“जैसे ही मुझे पता चला कि पंजाब-हरियाणा के कुछ जिलों में बाढ़ आई है तो किसान आंदोलन के दौरान साथी बन चुके तेजवीर सिंह को फोन किया और उनसे कहा कि हम अपने गांव से राशन के साथ-साथ जरूरी मदद भेज देते हैं। तेजवीर सिंह ने जवाब दिया कि यह सब सामान तो हम जुटा लेंगे, लेकिन हमारी धान की फसल को बहुत नुकसान हुआ है। अगर धान की पौध हम तक पहुंचा दी जाए तो हम दोबारा अपनी फसल लगा सकते हैं। इसके बाद सबसे पहले मैंने अपनी नर्सरी में लगी पौध को निकलवा लिया, फिर गांव के लोगों को इकट्ठा किया। उन्होंने भी अपने हिस्से की पौध में से एक हिस्सा देने की हामी भर दी। इस तरह एक गाड़ी में पौध भरकर अंबाला की ओर रवाना कर दी गई। उसके बाद तो सिलसिला ही चल निकला और पूरे गांव की ओर से लगभग 750 एकड़ में लगने वाली धान की पौध बाढ़ प्रभावित इलाकों में भेजी जा चुकी है।”
अपने किसान साथी की मदद के लिए हाथ बढ़ाने वाले अशोक दनोदा हरियाणा के जींद जिले के नरवाना तहसील के गांव दनोदा के रहने वाले हैं। अशोक दनोदा के पास तीन एकड़ जमीन है। वह किसान आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़े रहे और संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के सदस्य हैं। जब डाउन टू अर्थ की टीम उनके गांव पहुंची तो वह अपने उस खेत में ले गए, जहां से सबसे पहले उन्होंने पौध निकालकर बाढ़ पीड़ित इलाके में भिजवाई थी। वह बताते हैं कि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली-हरियाणा के टिकरी बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन के दौरान वह और उनके साथी टिकरी हरियाणा बोर्डर पर मोर्चे थे। वहीं उनकी मुलाकात अंबाला-पटियाला के किसानों से हुई थी। 378 दिन के इस आंदोलन ने उनके बीच एक ऐसा रिश्ता बना दिया कि तब से ही हम सब एक दूसरे के साथी बन गए। तेजवीर सिंह भारतीय किसान यूनियन (शहीद भगत सिंह) के प्रवक्ता हैं।
बाढ़ से भारी नुकसान
जुलाई 2023 के दूसरे सप्ताह के प्रांरभ में भारी बारिश के कारण हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ पंजाब, हरियाणा में भारी नुकसान हुआ। भारी बारिश से पंजाब-हरियाणा से गुजर रही लगभग सभी नदी-नाले उफान पर थे।
भारत सरकार के गृह मंत्रालय के आपदा प्रबंधन मंडल की 31 जुलाई 2023 को जारी रिपोर्ट बताती है कि 1 अप्रैल से 31 जुलाई 2023 के दौरान हरियाणा में बाढ़ के कारण 12 जिले प्रभावित हुए और 2,16,384 हेक्टेयर में लगी फसल खराब हुई और 2,982 पशु मारे गए। इसी तरह पंजाब में 20 जिले प्रभावित हुए और 25,530 हेक्टेयर में लगी फसल खराब हो गई। यहां 10,445 छोटे-बड़े पशु भी मारे गए।
