रबी की बुआई में डीएपी की कमी से सड़कों पर उतरे किसान

कृषि विभाग किसानों को डीएपी का विकल्प इस्तेमाल करने की सलाह दे रहा है लेकिन किसान कह रहे कि उनकी गेहूं की फसल मारी जाएगी
हनुमानगढ़ में डीएपी उपलब्ध कराने की मांग को लेकर रास्ता रोकते किसान। फोटो: विजय मिढ़ा।
हनुमानगढ़ में डीएपी उपलब्ध कराने की मांग को लेकर रास्ता रोकते किसान। फोटो: विजय मिढ़ा।
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 रबी फसलों की बुआई का वक्त है और राजस्थान के किसान एक थैला डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) खाद के लिए तरस रहे हैं। हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील के किसान कृष्ण कुमार सहारण कहते हैं, ‘‘मैंने डीएपी लेने के लिए खूब प्रयास किए। पन्द्रह-बीस दिन कोशिश करने पर भी नहीं मिली तो मैंने एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम) डालकर 12 बीघा मेंं चने की बुवाई की है। मुझे पता है इसका असर डीएपी जितना नहीं है, पर मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि चने की बुवाई का अनुकूल समय निकल रहा था।’’

सहारण ऐसे अकेले किसान नहीं हैं, जिन्हें डीएपी नहीं मिल पाई है। उन जैसे हजारों किसान डीएपी के अभाव के कारण भटकने पर मजबूर हैं। डीएपी का संकट केवल हनुमानगढ़ जिले में नहीं है। किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट कहते हैं कि पूरे राज्य मेंं डीएपी का अभाव किसानों को परेशान किए हुए है। सभी जिलों में डीएपी की कमी से किसानों मेंं असंतोष व्याप्त है।

राज्य में रबी में गेहूं, चना, जौ और सरसों आदि फसलें प्रमुखता से बोई जाती हैं। इनके लिए डीएपी का ही इस्तेमाल होता है। किसानों का मानना है कि डीएपी के बिना गेहूं की बुवाई की कल्पना ही नहीं कर सकते। डीएपी नहीं मिली तो न केवल फसल के अंकुरण पर असर पड़ेगा बल्कि बढ़वार भी अपेक्षित नहीं होगी।

राजस्थान की मंडियों में डीएपी के लिए लाइनें लगी हैं। हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर एवं अनूपगढ़ जिलों मेंं इस साल रबी सीजन में 5 लाख 25 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुवाई का लक्ष्य है लेकिन 18 नवम्बर तक  सिर्फ एक लाख 837 हेक्टेयर यानी 19.21 क्षेत्र में ही बुवाई हो सकी है।

जौ की बुवाई भी प्रभावित हो रही है। तीनों जिलों में एक लाख 22 हजार हेक्टेयर में जौ की बुवाई का लक्ष्य है, पर 18 नवम्बर तक 52036 हेक्टेयर (45.11 प्रतिशत) में ही इसकी बुवाई हुई है। सरसों की बुवाई का लक्ष्य भी पूरा नहीं हो सका है। तीनों जिलों में 5 लाख 60 हजार हेक्टेयर में सरसों की बुवाई का लक्ष्य था पर चार लाख 18 हजार 270 हेक्टेयर में ही बुवाई हुई है।

श्रीगंगानगर में ग्रामीण किसान मजदूर समिति के जिलाध्यक्ष चूनावढ़ के किसान रामकुमार सहारण बताते हैं कि हमने कृषि विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारियों से डीएपी दिलाने की बार-बार मांग की, उन्होंने जल्द उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया मगर संकट बढ़ता ही जा रहा है। ग्राम सेवा सहकारी समितियों के बजाय प्राइवेट दुकानदारों के पास ज्यादा डीएपी आ रही है और वह मनमानी कर रहे हैं। किसान को नैनो डीएपी व नैनो यूरिया जबरन बेचा जा रहा है।

किसान कृष्ण सहारण कहते हैं कि एक दुकान पर यदि एक सौ थैले डीएपी पहुंचती है तो वहां सात सौ किसान इंतजार मेंं खड़े होते हैं। ऐसे मेंं ज्यादातर को घंटों इंतजार के बाद भी खाली हाथ लौटना पड़ रहा है।

