मई महीने में सिरसा बॉर्डर से लौट चुके टिड्डियों का दल महेंद्रगढ़ के रास्ते हरियाणा में प्रवेश किया और हवाओं के रूख के साथ दिल्ली तक पहुंच गया। मानसून की दस्तक की वजह से हुई नमी और हवाओं का रूख पश्चिम से पूर्व दिशा में बदलने की वजह से टिड्डियों का दल शनिवार सुबह रेवाड़ी से होते हुए गुरुग्राम में प्रवेश किया और यहां से निकलकर दिल्ली के आसमान में छा गया।
केंद्रीय टिड्डी चेतावनी संगठन (एलडब्ल्यूओ) के मुताबिक, पहली बार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (दिल्ली-एनसीआर) में टिड्डे का प्रवेश हुआ है। एलडब्ल्यूओ के सीएस राणावत ने डाउन टू अर्थ को बताया कि महेंद्रगढ़ में शुक्रवार को टिड्डियों के दल ने हमला किया था। वहां से गुरुग्राम होते हुए दिल्ली पहुंच गया। 26 जून तक उम्मीद थी कि यह दल हरियाणा के पलवल तक पहुंचने के बाद वापस लौट जाएगा, लेकिन हवाओं के बदले रूख के कारण ऐसा नहीं हो सका और दिल्ली पहुंच गया।
कृषि एवं विज्ञान पर कार्य करने वाली दिल्ली की गैर सरकारी संस्था - साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर (सीएबीसी) के रिसर्च साइंटिस्ट गोविंद गुर्जर के मुताबिक, वर्ष 1926-31 के पांच वर्षीय टिड्डी महामारी के बाद पहली बार दिल्ली में टिड्डियों का दल पहुंचा है। अब तक हरियाणा में सबसे बड़ा टिड्डियों का हमला 1993 में हिसार में हुआ था।
एलडब्ल्यूओ के अधिकारी ओम प्रकाश का कहना है कि बारिश की वजह से नमी बन रही है, जिसके कारण टिड्डियों का दल ने इस तरफ रूख किया है। करीब तीन से चार वर्ग किलोमीटर में टिड्डियों का झुंड दिल्ली-गुरुग्राम बॉर्डर से सटे इलाके वसंत कुंज, आया नगर में देखा गया है। अब भी टिड्डियों का दल घूम रहा है और उम्मीद है कि करीब 50 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद शाम को यह डेरा डालेंगी।
टिड्डियों का झुंड कुछ दिन पहले भारत में राजस्थान के बीकानेर के जरिये प्रवेश किया था और 26 जून को चुरू, हनुमानगढ़ समेत करीब 100 किमी की दूरी तय करते हुए हरियाणा के सीमा में प्रवेश किया। जब यह भारत में प्रवेश किया था, तो यह झुंड बहुत ही बड़ा था।
दक्षिण-पश्चिम मानूसन के पैटर्न के कारण अधिक नमी, हरियाली और हवाओं के पश्चिम से पूर्व की दिशा होने के कारण आने वाले दिनों में दिल्ली में और भी टिड्डियों के दलों के आने की प्रबल संभावना है। एलडब्ल्यूओ के अधिकारी ओम प्रकाश के मुताबिक, जब किसी क्षेत्र में एक बार टिड्डियों का दल पहुंच जाता है तो वहां दोबारा पहुंचने की संभावना अधिक होती है। इस वजह दिल्ली को टिड्डियों से अधिक खतरा है।
सीएबीसी के रिसर्च साइंटिस्ट गोविंद गुर्जर का कहना है, मार्च के मुकाबले अप्रैल महीने में टिड्डी दलों की बढ़ती संख्या बताती है कि भारत-पाकिस्तान सीमावर्ती क्षेत्र में टिड्डियों के लिए अनुकूल परिस्थितियां होने के कारण वहां पर प्रजनन दर बढ़ी है। जबकि इस क्षेत्र में अप्रैल महीने में प्रजनन नहीं होता था, लेकिन इस बार ऐसा हुआ है। अधिक प्रजनन दर की वजह से आने वाले महीनों में इस तरह टिड्डियों का हमला लगातार झेलना पड़ेगा।
एलडब्ल्यूओ के आंकड़ों के मुताबिक, 19 जून तक राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और गुजरात के करीब 99,916 हेक्टेयर रकबा टिड्डियों के हमले के कारण प्रभावित हुआ है।