
कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण संबंधी संसद की स्थायी समिति ने भारत में कानूनी रूप से बाध्यकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू करने की सिफारिश की है।
समिति ने कृषि विभाग से जल्द से जल्द इसके क्रियान्वयन के लिए रोडमैप घोषित करने का भी आग्रह किया। कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने कहा कि किसानों को कानूनी गारंटी के रूप में एमएसपी लागू करना न केवल किसानों की आजीविका की सुरक्षा के लिए बल्कि ग्रामीण आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिए भी आवश्यक है।
इसमें कहा गया है कि एमएसपी के माध्यम से सुनिश्चित आय के साथ किसान अपनी कृषि पद्धतियों में निवेश करने की अधिक संभावना रखते हैं, जिससे खेती में उत्पादकता और स्थिरता बढ़ती है। यह निवेश राष्ट्र के लिए दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा में भी योगदान दे सकता है। स्थायी समिति में 30 संसद सदस्य शामिल थे।
इनमें भारतीय जनता पार्टी से 13, कांग्रेस से पांच (अध्यक्ष चन्नी सहित), समाजवादी पार्टी से तीन, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम से दो तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल, राष्ट्रीय जनता दल, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और एक-एक निर्दलीय शामिल थे।
ये सिफारिशें महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये ऐसे समय में आई हैं जब किसान यूनियनें कानूनी रूप से बाध्यकारी एमएसपी की अपनी लंबे समय से चली आ रही मांग को लेकर पंजाब-हरियाणा सीमा पर शंभू और खनौरी चौकियों पर विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। एमएसपी एक गारंटीकृत राशि है जो किसानों को तब दी जाती है जब सरकार उनकी उपज खरीदती है।
इसका उद्देश्य सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य से नीचे बाजार मूल्य गिरने पर सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करना है। एमएसपी सरकार द्वारा प्रत्येक फसल सीजन की शुरुआत से पहले घोषित किया जाता है। आमतौर पर केंद्र 22 कृषि वस्तुओं के लिए एमएसपी तय करता है। लेकिन सुनिश्चित खरीद ज्यादातर चावल और गेहूं के लिए ही होती है।
पैनल की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि खरीद 100 प्रतिशत में से 0.5 प्रतिशत थी, उदाहरण के लिए 2022-24 में 23 प्रतिशत गेहूं खरीदा, लेकिन चने की खरीद के मामले में केवल 0.37 प्रतिशत की खरीद की, रेपसीड के मामले में 9.19 प्रतिशत की खरीद की, सूरजमुखी की खरीद नहीं की और मसूर दाल के लिए 14.08 प्रतिशत की खरीद की गई है।
समिति दृढ़ता से इस बात की सिफारिश की है कि कृषि और किसान कल्याण विभाग एमएसपी के कार्यान्वयन के लिए एक रोडमैप घोषित करें। यह वित्तीय स्थिरता प्रदान करके बाजार की अस्थिरता से सुरक्षा करके, ऋण बोझ को कम करके, किसानों की मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करने से देश में किसान आत्महत्याओं को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। समिति ने कहा कि एमएसपी किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करके खाद्य उत्पादन के स्तर को स्थिर करने में मदद कर सकता है।
समिति ने किसानों को बेहतर योजना बनाने और बाजार में उतार-चढ़ाव के डर के बिना उत्पादन बनाए रखने की अनुमति दी है। इससे केंद्र सरकार को भी अपने वित्त की योजना बनाने और बाद में सुचारू बदलाव की अनुमति मिल सकेगी।
पीएम-किसान और मुद्रास्फीति एक अन्य महत्वपूर्ण सिफारिश पीएम-किसान (प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि) योजना के तहत दी जाने वाली सहायता को मौजूदा 6,000 रुपए से बढ़ाकर 12,000 रुपए प्रति वर्ष करना था। इस योजना के तहत सभी पात्र भूमिधारक किसान परिवारों को 2,000 रुपए की तीन चार-मासिक किस्तों में प्रति वर्ष 6,000 रुपए की आय सहायता प्रदान की जाती है।
संसदीय पैनल ने विभाग से पूछा कि क्या पीएम-किसान को मुद्रास्फीति से जोड़ने की कोई योजना है? क्योंकि इसके लांच होने के पांच साल बीत चुके हैं। इस पर विभाग ने नहीं में जवाब दिया। समिति ने बताया कि केंद्र द्वारा निधि आवंटन में कृषि का हिस्सा 2020-21 में कुल व्यय के 3.5 प्रतिशत से 2024-25 में 2.5 प्रतिशत तक कैसे गिर गया। इसका हवाला देते हुए इसने कृषि के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि की सिफारिश की।
समिति ने विभिन्न सरकारी योजनाओं, जैसे प्राकृतिक खेती, तरल उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के लिए नमो ड्रोन दीदी योजना में विरोधाभास की ओर भी इशारा किया है और साथ ही सरकार से एक-दूसरे के खिलाफ काम करने वाली योजनाओं से बचने और वांछित प्रभाव को नकारने के लिए कहा।
समिति ने विभाग से पूछा कि वह पारंपरिक और प्राकृतिक खेती के बीच तालमेल विकसित करने की योजना कैसे बना रहा है, क्योंकि एक तरफ वह प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहा है और दूसरी तरफ इसका उद्देश्य नमो ड्रोन दीदी योजना के तहत चयनित स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को 15,000 ड्रोन प्रदान करके उर्वरता को बढ़ाना है। यह एक विरोधाभाष की स्थिति है।