जयपुर मेंं कृषि विभाग के मुख्यालय मेंं उप निदेशक (फर्टिलाइजर) बीएल कुमावत बताते हैं, ‘‘राज्य सरकार ने केन्द्र को इस साल रबी सीजन के लिए 4 लाख 50 हजार मीट्रिक टन डीएपी की मांग भेजी थी, जिसमेंं से केन्द्र ने 3 लाख मीट्रिक टन डीएपी देना मंजूर किया। इसके मुकाबले में अब तक एक लाख 67 हजार मीट्रिक टन डीएपी हमें मिली है, जिसका हम सभी जिलों में वितरण करा रहे हैं।’’

पूरे राज्य में निश्चय ही मांग के मुकाबले डीएपी की उपलब्ध बहुत कम है, जिससे किसान परेशान एवं आक्रोशित हैं लेकिन कृषि विभाग किसानों को किसानों को डीएपी के विकल्प के रूप में एनपीके और एसएसपी अपनाने की सलाह दे रहा है। हनुमानगढ़ मेंं कृषि उप निदेशक बीआर बाकोलिया कहते हैं कि किसानों को डीएपी के स्थान पर एसएसपी और एनपीके का उपयोग करना चाहिए। ये दोनों खाद प्रचुर मात्रा और कम मूल्य पर उपलब्ध हैं। नैनो डीएपी भी एक बेहतर विकल्प है। इनका फसलों को पूरा फायदा मिलता है।

कृषि विभाग डीएपी का विकल्प इस्तेमाल करने की सलाह दे रहा है लेकिन यह सलाह अधिकांश किसानों के गले नहीं उतर रही है। गांव लंबी ढाब के किसान रघुवीर सिंह कहते हैं कि मैंने एक सप्ताह तक कतारों में लगकर डीएपी लेने की कोशिश की पर कामयाब नहीं हो पाया। आखिरकार मजबूरी मेंं एसएसपी डालकर साढ़े चार बीघा जमीन पर गेहंू की बुवाई कर दी है। छह बीघा में गेहूं की बुवाई और करनी है। उसके लिए डीएपी लेने की कोशिश कर रहा हूं। डीएपी का जो असर गेहूं पर होता है, उतना एसएसपी, एनपीके का नहीं हो सकता। नैनो डीएपी के बारे मेंं तो हमें पता ही नहीं है। चूनावढ़ के किसान रामकुमार सहारण कहते हैं कि मैंने पिछले साल नैनो डीएपी का प्रयोग किया लेकिन उसका फसल को कोई लाभ नहीं हुआ। इसलिए डीएपी नहीं मिलने पर इस बार मैंने 18 बीघा में गेहूं की बुवाई में एनपीके का इस्तेमाल किया है।

कृषि विभाग के सेवानिवृत सहायक निदेशक मदन जोशी कहते हैं कि किसानों को गेहूं व सरसों में डीएपी डालने की आदत पड़ी हुई है, जो एकदम से नहीं छूट सकती। किसान कृषि विभाग की अनुंशसा से कहीं ज्यादा डीएपी और यूरिया इस्तेमाल करते हैं क्योंकि उन्हें उत्पादन कम होने का डर रहता है। खाद की कमी की एक वजह यह भी है।

 किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट कहते हैं कि दानेदार डीएपी खाद का संकट स्वाभाविक नहीं है। सरकार किसानों को डीएपी देना ही नहीं चाहती है, इसलिए इसकी कमी है। जाट कहते हैं कि सरकार किसानों को ऑर्गेनिक खेती की ओर ले जाना चाहती है। इसीलिए नैनो डीएपी को बढ़ावा देने की कोशिश की जा रही है। सरकार की मंशा ठीक है लेकिन तरीका सही नहीं है। सरकार सोचती है जब बाजार मेंं डीएपी मिलेगी नहीं तो किसान नैनो डीएपी इस्तेमाल करने को मजबूर होगा। जाट कहते हैं कि किसान दशकों से डीएपी इस्तेमाल करते आ रहे हैं। किसानों को ही नहीं, जमीनों को भी इसकी ‘आदत’ पड़ी हुई है। सरकार को नैनो डीएपी के प्रति किसानों को जागरुक करना चाहिए। ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा मिलने से किसानों को फायदा होगा लेकिन खाद के अभाव मेंं अभी तो नुकसान ही है। दानेदार डीएपी व यूरिया से नैनो डीएपी, यूरिया की ओर जाने में कई साल लगेंगे। 

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