मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा कपास उपजाने वाले मालवा की गर्मी किसानों पर और ज्यादा भारी पड़ रही है। इस इलाके में किसानों को बोवने के लिए एक विशेष कंपनी का कपास का बीज नहीं मिल रहा है। हालात यह हैं कि प्रशासन को बीज वितरण के लिए विशेष इंतजाम करने पड़ रहे हैं। दुकानों पर पटवारियों की ड्यूटी लगाई गई है।
पुलिस के पहरे में बीज वितरण हो रहा है। किसान सुबह से लाइन में लगे हुए हैं, फिर भी उन्हें बीज नहीं मिल पा रहा है। किसानों ने बीज के कालाबाजारी और अधिक दाम पर बेचने की शिकायतें भी की हैं।
खरगोन जिले के किसानों का कहना है कि उन्होंने अपना खेत पूरी तरह तैयार कर लिया है पर उन्हें कपास बीज का पैकेट नहीं मिल पा रहा है। वह आरोप लगाते हैं कि बीज की कालाबाजारी हो रही है, किसान परेशान हैं। उन्होंने प्रशासन से अपील की है कि जल्द ही किसानों के लिए बीज की व्यवस्था की जाए।
मालवा का यह इलाका कपास की खेती के लिए जाना जाता है। यहां पर कपास का बंपर उत्पादन होता है। कृषि विभाग के अनुसार मध्य प्रदेश में साल 2020-21 में 877 हजार मीट्रिक टन कपास का उत्पादन हुआ था। इसमें सबसे ज्यादा योगदान मालवा इलाके का ही हैं। खरगोन, बड़वानी, धार और खंडवा जिले में कपास की फसल ज्यादा ली जाती है।
कृषि विभाग ने 70 कंपनियों के बीजों को अनुशंसित किया है। रासी सीड्स (659) एवं आशा-1 कपास बीज की खास मांग है। जानकारों के अनुसार इन किस्मों में बेहतर उत्पादन मिलता है, इसलिए इन बीजों की मांग सबसे ज्यादा है। कसरावद के किसान महेन्द्र पाटीदार कहते हैं कि वैरायटी को जल्दी लगाना पड़ता है। लंबी अवधि के पौधे का उत्पादन बहुत अच्छा होता है। मंडी में अच्छे भाव देता है। सबसे पहले यही बिकता है। इसलिए लोग इसे ज्यादा पसंद करते हैं। शासन ने कपास के बीज के एक पैकेट की कीमत 864 रुपए निर्धारित की है। पर इसके लिए किसानों को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। बताया जाता है कि पिछले साल दक्षिण भारत में कपास की फसल ख़राब होने की वजह से इस बीज की शार्टेज हो गयी है। सबसे ज्यादा मुश्किल हालात खरगोन जिले में हैं।
बीटी कॉटन |
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वर्ष |
क्षेत्राच्छादन ( लाख हेक्टेयर) |
वितरित पैकेट(लाख) |
2017-18 |
6.03 |
20.65 |
2018-19 |
6.84 |
22.85 |
2019-20 |
6.51 |
16.88 |
2020-21 |
6.44 |
15.90 |
2021-22 |
6.16 |
15.21 |
स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण मध्यप्रदेश शासन |
खरगोन जिले में कपास बीज की विशेष किस्म की मांग को देखते हुए कलेक्टर कर्मवीर शर्मा ने 16 मई को कृषि आदान विक्रेता संघ के अध्यक्ष एवं अन्य कृषि आदान विक्रेताओं के साथ बैठक की। उन्होंने ऐसी व्यवस्था बनाने के निर्देश दिए जिससे किसानों का ज्यादा मुश्किलों का सामना न करना पड़े। अनियमितता या कालाबाजारी पर उनके विरूद्ध तत्काल एफआईआर दर्ज करने को कहा। इसके बाद जिले के समस्त किसानों को टोकन के माध्यम से ही बीजों का वितरण किया जाने लगा।
धार जिले के किसान संजय पाटीदार बताते हैं कि लंबी लाइन लगने के बाद भी केवल दो पैकेट बीज मिल रहे हैं, एक एकड़ में एक पैकेट बीज लग जाता है, ऐसे में दो पैकेट पर्याप्त नहीं हैं।
खरगोन शहर में कपास के बीज वितरण में सहयोग के लिए संबंधित दुकान एवं कृषि उपज मंडी में 16 मई से कार्य समाप्ति तक पटवारियों की ड्यूटी लगाई गई है।
धर बड़वानी जिले में किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग ने एक प्रेस नोट जारी करके कहा है कि वर्तमान में गर्म हवाएं चल रही हैं, और तापमान 38 से 42 डिग्री सेल्सियस तक जा रहा है, इसका कपास बीच के अंकुरण और पौधों की बढ़वार पर विपरीत असर पड़ सकता है।
विभाग ने सलाह दी है कि कपास की बुवाई 25 से 30 के बाद कर सकते हैं। कपास की बुवाई जल्दी करने पर पिंक वालवर्म की संभावना अधिक रहती है। विभाग ने यह भी बताया है कि पिछले साल दो लाख चालीस हजार पैकेट बीज का वितरण हुए था, इस साल इस लक्ष्य को बढ़ाकर तीन लाख पैकेट किया गया है।
किसान संजय पाटीदार प्रशासन की इस दलील से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि कपास की इन दोनों ही किस्मों के लिए 15 से 30 मई का समय बुवाई के लिए एकदम उचित है। इस किस्म की फसल 130 से 135 दिन में आती है, यदि चार—पांच दिन भी देरी हुई तो इससे फसल उत्पादन पर असर पड़ सकता है, इसलिए किसान जल्दी कर रहे हैं। उनका कहना है कि कॉटन बेल्ट में किसानों के पास पानी की अपनी व्यवस्थाएं हैं, इसलिए ऐसा मानना कि गर्मी बहुत है, उचित नहीं है।
बड़वानी जिले में 65 हजार हेक्टेयर रकबे में कपास की बोवनी हो चुकी है। 2 लाख 20 हजार हेक्टेयर रकबे में बोवनी का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए करीब नौ लाख बीज पैकेट की जरूरत है। अब तक जिले में 3 लाख से अधिक बीज पैकेट उपलब्ध कराए गए हैं।
प्रशासन ने सलाह दी है कि पूरी जमीन में बी.टी. कपास की एक ही प्रकार की किस्म की बुवाई नहीं करें। इससे कीट व्याधियों का प्रकोप अधिक होगा और उत्पादन कम प्राप्त होगा। वैसे भी दक्षिण भारत में पिछले वर्ष कपास की फसल में आई बीमारी की वजह से एक विशेष कंपनी के बीज मिलना मुश्किल है।