अमूमन इन दोनों प्रदेशों में नियमित तौर पर बाढ़ नहीं आती। किसी-किसी साल बाढ़ आती है, लेकिन इस बार की बाढ़ ने दोनों राज्यों को बड़ा नुकसान पहुंचाया। हिसार चंडीगढ़ हाइवे नंबर 152 के एक ओर पंजाब के गांव बसे हैं तो दूसरी ओर हरियाणा के गांव। इन दोनों राज्यों के गांवों ने बाढ़ की तबाही का सामना किया। डाउन टू अर्थ संवाददाता 29 जुलाई 2023 को यहां के कुछ गांवों में पहुंचा। अंबाला तहसील के गांव सकराहों में अपने मजदूरों से खेतों में धान की पौध लगवा रहे भगत सिंह बताते हैं कि 10 जुलाई को आई बाढ़ की वजह से उनके 30 एकड़ फैले खेतों में लगभग चार फुट पानी भर गया। 29 जुलाई तक भी 5 एकड़ में पानी नहीं उतरा है। वह 30 में से 29 एकड़ में धान की रोपाई कर चुके थे, जिस पर उनका कुल चार लाख खर्च आया था। चार दिन बाद जब बाढ़ का पानी उतरा तो खेतों में खड़ी धान की फसल बर्बाद हो चुकी थी। उनके पूरे परिवार की आमदनी का प्रमुख जरिया खेती ही है। भगत सिंह कहते हैं, “परिवार को बारिश से हुए नुकसान की चिंता नहीं थी, लेकिन हमारी चिंता इस बात को लेकर थी कि अपनी आंखों के सामने खेतों को खाली कैसे छोड़ दें। मेरे जीवन काल में कभी ऐसी स्थिति नहीं आई थी कि खेतों को खाली छोड़ना पड़ा हो।”
सोच विचार के बाद उन्होंने भारतीय किसान यूनियन (शहीद भगत सिंह) के अध्यक्ष अमरजीत सिंह से बात की। अमरजीत ने उन्हें बताया कि हरियाणा के कुछ किसान मदद के तौर पर धान की पौध भेज रहे हैं। अमरजीत ने हरियाणा के हिसार जिले के नारनौद तहसील के गांव पेटवाड़ के किसान राजवीर सिंह का नंबर दिया। भगत सिंह ने राजवीर से फोन पर बात की। उनके गांव से राजवीर सिंह के गांव की दूरी लगभग 200 किलोमीटर है। भगत सिंह जब वहां पहुंचे तो शाम हो चुकी थी। पौध निकालने में समय लगना था, इसलिए उनके रात को ठहरने-खाने पीने की व्यवस्था भी पेटवाड़ के लोगों ने की। भगत सिंह कहते हैं कि पेटवाड़ गांव के लोगों की सहायता के कारण उन्होंने लगभग 25 एकड़ खाली खेतों में दोबारा धान की फसल लगा ली है।
आंदोलन की देन
सरकार से जीतने के बाद किसानों का आंदोलन भले ही खत्म हो गया, लेकिन इस आंदोलन के दौरान बना भाईचारा अब एक-दूसरे की हर मुसीबत में काम आ रहा है। इस बार किसानों का सामना प्राकृतिक आपदा यानी बाढ़ से हुआ है। जब डाउन टू अर्थ टीम 30 जुलाई को पेटवाड़ पहुंची तो वहां कुछ मजदूर भी एक खेत से लगी पौध निकाल कर गाड़ी में लाद रहे थे। ये मजदूर अंबाला के ही गांव मोहड़े मोहरी से आए थे। उनके साथ गांव के सरपंच पौधे लेने आए थे। राजवीर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि वे लोग भी टिकरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन में मोर्चा लगाए बैठे थे। तब से ही वे पंजाब-हरियाणा के दूरदराज के गांवों के किसानों के संपर्क में आए थे। पिछले दिनों जब बाढ़ आई तो उनके गांव की बेटी सोनिया दूहन, जो एनसीपी की नेता हैं ने अंबाला में अमरजीत सिंह से बात की। जब अमरजीत सिंह ने उन्हें बताया कि उन्हें अपने खेतों में दोबारा से धान लगाने के लिए पौधे चाहिए तो दुहन ने तुरंत अपने गांव के लोगों से संपर्क किया और उन्हें अपनी धान की पौध देने के लिए तैयार किया। राजवीर कहते हैं कि सोनिया दूहन ने उन्हें गांव से समन्वय की जिम्मेवारी सौंपी, बस तब से ही वह दिन रात बाढ़ पीड़ित किसानों से संपर्क करके पौध पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
