बिहार में यूरिया की भारी कमी और कालाबाजारी से किसान परेशान

किसानों का आरोप है कि रबी के मौसम में उपजे इस संकट के लिए व्यापारियों और अधिकारियों के बीच का ताकतवर गठजोड़ जिम्मेदार है
फोटो: विकास चौधरी
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मौजूदा रबी सीजन में रासायानिक उर्वरक की भारी कमी और दोगुने दामों में उसकी कालाबाजारी से पूरे बिहार के किसान चिंतित हैं। उनका कहना है कि इसका असर रबी की फसल पर पड़ सकता है, जिससे उन्हें नुकसान होगा।

बिहार के किसानों को केंद्र सरकार की ओर से कम आपूर्ति के चलते पिछले साल खरीफ सीजन के दौरान भी उर्वरकों की कमी का सामना करना पड़ा था।

रिपोर्टों के मुताबिक, राज्य के बाढ़ की आशंका वाले उत्तरी जिलों और सूखे की मार झेलने वाले दक्षिणी जिलों, दोनों क्षेत्रों के हजारों किसानों को यूरिया पाने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है।

इन जिलों में कोशी-सीमांचल क्षेत्र के खगड़िया, कटिहार, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, पूर्णिया और अररिया के साथ रोहतास, दरभंगा, बक्सर और पटना भी शामिल हैं।

रबी की फसलों खासकर गेहूं और मक्का के लिए यूरिया एक जरूरी उर्वरक है। इसकी कमी इसलिए हो रही है क्योंकि किसानों को उनके करीब की सरकार द्वारा अधिकृत उर्वरक के डीलरों की दुकानों पर यह नहीं मिल रही है। यह स्थिति कमोबेश पूरे राज्य में है।

सैकड़ों किसानों ने राज्य के अलग-अलग ब्लॉकों में इसे लेकर अपना गुस्सा जताने के लिए प्रदर्शन किए हैं।

पटना के पालीगंज ब्लॉक के किसान बाल्मीकि शर्मा ने इस संवाददाता से कहा, ‘डीलरों की दुकानों से यूरिया पूरी तरह गायब है। हर दुकानदार यूरिया न होने का रोना रो रहा है।’

पचास गांवों में काम करने वाले संगठन, ‘पालीगंज बितरनी कृषक समिति’ के सचिव शर्मा ने 21 फरवरी 2022, को डाउन टू अर्थ को बताया कि सरकार उर्वरक का इंतजाम करने और किसानों तक उसे उपलब्ध कराने में नाकाम रही है।

उन्होंने कहा, ‘ डीलर, किसानों को पहले से बता रहे हैं कि उनके पास एक बोरी यूरिया भी नहीं है। लेकिन दूसरी ओर ख्ुाले बाजारों में इसकी कालाबाजारी हो रही है। किसानों की आमदनी बढ़ाकर उनकी मदद करने का सरकारी दावा महज कागजों तक सीमित है।’

खगड़िया जिले के परबत्ता के रहने वाले एक सीमांत किसान अंजनी यादव के मुताबिक, ‘हम रबी के इस सीजन में उर्वरक के संकट का सामना कर रहे है लेकिन नीतीश सरकार हमारी मदद के लिए कुछ नहीं कर रही है। हम बेसहारा हैं। यूरिया की कमी की वजह से हम सबकी रबी की फसल पर असर पड़ेगा।’

यादव ने बताया कि उन्हें अपनी मक्का और गेंहू की फसल के लिए यूरिया की बहुत जरूरत थी लेकिन डीलरों की दुकानों पर यह नहीं मिली। कोशी-सीमांचल क्षेत्र के किसानों के लिए मक्का एक नकदी फसल है, मक्के को स्थानीय भाषा में यहां ‘पीला सोना’ कहा जाता है और यह इस क्षेत्र में बहुतायत में होता है।

एक अन्य किसान, कटिहार के बालकृष्ण पटेल ने बताया कि इस रबी सीजन में किसानों को मक्के की बुवाई के लिए काला बाजार से महंगे दामों में यूरिया लेने को मजबूर होना पड़ा, इसके चलते इस फसल की लागत पहले ही बढ़ चुकी है।

किसान अधिकार मोर्चा के सदस्य पटेल के मुताबिक, ‘डीलर किसानों को उर्वरक देने से मना कर रहे हैं लेकिन खुले बाजार में यह महंगे दामों में लि रहा है। ऐसा व्यापारियों और अधिकारियों के बीच मजबूत गठजोड़ के चलते हो रहा है।

किसानों के मुताबिक, बिहार में यूरिया की 45 किलो की बोरी साढ़े चार सौ से पांच सौ रुपये के बीच में बेची जा रही है जबकि इसकी सरकारी कीमत 266 रुपये है।

पटेल ने कहा कि रबी की फसलों की बुवाई में डीएपी की कमी की वजह से इस बार देरी हुई है। अधिकतर किसानों को डीएपी के बिना ही अपन फसल की बुवाई करनी पड़ी। डीएपी भी एक रासायनिक उर्वरक है।

वहीं, पटना के किसान बाल्मीकि शर्मा ने कहते हैं कि उर्वरक की कमी की वजह से पालीगंज ब्लॉक में इस बार गेंहू पैदावार 20-30 फीसदी कम हो जाएगी। रबी की बुवाई का सीजन आमतौर पर 15 नवंबर से 15 दिसंबर के बीच होता है।

बिहार के कृषि विभाग के आकलन के मुताबिक, 2021-21 में रबी की फसल के लिए किसानों को नीचे दी गई मात्रा के हिसाब से रासायनिक उर्वरकों की जरूरत थी:
- बारह लाख टन यूरिया
- चार लाख टन डीएपी
- एक लाख पचास हजार टन पोटाश और
- दो लाख टन एनपीके मिश्रण

राज्य के कृषि मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अमरेंद्र प्रताप सिंह यूरिया की कमी से बार-बार इंकार कर रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि सरकार ने उर्वरकों की कालाबाजारी के खिलाफ कार्रवाई की है और इसमें शामिल पाए जाने वाले व्यापािरयों और अधिकारियों के खिलाफ भी कड़े कदम उठाए हैं।
 

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