बिहार के सुपौल में लगी धान की फसल। फोटो: Umesh Kumar Ray
बिहार के सुपौल में लगी धान की फसल। फोटो: Umesh Kumar Ray

बिहार के 18 जिलों में फीसदी से कम हुई बारिश, फसल के नुकसान का अंदेशा

जुलाई-अगस्त में बाढ़ का कहर झेल चुका बिहार अब सूखे की चपेट में आ गया है। सूबे के 18 जिले के 102 प्रखंडों में हालात चिंताजनक हैं
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भारतीय मौसमविज्ञान विभाग और योजना व विकास विभाग की तरफ से हर प्रखंड में लगाए गए वर्षामापक यंत्रों से मिले आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि इन 102 प्रखंडों की 896 पंचायतों में बारिश सामान्य से 30 प्रतिशत कम हुई है। ऐसे में इन क्षेत्रों में कृषि पर गहरा असर पड़ने के आसार हैं।

नवादा जिले के छतरवार गांव के किसान सहदेव मुखिया के पास 10 बीघा खेत है। उन्होंने पिछले साल एक बीघा खेत में धान की खेती की थी, लेकिन इस बार उन्होंने धान नहीं रोपा। सहदेव मुखिया ने डाउन टू अर्थ को बताया, “इस बार बारिश तो पिछले वर्ष के मुकाबले भी कम हुई है। इस कारण मैंने एक धूर में भी धान नहीं बोया।”

छतरवार में सहदेव मुखिया इकलौते किसान नहीं हैं, जिन्होंने धान की खेती नहीं की है, बल्कि 75 फीसदी किसानों ने खेत को परती छोड़ दिया है। सहदेव मुखिया ने कहा, “पिछले कुछ वर्षों में बारिश कम होती जा रही है। एक वक्त था कि बारिश के सीजन में तीन-चार महीने तक खेत में पानी रहता था, लेकिन अभी एक भी खेत में पानी नहीं है। ऐसे में धान रोपना नुकसानदेह हो जाता, इसलिए जोखिम नहीं लिया।”  

कृषि विभाग के सचिव एन. श्रवण कुमार ने कहा, “इस बार भी सुखाड़ की स्थिति खराब है। बारिश की कमी बढ़ रही है। अभी बारिश में 30 प्रतिशत की कमी है। अगर हालात ऐसे ही रहे, तो संभव है कि पिछले वर्ष की तरह ही इस वर्ष भी कृषि इनपुट अनुदान दिया जाए।”

इधर, बारिश कम होने के कारण इन क्षेत्रों में बुआई भी प्रभावित हुई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कम बारिशवाले क्षेत्रों में अब तक 70 फीसदी बुआई ही हो पाई है।

गौरतलब हो कि पिछले साल बिहार के 24 जिलों के 275 प्रखंडों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था। कृषि विभाग से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, “इस साल सूखाग्रस्त प्रखंडों की घोषणा में अभी देर है। इसका आकलन संभवतः अक्टूबर के मध्य में किया जाएगा, इसलिए अभी कम वर्षावाले प्रखंडों व पंचायतों को सूखाग्रस्त नहीं कहा जा रहा है।” 

इस बीच, बिहार सरकार ने बाढ़ के तर्ज पर कम वर्षावाले क्षेत्रों के किसानों को तत्काल राहत के लिए नकद सहायता देने का फैसला लिया है। शुक्रवार को कैबिनेट की बैठक में इस फैसले पर मुहर लगाई गई। इस योजना के लिए  900 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं। इसके अंतर्गत प्रभावित इलाकों में हर किसान परिवार को 3000 रुपए दिए जाएंगे। कृषि विभाग के सचिव एन. श्रवण कुमार ने कहा, “ये मदद उन प्रखंडों को मिलेगी, जहां बारिश सामान्य से 30 प्रतिशत कम हुई है और रोपनी का प्रतिशत 70 प्रतिशत रहा। ये मदद तत्काल के लिए है।”

जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर खेती में बदलाव पर जोर

बिहार में जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर खेती-बारी पर देखने को मिल रहा है। जलवायु परिवर्तन के चलते यहां के मौसम के मिजाज में तेजी से बदलाव आ रहा है और बारिश का परिमाण घटता जा रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ऐसी खेती को तवज्जो देने जा रही है, जिसमें कम से कम नुकसान हो।

 श्रवण कुमार ने कहा, “कृषि पर जलवायु परिवर्तन का बहुत असर दिख रहा है. इसे ध्यान में रखते हुए जलवायु परिवर्तन के अनुरूप कृषि में क्या बदलाव लाया जाए, कृषि रोडमैप में इस पर जोर दिया जाएगा।”

कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार, इसमें मुख्य रूप से दो तत्व होंगे। अव्वल तो किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल कृषि चक्र में बदलाव लाया जाए, इस पर फोकस किया जाएगा। और दूसरा, इसके अंतर्गत किसानों को ऐसी फसल लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, जिस पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम से कम पड़ता हो। मसलन लघु अवधि में व कम पानी में तैयार होनेवाली फसलों पर जोर रहेगा। इसके साथ ही अनुसंधान भी किया जाएगा कि जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर खास इलाकों में कौन-सी स्थानीय फसल लगाई जानी चाहिए।

बारलॉग इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशिया, डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, बिहार कृषि विश्वविद्यालय और आईसीएआर मिलकर इस योजना को अमली जामा पहनाएंगे।

पहले चरण में मधुबनी, खगड़िया, भागलपुर, बांका, मुंगेर, नवादा, गया और नालंदा में इसे लागू किया जाएगा। इस प्रयोग के लिए हर जिले में पांच गांवों का चयन किया जाएगा और प्रयोग सफल होने पर अन्य गांवों में इसका विस्तार किया जाएगा।

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