राजवीर सात एकड़ के किसान हैं और नौ एकड़ ठेके पर भी लेकर खेती करते हैं। गांव के ही मास्टर सतबीर बताते हैं कि गांव से अब तक दो हजार एकड़ में लगने वाली धान की पौध अकेले उनके गांव से भेजी जा चुकी है। जिस किसान के पास पौध ज्यादा हो जाती है, अब तक वह दूसरे किसानों को बेच देते थे। एक एकड़ में लगने वाली पौध की कीमत लगभग 2,500 रुपए होती है। लेकिन इस बार गांव के किसी भी किसान ने अतिरिक्त पौध नहीं बेची। सारी पौध बाढ़ पीड़ित किसानों को भेजी जा रही है।
किसान आंदोलन ने पंजाब-हरियाणा के किसानों के बीच की खाई को इस तरह से पाट दिया है कि उनके बीच रिश्ते बन गए हैं। जींद के गांव गमड़ा से भी बाढ़ पीड़ित इलाकों में धान की पौध भिजवाई जा रही है। गांव के काला गमड़ा (सत्यनारायण) बताते हैं कि आंदोलन के दौरान उन्होंने सिख किसानों से सीखा कि कैसे महीनों तक आपस में मिलजुल कर एक लड़ाई लड़ी जा सकती है। पंजाब के किसानों ने उन्हें लंगर चलाना सिखाया। पानी की छबील लगानी सिखाई। आज हम वही भाईचारा लौटा रहे हैं। वह बताते हैं कि हमारे गांव से लगभग 450 एकड़ के लिए पौध भेजी जा चुकी है।
जब डाउन टू अर्थ की टीम इस गांव पहुंची तो वहां कुरूक्षेत्र से रणजीत सिंह पौध लेने आए हुए थे। रणजीत बताते हैं कि उनकी 28 एकड़ में लगी धान पूरी तरह बर्बाद हो गई थी। फिर कहीं से उन्हें काला के बारे में पता चला, वह आकर अपने खेतों के लिए पौध ले गए और अब तक 14 एकड़ में पौध लगा चुके हैं। इसके बाद वह अपने गांव वालों और रिश्तेदारों के लिए भी यहां से पांच बार पौध ले जा चुके हैं। पास के ही गांव राखी खास के मंजीत सिंह सुपुत्र उम्मेद सिंह ने तो बाढ़ आने के बाद अपनी गांव की एक एकड़ जमीन ठेके पर लेकर वहां धान की नर्सरी लगाई है। इसका साल का ठेका 50 हजार रुपए है। मंजीत कहते हैं कि उनकी यह पौध लगभग दस दिन में तैयार हो जाएगी, जिसे वह बाढ़ पीड़ितों तक पहुंचाएंगे।
जिन इलाकों में बाढ़ आई, तकरीबन सभी इलाकों में धान की अगेती फसल लगाई जाती है। यही वजह है कि ज्यादातर इलाकों में धान की रोपाई हो चुकी थी और मजदूर अपने-अपने राज्य में जा चुके थे। ऐसे में बाढ़ के बाद दोबारा रोपाई करते हुए किसानों को मजदूर नहीं मिले। तेजवीर बताते हैं कि कुछ इलाकों में किसानों के पास धान की पौध तो पहुंच गई, लेकिन रोपाई के लिए मजदूर नहीं मिले तो यूनियन के आह्वान के बाद किसानों ने मिलकर एक-एक खेतों में रोपाई की। इनमें वे किसान भी शामिल हुए, जिनके खेतों तक बाढ़ का पानी नहीं पहुंचा था। बाढ़ की वजह से हरियाणा का अंबाला काफी प्रभावित हुआ है, लेकिन इस इलाके में आधे से ज्यादा हिस्से में दोबारा से धान लगाई जा चुकी है। अंबाला जिले में कुल 2.88 लाख एकड़ में खेती होती है। अंबाला