाद एक केंद्रीय बजटों में खाद्य सब्सिडी खर्चों के लिए किए जा रहे "उप-प्रावधान" ने एफसीआई को अपने कामकाज के लिए कर्ज लेने पर मजबूर किया है। एफसीआई एक केंद्रीय एजेंसी है जो अनाज वितरण के लिए मुख्य रूप से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत राज्यों को चावल और गेहूं की खरीद, भंडारण और परिवहन का प्रबंधन करती है एनएफएसए के तहत प्रति माह लगभग 81 करोड़ लोगों को प्रति माह पांच किलोग्राम खाद्यान्न की काफी व्यापक सब्सिडी दी जाती है। इसमें लगभग 2.5 करोड़ अंत्योदय अन्न योजना घर शामिल हैं, जो गरीबों में सबसे गरीब हैं और रियायती मूल्य पर प्रति माह 35 किलोग्राम प्रति परिवार के हकदार हैं।
केंद्र सरकार ने बैंकों के जरिए स्वीकृत कर्ज को बढ़ाने के लिए विभिन्न स्रोतों जैसे राष्ट्रीय लघु बचत कोष (एनएसएफएफ),अल्पावधि ऋण, बांड और नकद ऋण सीमा (सीसीआई) का प्रावधान किया है। ताकि संघ के बजट में उप-प्रावधान के कारण एफसीआई अपने वास्तविक खाद्य सब्सिडी खर्चों को पूरा कर पाए।
उप प्रावधान में खाद्य सुरक्षा खर्चे
बीते वित्त वर्ष 2019-20 में एफसीआई को खाद्य सब्सिडी के लिए 1.84 लाख करोड़ रुपये का आवंटन बजट में किया गया था जो कि बाद में घटाकर 75000 करोड़ रुपये कर दिया गया। यह दोबारा अनुमानित बजट प्रावधान के तहत था, जिसमें अतिरिक्त तौर पर एनएसएसफ के तहत 1.1 लाख करोड़ रुपये का कर्ज भी था। इससे पहले 1.51 लाख करोड़ रुपये एफसीआई और 33,000 करोड़ रुपये राज्यों में विकेंद्रीकृत खरीद प्रणाली के लिए था। वहीं, रोचक यह है कि एफसीआई ने 2016-17 के तहत 46,400 करोड़ रुपये का हाल ही मे भुगतान भी किया था।
बजट में खाद्य सब्सिडी आवंटन के संबंध में किए जाने वाले प्रावधानों की रिक्तता को भरने के लिए लगातार राष्ट्रीय लघु बचत कोष (एनएसएसएफ) से कर्ज लिया जा रहा है। इसी बीच एफसीआई पर कर्ज के भुगतान का पहाड़ बड़ा होता जा रहा है। अनुमान के मुताबिक एफसीआई पर वित्त वर्ष 2020 के अंत तक 2.49 लाख करोड़ रुपये का बकाया था। वहीं, सभी स्रोतों को मिलाने पर यह 3.33 लाख करोड़ रुपये का है। इनमें एनएसएसएफ से 2.54 लाख करोड, शॉर्ट टर्म लोन से 35 हजार करोड़ और कैश क्रेडिट लिमिट के जरिए 9000 करोड़ रुपये शामिल हैं।
खाद्य सब्सिडी, बकाया कर्ज, एफसीआई के जरिए लिया गया लोन
वर्ष |
कुल आवंटित खाद्य सब्सिडी | कर्ज बकाया (एफसीआई) कैरी-ओवर लाइबिलिटी* | लिया गया कर्ज ( एफसीआई)* |
2010-11 | 63,844 | 13,745 | 45,925 |
2011-12 | 72,822 | 23,134 | 61,594 |
2012-13 | 85,000 | 31,753 | 71,635 |
2013-14 | 92,000 | 45,633 | 84,256 |
2014-15 | 117,671 | 58,654 | 91,353 |
2015-16 | 139,419 | 50,037 | 89,978 |
2016-17 | 110,172 | 81,303 | 126,338 |
2017-18 | 100,281 | 135,822 | 189,376 |
2018-19 | 101,327 | 186,000 | 253,000 |
2019-20 | 108,688** | 249,000 | 333,000 |
2020-21 | 115,319*** |
