मानसून देर से आया और और अब उसके 15 दिन देर से जाने की उम्मीद है। किसानों की दिल की धड़कने बढ़ी हुई हैं। परीक्षा के परिणाम का समय है। एक फसल काटी जानी है और दूसरी के बोने का वक्त नजदीक है। 2019 बेहद अप्रत्याशित मौसम वाला वर्षों की सूची में सबसे ऊपर स्थान ग्रहण कर रहा है। पहले मानसून में करीब आठ दिनों की देरी हुई फिर अब दक्षिण-पश्चिम मानसून की विदाई में करीब 15 दिनों की देरी संभव है।
इस बीच मध्य भारत में जहां जमकर वर्षा हो रही है वहीं उत्तर-पूर्वी राज्यों में (उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल) में जमकर वर्षा हो सकती है। मध्य भारत के साथ दक्षिण भारत में 124 मिलीमीटर यानी भारी वर्षा के कई चरणों वाली बारिश हुई है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में भी ऐसी भारी वर्षा दर्ज की गई है।
बिहार के पूर्णिया में श्रीनगर प्रखंड के किसान चिन्मयानंद एन सिंह मौसम की प्रत्येक एजेंसियों से अपडेट लेते हैं और उसी के हिसाब से खेती भी कर रहे हैं। वे बताते हैं कि इस वक्त धान की फसल उनके खेतों में खड़ी है। इस वक्त यदि हल्की बारिश हुई तो धान की फसल को नुकसान नहीं होगा लेकिन यदि बारिश तेज हुई तो फसल को बर्बाद होने से कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने बताया कि क्षेत्र में धान की बुआई अच्छी हुई थी लेकिन पैदावार कम होगी क्योंकि पैदावार के लिए कुछ धान टिका नहीं और यदि अब कटाई के नजदीक ज्यादा बारिश हुई तो भी फसल बर्बाद होगी।
स्काईमेट के निदेशक महेश पलावत ने बताया कि जब तक पश्चमी हवा नहीं होगी तब तक मानसून विड्रॉल नहीं होगा। वहीं, ऊपरी सतह पर सूखी उत्तर-पश्चिमी हवा बहना शुरु हो गई है लेकिन निचले स्तर पर पूर्वी हवा बनी हुई है जिसमें आद्रता बेहद ज्यादा होती है। आद्रता के कारण मानसून विड्राल नहीं होता है। मानसून विड्रॉल अपने तय समय 1 सितंबर से करीब 15 दिन देर है। इसलिए अगले चार से पांच दिन बाद ही मानसून के विड्रॉल की संभावना है।
महेश पलावत ने बताया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में अगले तीन से चार दिन यानी 15 सितंबर तक अच्छी बारिश की संभावना है। जबकि हरियाणा-पंजाब में वर्षा की संभावना कम है। उन्होंने कहा कि खरीफ की फसलों को राजस्थान और मध्य प्रदेश में भारी वर्षा के कारण नुकसान हुआ है।
भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी राज्यों में बारिश कम हुई है जबकि दक्षिण में बारिश ज्यादा है। इस पर स्काईमेट के महेश पलावत का कहना है कि कुछ वर्षों से उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में बारिश कम हो रही है। लेकिन यह एक प्रवृत्ति के तौर पर नहीं देखी जा सकती। इस वर्ष मौसम ने काफी करवट ली है। बंगाल की खाड़ी में जितने भी निम्न दबाव क्षेत्र बने हैं उनका मूवमेंट मध्य भारत की तरफ रहा है इस कारण से मध्य महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान में काफी भारी वर्षा हुई है।
दक्षिण-पश्चिम मानसून के जाते-जाते अंत समय में खरीफ की कटाई वाली फसलों को अगर जमकर पानी मिल गया तो उनकी स्थिति खराब हो सकती है जबकि रबी की फसलों को पनपने के लिए भूमि में नमी की जरूरत है ऐसे में रबी के लिए स्थितियां अच्छी हो सकती हैं।
भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक एक जून के बजाए 8 जून की देरी से मानसून ने इस बार कदम रखा था। पूरे जून में 33 फीसदी बारिश कम हुई। जुलाई में 7 से 9 फीसदी की कमी दर्ज की गई। जबकि अगस्त में एक फीसदी अधिक वर्षा दर्ज हुई है। 10 सितंबर तक सामान्य से 3 फीसदी अधिक वर्षा हुई है। इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब में सामान्य से कम जबकि मध्य और दक्षिणी राज्यों में बारिश सामान्य से ज्यादा रिकॉर्ड की गई है। खेती पर सामान्य बारिश का असर सामान्य होना चाहिए। हालांकि, ऐसा नहीं है।
बारिश का कुल कोटा पूरा होने को भारतीय मौसम विभाग सामान्य बारिश कहता है लेकिन किसान मौसम विभाग की बातों से इत्तेफाक नहीं रखते। पूर्णिया के चिन्मयानंद बताते हैं कि रुक-रुक कर फसलों को तर करने वाली धीमी वर्षा अब नहीं होती है। कुछ ही घंटों में ज्यादा वर्षा असमान्य चीज है जो अब सामान्य बनती जा रही है। यदि वर्षा जल भंडारण न हो तो कुछ घंटों की तेज वर्षा के के बलबूते खेती संभव नहीं है। ऐसे में भू-जल निकासी पर ही आश्रित रहना पड़ सकता है।
मौसम विभाग के मुताबिक आंध्र प्रदेश में 3 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 24 फीसदी, बिहार में 23 फीसदी, पंजाब में 5 फीसदी और हरियाणा में अब तक 39 फीसदी कम बारिश हुई है। ऐसे में जमीन में नमी के कम रहने से एक ओर आगामी रबी की फसल को धक्का लगने का डर है। वहीं, दूसरी ओर ज्यादा बारिश हो जाने पर इन जगहों पर खरीफ फसल के नुकसान का भी भय बना हुआ है।