के कृषि उपनिदेशक जसविंद्र सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि बाढ़ की वजह से अंबाला की लगभग डेढ़ लाख एकड़ में लगी फसल को नुकसान हुआ था। इसमें धान का रकबा सबसे अधिक था। लेकिन इसमें लगभग 75 हजार एकड़ क्षेत्रफल में दोबारा से धान लगा दी गई है। धान की पौध राज्य के दूसरे जिलों के अलावा पंजाब के जिलों से लाई गई है। यह सिलसिला अभी जारी है। उम्मीद है कि बाढ़ की वजह से खाली हुए ज्यादातर खेतों में एक बार फिर से रोपाई हो जाएगी। उन्होंने बताया कि दोबारा रोपाई से धान की उपज पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन अंबाला के एक बड़े हिस्से धान जल्दी काट कर वहां तीसरी फसल लगाया करते हैं, लेकिन इस बार किसान ऐसा नहीं कर पाएंगे।
किसानों ने बांध दिया बंध
बाढ़ से किसानों का बहुत नुकसान हुआ है। अकेले अंबाला के 315 गांव को बाढ़ ग्रस्त घोषित किया जा चुका है। अंबाला पंजाब के पटियाला जिले से सटा हुआ है। इन दोनों जिलों से घग्घर नदी गुजरती है। 10 जुलाई 2023 को घग्घर नदी ने अपने किनारे तोड़ने शुरू किए और गांवों की सीमाओं पर बनाए गए लगभग छह फुट ऊंचे बांध तक पहुंच गई। लेकिन दो जगह से बांध कमजोर होने के कारण नदी के पानी ने बांध को तोड़ दिया और नदी की सीमा पर लगे गांवों में तबाही मच गई। सीमा पर लगते गांव दड़बा गांव की अजमेर कौर अपने खेतों को ताकते हुए बताती हैं कि जब तक बारिश नहीं हुई थी, तब तक उनके खेतों में घुटनों के बराबर तक धान खड़ी हो गई थी, लेकिन बारिश के बाद जब वह यहां पहुंची तो खेत में धान नहीं थी और लगभग उसी घुटने के बराबर खेतों में मिट्टी जम चुकी थी। वह भरे गले से बोलती हैं कि पता नहीं कब यह खेत अब ठीक हो पाएंगे या नहीं पता नहीं अब कब वह इन खेतों में पंजीरी लगा पाएंगे। सिंहवाला गांव के प्रेम सिंह और हरवंश सिंह ने पंजाब के गांव दड़बा में 21 एकड़ जमीन खरीदकर त्रिलोचन सिंह को ठेके पर दी थी। वह 27 हजार रुपए प्रति बीघे खर्च कर चुके थे। लेकिन 10 जुलाई को आई बाढ़ ने सब बर्बाद कर दिया। खेत में मिट्टी जम चुकी है। वे बताते हैं कि सरकार ने मुआवजा दिया तो ठेकेदार को दे देंगे। क्योंकि नुकसान तो ठेकेदार को हुआ है। खेत से मिट्टी निकालने में कम से कम 50 हजार रुपए का खर्च आएगा।
ग्रामीण बांध की व्यवस्था को लेकर नाराज हैं। उनका कहना है कि बांध की मरम्मत कभी नहीं हुई, जिस कारण यह घटना घटी। दड़बा की सरपंच के पति तरसेम कुमार कहते हैं कि उनके गांव में लगभग 500 बीघा जमीन पूरी तरह खराब हो गई है। तरसेम कहते हैं कि उनकी उम्र 44 साल हो गई है, लेकिन आज तक घग्घर नदी का पानी बांध को पार नहीं कर पाया, लेकिन इस बार बांध दो जगह से टूट गया। गांव के लोग कई बार पंजाब सरकार से बांध की मरम्मत करने की मांग कर चुके थे, लेकिन सरकार ने अनदेखी की, जिसका खामियाजा आज लोगों को भुगतना पड़ रहा है। दड़वा के जसवंत राम और उनके भाइयों के पास लगभग 10 एकड़ जमीन है। उनकी जमीन घग्घर नदी से सटी हुई है, जिसके चलते उन्हें कभी पानी की कमी महसूस नहीं हुई। उन्होंने पूरे दस एकड़ पनीरी (धान) की रोपाई की थी। वह बताते हैं कि उनके यहां जून के पहले सप्ताह में ही रोपाई हो चुकी थी, इसलिए उनकी फसल लगभग दो फुट हो चुकी थी। 