स्रोत ः केंद्रीय बजट दस्तावेज, खाद्य मंत्रालय, *मार्च 31, 2020 तक, नोट ः 80-85 फीसदी खाद्य सब्सिडी आवंटन एफसीआई के रास्ते है और शेष विकेंद्रीकृत खरीद प्रणाली में राज्यों को आवंटन किया जाता है, ** रिवाइज्ड इस्टीमेट, ***बजट अनुमान. सारिणी ः संदीप दास
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक वर्तमान वित्त वर्ष 2020-2021 के पहले दो तिमाही के अंत तक एनएसएसएफ के तहत ऋण बढ़कर 2.93 करोड़ रुपये पहुंच गया है। जबकि खाद्य सब्सिडी आवंटन 115,319 करोड़ रुपये है (77,982 करोड़ एफसीआई के लिए और 37,337 करोड़ रुपए राज्यों की विकेंद्रीकृत खरीद प्रणाली के लिए), और वास्तविक खर्च में तीव्र उछाल हुआ है। क्योंकि केंद्र सरकार एनएफएसए के तहत प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 81 करोड़ लोगों को प्रति माह पांच किलो मुफ्त अनाज दे रही है।
यह व्यवस्था कोविड-19 संक्रमण प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के मद्देनजर अप्रैल, 2020 को शुरु की गई। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि पीएमजीकेएवाई के कारण मौजूदा वित्त वर्ष में अनुमानित सब्सिडी खर्च 2.33 लाख करोड़ रुपये का हो सकता है जबकि अनुमानित बजट 1.15 लाख करोड़ रुपये है।
खाद्य सब्सिडी खर्चे बढ़ने की वजहें
धान और गेहूं पर सालाना बढ़ती हुई एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य और एफसीआई के जरिए अनाज भंडारण की अधिकता व मुक्त तरीके से खरीद के कारण खाद्य सब्सिडी के खर्चे में बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं एक अन्य कारण केंद्र की अनिच्छा भी है। बेहद कम दर में अनाज सब्सिडी एनएफएसए, 2013 के तहत दी जा रही है। आर्थिक सर्वेक्षण 2019-2020 के तहत केंद्र के जरिए 3 रुपये में चावल, 2 रुपये में गेहूं, और एक रुपये में मोटा अनाज दिया जा रहा है। यह दरें एनएफएसए, 2013 की हैं जो अब तक नहीं बदली गई हैं। वहीं दूसरी तरफ 2020-2021 में धान और गेहूं के लिए एफसीआई की आर्थिक लागत (किसानों को एमएसपी, भंडारण,परिवहन और अन्य लागत) क्रमशः 37.26 रुपए और 26.83 रुपये पड़ती है। यह एक बड़ा कारण है कि आर्थिक लागत और केंद्रीय जारी दरें (सीआईपी) व खाद्य सब्सिडी बीते कुछ वर्षों में बढ़ती गई है।
आर्थिक सर्वे इस बात पर भी गौर करता है कि “जबकि जनसंख्या के कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा करने की आवश्यकता है, एनएफएसए के तहत सीआईपी को बढ़ाने के आर्थिक तर्क को भी कम नहीं किया जा सकता है। खाद्य सुरक्षा कार्यों की स्थिरता के लिए खाद्य सब्सिडी बिल पर भी ध्यान देने की जरूरत है।”
अतिरिक्त अनाज भंडार बढ़ा रहे खाद्य सब्सिडी का खर्चा
एफसीआई के पास रखे गए अनाज के स्टॉक दरअसल बफर स्टॉक के मानक से अधिक बने हुए हैं, जो कि खाद्य सब्सिडी के बढ़ते खर्च में ईंधन का काम करते हैं। 1 अक्टूबर, 2020 को एफसीआई के पास 3.07 करोड़ टन (30.7 मिलियन टन) के बफर स्टॉक मानदंडों के विरुद्ध 6.75 करोड़ टन (67.5 करोड़ टन) का अनाज (चावल और गेहूं) स्टॉक था।
