एक ओर जहां न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे किसानों का विरोध प्रदर्शन 21 फरवरी, 2024 को नौवें दिन में प्रवेश कर गया, वहीं दूसरी ओर खाद्य तेल उद्योग ने एमएसपी से नीचे सरसों की फसल की खरीद को रोकने के लिए केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।
सरसों की मौजूदा कीमत रबी विपणन सीजन 2024-25 के लिए घोषित एमएसपी 5,650 रुपये प्रति क्विंटल से कम है। राजस्थान की मंडियों (बाज़ारों) में, जो सरसों का शीर्ष उत्पादक है, कीमत 3,873-5,600 रुपये प्रति क्विंटल थी।
केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा बनाए गए एगमार्कनेट पोर्टल के अनुसार, राज्य की 147 मंडियों में से केवल 16 मंडियों में कीमतें 5,000 रुपये या उससे ऊपर थीं (केवल एक मंडी दर 5,600 रुपये थी)।
इससे पता चलता है कि किसान एमएसपी से 20-25 फीसदी कम दाम पर बेचने को मजबूर हैं.
सरसों की गिरती कीमतों की मौजूदा स्थिति से किसानों की उस मांग को बल मिलता है, जिसमें वे एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं। यदि एमएसपी की कानूगी गारंटी होती तो मंडियों में व्यापारी एमएसपी से कम कीमत पर सरसों की फसल नहीं खरीद पाते।
किसानों को डर है कि अगले महीने तक सरसों की नई फसल आने से कीमतें और गिर जाएंगी। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2 फरवरी 2024 तक 100.4 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुआई हुई थी, जो 2022-23 की तुलना में लगभग 250,000 हेक्टेयर अधिक है।
21 फरवरी को सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अजय झुनझुनवाला ने सरकार से गिरती कीमतों को रोकने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि मौजूदा सरसों की कीमत एमएसपी से नीचे चल रही है और अगले दो हफ्तों में अधिकतम आवक से कीमतें और नीचे आ जाएंगी। इसलिए मैं सरकार से अनुरोध करता हूं कि वह अपनी खरीद एजेंसियों को निर्देश दे कि किसानों को समर्थन देने के लिए मंडियों से एमएसपी पर खरीद शुरू करे।
उन्होंने कहा कि एसोसिएशन ने अखिल भारतीय सरसों फसल सर्वेक्षण के लिए एक डेटा एनालिटिक्स फर्म आरएमएसआई क्रॉपलिटिक्स को नियुक्त किया है। उन्होंने बताया कि अभी नमी का स्तर काफी अच्छा है और सरसों की फसल अच्छी आकार ले रही है। हालांकि आरएमएसआई मार्च के मध्य तक अंतिम रिपोर्ट और फसल अनुमान प्रस्तुत करेगी, लेकिन मौजूदा संकेत काफी सकारात्मक हैं और चालू रबी सीजन में सरसों की रिकॉर्ड फसल होने से हमें कोई आश्चर्य नहीं होगा।
सरसों उत्पादक किसान लगातार दूसरे साल घाटे में फसल बेचने को मजबूर हैं। इसकी वजह है कि उत्तरी राज्यों में जल्दी पकने वाली किस्मों की कटाई शुरू होने से कीमतों में गिरावट देखी जा रही है।
1 फरवरी, 2024 को अपने बजट भाषण में, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि सरकार सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसे तिलहनों के लिए आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए एक रणनीति तैयार करेगी।
उद्योग ने 'आत्मनिर्भर तिलहन अभियान' के सफल कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता की अपील की है। झुनझुनवाला ने कहा, "हमारा लक्ष्य अगले 10 वर्षों में खाद्य तेल आयात पर मौजूदा निर्भरता को 60 फीसदी से घटाकर 30 फीसदी करना है।"
गौरतलब है कि 19 फरवरी को किसानों ने विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा एमएसपी पर दाल, मक्का और कपास की फसल खरीदने के सरकार के प्रस्ताव को यह तर्क देते हुए खारिज कर दिया कि यह "उनके पक्ष में नहीं" था।
18 फरवरी, 2024 को चौथे दौर की वार्ता में, केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल, कृषि और किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने सहकारी एजेंसियों के माध्यम से पांच साल तक खरीद की गारंटी का प्रस्ताव रखा था।
हालांकि, किसानों ने केवल दालें, मक्का और कपास ही नहीं, बल्कि उन सभी 23 फसलों के लिए कानूनी गारंटी की मांग की है, जिनके लिए एमएसपी हर साल निर्धारित किया जाता है। उन्होंने प्रस्ताव को एमएसपी के कानूनी ढांचे से कुछ फसलों और फसल विविधीकरण के विषय पर ध्यान भटकाने वाला कदम बताया।