दुनिया में एक तिहाई से ज्यादा भोजन का उत्पादन कर रहे हैं छोटे और सीमान्त किसान

छोटे और सीमान्त किसान जो दुनिया की केवल 12 फीसदी कृषि भूमि को जोत रहे हैं वो करीब 35 फीसदी भोजन का उत्पादन करते हैं
दुनिया में एक तिहाई से ज्यादा भोजन का उत्पादन कर रहे हैं छोटे और सीमान्त किसान
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छोटे और सीमान्त किसान जिनकी जोत 2 हेक्टेयर से भी कम है वो दुनिया के एक तिहाई से ज्यादा भोजन का उत्पादन कर रहे हैं | यह जानकारी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा किए शोध में सामने आई है| जर्नल वर्ल्ड डेवलपमेंट में प्रकाशित अध्य्यन के अनुसार दुनिया के हर छह में से पांच खेत दो हेक्टेयर से भी छोटे हैं जोकि कुल कृषि भूमि का केवल 12 फीसदी हिस्सा हैं| इसके बावजूद वो दुनिया के करीब 35 फीसद खाद्य का उत्पादन करते हैं|

हालांकि यदि खाद्य आपूर्ति में छोटे किसानों के योगदान की बात करें तो देशों के बीच काफी भिन्नता है एक तरफ चीन हैं जहां छोटे किसानों की हिस्सेदारी 80 फीसदी के करीब है जबकि ब्राजील और नाइजीरिया में यह 10 फीसदी से भी कम है| ऐसे में यह जरुरी हो जाता है कि कृषि सम्बन्धी नीतियों को बनाने से पहले आंकड़ों का बारीकी से अध्ययन किया जाए|

यदि एफएओ द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो दुनिया में करीब 60.8 करोड़ खेत हैं| जिनमें से 90 फीसदी पारिवारिक खेत हैं जहां परिवार के सदस्यों के द्वारा खेती की जाती है| इनका महत्त्व इसी बात से समझा जा सकता है कि यह दुनिया की 70 से 80 फीसदी कृषि भूमि पर परिवार के सदस्यों द्वारा खेती की जा रही है| वहीं यदि उत्पादन की कीमत की बात करें तो यह उसके करीब 80 फीसदी का उत्पादन करते हैं| एफएओ के एग्रीफूड इकोनॉमिक्स डिवीजन के उप निदेशक मार्को सान्चेज ने बताया कि पारिवारिक खेतों को छोटे और सीमान्त खेत समझना सही नहीं है, क्योंकिं इनमें से कई छोटे हैं और कई बहुत ज्यादा बड़े हैं|

रिपोर्ट के अनुसार 60.8 करोड़ खेतों में से करीब 70 फीसदी खेत आकार में एक हेक्टेयर से भी छोटे हैं, जबकि यह कुल कृषि भूमि का केवल 7 फीसदी हिस्से पर ही हैं| वहीं 14 फीसदी खेतों का आकार एक से 2 हेक्टेयर के बीच है, जो कुल कृषि भूमि का केवल 4 फीसदी ही हैं| वहीं 2 से 5 हेक्टेयर आकार के 10 फीसदी खेत हैं, जो कुल कृषि भूमि का 6 फीसदी हिस्सा हैं| 50 हेक्टेयर से बड़े खेत एक फीसदी से भी कम हैं पर वो कुल कृषि भूमि के 70 फीसदी हिस्से पर काबिज हैं| वहीं इनमें से कुछ खेत तो 1,000 हेक्टेयर से भी ज्यादा बड़े हैं, जो कुल कृषि भूमि का करीब 40 फीसदी हैं|

यदि खेतों और जोत के आकार के पैटर्न की बात करें तो वो आर्थिक विकास के स्तर को भी उजागर करते हैं| जहां आम तौर पर खेत का आकार औसत राष्ट्रीय आय के साथ बढ़ता है| उदाहरण के लिए उच्च आय वाले देशों में 99 फीसदी खेत पांच हेक्टेयर से बड़े हैं जबकि कम आय वाले देशों में केवल 28 फीसदी खेत 5 हेक्टेयर से बड़े हैं| यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो दक्षिण एशिया और अफ्रीका में ज्यादातर किसान छोटे और सीमान्त हैं| वहीं भारत में केवल 3 फीसदी खेत आकार में 5 पांच हेक्टेयर से बड़े हैं|

 भारत में 1960 से खेतों की संख्या में हुई है 286 फीसदी की वृद्धि

यदि भारत में खेतों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो यहां कुल 14.6 करोड़ खेत हैं जबकि कुल कृषि भूमि 15.7 करोड़ हेक्टेयर है| देश में कुल 86 फीसदी (12.6 करोड़) खेत आकार में 2 हेक्टेयर से भी छोटे हैं जोकि कुल कृषि भूमि का 47 फीसदी से भी कम हिस्से पर हैं| केवल 3 फीसदी खेत पांच हेक्टेयर से ज्यादा बड़े हैं,   जोकि कुल कृषि भूमि का 22 फीसदी हिस्सा हैं| वहीं 11 फीसदी खेत आकार में 2 से 5 हेक्टेयर के हैं जो कुल कृषि भूमि का 30 फीसदी हैं| 2015 में भारत में कुल 18 लाख करोड़ रुपए मूल्य की कृषि उपज का उत्पादन हुआ था|

2015 में भारत में कुल 18 लाख करोड़ रुपए मूल्य की कृषि उपज का उत्पादन हुआ था| भारत में खेतों के साथ एक बड़ी समस्या जोत की बढ़ती संख्या और घटता आकार है| जहां 1960 में खेत का औसत आकार 2.7 हेक्टेयर था वो 2010 में 44 फीसदी घटकर सिर्फ 1.2 हेक्टेयर रह गया था| जिसका असर खेतों की संख्या पर भी पड़ा है| 1960 में जहां देश में 4.9 करोड़ खेत थे, वो 2010 में 286 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 14 करोड़ हो गए थे|

यह आंकड़े इसलिए भी जरुरी हैं क्योंकि इनकी मदद से अंतरराष्ट्रीय संगठनों और नीति निर्माताओं को सही फैसले लेने में मदद मिलेगी| आज यह प्राथमिकता होनी चाहिए की छोटे और सीमान्त किसानों को सहारा दिया जाए और परिवारों द्वारा की जा रही खेती को बढ़ावा देना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ियां भी इस पेशे को अपनाने से कतराए नहीं| इसके लिए न केवल उत्पादन में बढ़ावा देना, साथ ही ग्रामीण आजीविका में सुधार करना भी जरुरी है| इनके विकास पर ही सतत विकास के कई लक्ष्यों का आधार निर्भर करता है| जिनमें गरीबी उन्मूलन, भुखमरी को समाप्त करना, असमानता को कम करना और आर्थिक और सामजिक विकास जैसे लक्ष्य निर्भर करते हैं|

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