अनाज स्टॉक एफसीआई (मिलियन टन में आंकड़े) एक अक्तूबर तक
2011 | 2012 | 2013 | 2014 | 2015 | 2016 | 2017 | 2018 | 2019 | 2020 | |
चावल | 20.35 | 23.37 | 19.03 | 15.42 | 12.57 | 14.47 | 16.3 | 18.63 | 24.91 | 21 |
गेहूं | 31.42 | 43.16 | 36.1 | 32.26 | 32.45 | 21.32 | 25.86 | 35.62 | 39.31 | 46.5 |
कुल | 51.7 | 66.4 | 55.1 | 47.68 | 45.02 | 35.8 | 42.17 | 54.25 | 64.23 | 67.5 |
30.77 मिलियन टन बफर स्टॉक के नियम में 10.25 मिलियन टन चावल, 20.5 मिलियन टन गेहूं शामिल है। इस स्टॉक में ऑपरेशनल स्टॉक और रणनीति के तहत किया गया भंडारण भी है। अनाज भंडारण में मिल से भंडार किए गए चावल स्टॉक को शामिल नहीं किया गया है। सारिणी ः संदीप दास
बढ़ते अनाज स्टॉक के पीछे प्रमुख कारक पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में ओपन-एंडेड एमएसपी ऑपरेशंस हैं, जिसके परिणामस्वरूप एफसीआई ने एमएसपी ऑपरेशंस के जरिए किसानों से अधिक अनाज खरीदा है। राज्यों द्वारा ले लो। पिछले दशक में एनएफएसए के तहत राज्यों द्वारा खाद्यान्नों का उठान (ऑफ-टेक) 51-59 मीट्रिक टन था, जबकि इसी अवधि के दौरान अनाज की खरीद लगभग 60 मीट्रिक टन थी। पिछले दो वर्षों के दौरान 2018-19 और 2019-20 के दौरान खरीद 80 मीट्रिक टन को पार कर गई है।
राज्यों के जरिए खाद्यान्न का उठान (ऑफटेक*) (एनएफएसए , अन्य कल्याणकारी योजनाएं, मिड डे मील, आईसीडीएस )
2010-11 | 2011-12 | 2012-13 | 2013-14 | 2014-15 | 2015-16 | 2016-17 | 2017-18 | 2018-19 | 2019-20 | |
खरीद | 57.41 | 63.37 | 72.18 | 56.93 | 52.23 | 62.29 | 61.06 | 69 | 80.1 | 85.1 |
उठान (ऑफ-टेक)* | 51.67 | 55.07 | 55.80 | 51.1 | 51.69 | 55.42 | 57.04 | 58.91 | 56.88 | 56.95 |
स्रोत ः डिपार्टमेंट ऑफ फूड एंड पब्लिक डिस्ट्रब्यूशन, *ओएमएसएस बिक्री बाहर, सारिणी : संदीप दास
भारत के नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन अधिनियम, 2003 के 2016-2017 में अनुपालन को लेकर 2019 में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2016-2017 से पांच वर्षों में सब्सिडी एरियर्स यानी खाद्य सब्सिडी में देनदारी में 350 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। इसलिए जरूरत है कि वित्तपोषण कई तरीकों से किया जाना चाहिए। साथ ही उच्च ब्याज कैश क्रेडिट सुविधा वास्तविक सब्सिडी को बढ़ाने वाली है।
वहीं, केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने जुलाई, 2018 को कहा था कि ऑफ-बजट देनदारियां (ऐसा वित्त, जिसका उल्लेख बजट में नहीं होता है) केंद्रीय बजट के दायरे से बाहर नहीं है। ऑफ बजट का मूल और ब्याज के पुर्नभुगतान का प्रावधान बजट के जरिए किया गया था।