9 जुलाई को बारिश का सिलसिला शुरू हुआ और 10 जुलाई को उनके खेत से लगभग 100 मीटर की दूरी पर बांध टूट गया और सारा पानी उनके खेतों में आ गया।
करीब चार दिन बाद पानी उतर गया। हम सोच रहे थे कि दोबारा पनीरी लगाई जाए, लेकिन टूटे हुए बांध से बार फिर से पानी आ गया। इस बार पानी के साथ रेत भी खेतों में बिछ गई और फसल के साथ-साथ खेत भी तबाह हो गया। जसवंत कहते हैं कि खेत में रेत जम गई है, इसलिए अब तो रबी के सीजन में गेहूं भी बोने की स्थिति में नहीं लग रहे हैं। उन्हें कुछ लोगों ने बताया कि एक एकड़ से रेत हटाने पर लगभग 50 हजार रुपए का खर्च आएगा। तरसेम कुमार कहते हैं कि गांव की 500 एकड़ जमीन पूरी तरह से खराब हो गई है। यहां रेत जम चुकी है, जिसे फिर से खेत बनाने में किसानों को 50 से 60 हजार रुपए प्रति एकड़ खर्च करने पड़ेंगे। इसके बाद भी यह कह पाना मुश्किल है कि खेत की उपजाऊ शक्ति कितनी रह पाएगी। खेती के साथ-साथ इस गांव को और भी नुकसान हुआ है। गांव का लगभग 60 फीसदी आबादी भूमिहीन है, लेकिन बाढ़ की वजह से उनके घरों को भी नुकसान पहुंचा है। घरों में दरारें आ गई हैं। इस गांव की मदद के लिए भी किसान संगठन आगे आए।
जब डाउन टू अर्थ की टीम मौके पर पहुंची, तब बांध को टूटे हुए 20 दिन से अधिक हो चुके थे। प्रशासन द्वारा नियुक्त ठेकेदार काम तो कर रहा था लेकिन काम इतनी धीमी गति से चल रहा था कि रोजाना ग्रामीण वहां आकर हालात देखते थे। उन्हें इस बात का डर था कि एक बार फिर टूटे हुए बांध की तरफ से पानी आया तो उनकी रही-सही जमीन, फसल, घर, चारा भी समाप्त हो जाएगा। लोगों की चिंता को देखते हुए भारतीय किसान यूनियन (भगत सिंह) ने एक बैठक बुलाई और निर्णय लिया कि बांध को बांधने का काम किसान अपने हाथ में लेंगे। किसानों ने तय किया कि वे अपने अपने गांव से मिट्टी से भरे बोरे ट्रैक्टरों से लाएंगे और टूटे हुए हिस्से पर बिछा देंगे। यह काम 3 दिन तक चला और आखिरकार जो काम पर शासन नहीं कर पाया था किसानों ने मिलकर वह काम कर दिखाया।
बुजुर्ग किसान भी इस भाईचारे की भावना को देखकर बहुत खुश हैं। पेटवाड़ के लगभग 85 वर्षीय रणवीर सिंह कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में बाढ़ और सूखे की वजह से परेशान किसानों को कई बार देखा है। गांव वाले एक-दूसरे की मदद के लिए आगे भी आते हैं, लेकिन अपने जीवन में ऐसा पहली बार देखा है कि एक किसान दूसरे किसान की मदद के लिए 200 किलोमीटर का सफर तय करे। खासकर ऐसे मौके पर फसल की पौध इतनी दूर भेजने का जज्बा उन्होंने पहली बार ही देखा है। वह कहते हैं कि यह सब किसान आंदोलन की बदौलत हुआ है।