मंत्रालय ने बजट दस्तावेजों में एनएसएसएफ द्वारा नाबार्ड के आंतरिक और अतिरिक्त बजटीय संसाधनों और एफसीआई को ऋण देने का खुलासे पर गौर किया था। 2019 की सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, वित्त मंत्रालय ने स्वीकार किया कि एफसीआई के खातों को अंतिम रूप देने के बाद बजट में एक साल के लिए 95 प्रतिशत खाद्य सब्सिडी का प्रावधान करने और बाद के वर्षों में शेष पांच प्रतिशत को समाप्त करने की प्रथा है। बजटीय बाधाओं के कारण, किसी विशेष वर्ष में खाद्य सब्सिडी की पूरी राशि प्रदान करना संभव नहीं हो सकता है। ऑफ-बजट वित्तीय व्यवस्था एफसीआई की कार्यशील पूंजी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए है, जिसे बैंकिंग स्रोतों से स्वतंत्र रूप से पूरा किया जा रहा था।
केंद्र सरकार ने 2014 में एफसीआई के पुनर्गठन पर पूर्व खाद्य मंत्री शांता कुमार की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय समिति (एचएलसी) की नियुक्ति की थी। जनवरी 2015 में सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में समिति ने सिफारिश की थी कि एफसीआई को उन राज्यों की मदद करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए, जहां किसान एमएसपी से काफी नीचे कीमतों पर संकट से ग्रस्त हैं, और छोटी जोत वाले हैं। इनमें पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार पश्चिम बंगाल, असम आदि शामिल हैं।
वर्ष |
आर्थिक लागत | सेंट्रल इश्यू प्राइस | सब्सिडी | सब्सिडी % | ||||
चावल | गेहूं | चावल | गेहूं | चावल | गेहूं | चावल | गेहूं | |
2017-18 | 3280.31 | 2297.92 | 300 | 200 | 2980.31 | 2097.92 | 90.9 | 91.3 |
स्रोत ः डिपार्टमेंट ऑफ फूड एंड पब्लिक एंड डिस्ट्रिब्यूशन
उच्चस्तरीय समिति ने अपनी सिफारिश में कहा था कि धान उगाने के लिए किसानों को हतोत्साहित करने के लिए, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में दालों और तिलहन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। साथ ही केंद्र सरकार को उनके लिए बेहतर मूल्य समर्थन अभियान प्रदान करना चाहिए और व्यापार नीति के साथ उनकी एमएसपी नीति को लागू करना चाहिए ताकि उनकी जमीनी लागत उनके एमएसपी से कम न हो। क्योंकि एफसीआई और उसके सहायक ओपन-एंडेड एमएसपी परिचालनों के कारण पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में किसानों द्वारा लाए गए सभी चावल और गेहूं खरीदते हैं।
इसलिए, इन राज्यों के किसानों को वैकल्पिक फसलों जैसे तिलहन और दालों को उगाने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है ताकि एफसीआई की खरीद के संचालन में गिरावट न आ सके। हालांकि, एफसीआई के सामने आने वाले संकट से निपटने में बहुत प्रगति नहीं हुई है। केंद्र सरकार को एफसीआई द्वारा किए जाने वाले खाद्य सब्सिडी खर्चों के प्रावधान को सुनिश्चित करने की दिशा में कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। राजकोषीय संकट का मात्र स्थगन कोई अधिक व्यवहार्य विकल्प नहीं है। सरकार के हाथ से समय बहुत तेजी से निकल रहा है।
लेखक कृषि और खाद्य सुरक्षा में दिल्ली स्थित शोधकर्ता और नीति विश्लेषक हैं।