प्याज के भाव स्थिर नहीं रह पाते। कभी ये डेढ़-दो रुपए प्रति किलोग्राम तो कभी इनका भाव 22 रुपए प्रति किलो तक भी पहुंच जाता है। इसकी वजह है इसका सरकारी आंकड़े का सही नहीं होना। सरकारी आंकड़ा पिछले आंकड़े के अनुमान के आधार पर होता है, जिससे स्टॉक पोजीशन सही नहीं होती है। आंकड़ों में जब प्याज की कमी बताई जाती है, तब बंपर आवक हो जाती है, जबकि व्यापारी जमीनी स्तर पर कार्य करता है, वह इसका लाभ उठा ले जाता है। यह बात कृषि मामलों के विशेषज्ञ और मध्य प्रदेश की पूर्व कमलनाथ सरकार में कृषि सलाहकार रहे केदार सिरोही ने डाउन टू अर्थ से कही।
वह बताते हैं कि दूसरा कारण है इस व्यवसाय का अव्यवस्थित होना। किसान गांव में ही प्याज उत्पादन कर वहीं गांव में ही व्यापारी को बेच देते है। किसी ने सीधे शहर ले जाकर बेच दिया। यह सब कागजों में नहीं होता है, इसके कोई आंकड़े नहीं होते हैं। यह जब तक व्यवस्थित नहीं होगा, इसके व्यापार में उतार-चढ़ाव रोकना हमेशा मुशिकल बना रहेगा और किसानों को इसका नुकसान उठाते रहना पड़ेगा।
वहीं, दूसरी ओर कृषि आधारित एक निजी कंपनी में पिछले दो दशक से बतौर कृषि अधिकारी कार्यरत सुनील वर्मा बताते हैं कि रबी सीजन में पैदा होने वाले प्याज का उत्पादन खरीफ की बजाय लगभग दुगनी मात्रा में होता है यानी अधिक मात्रा में होता है। खरीफ की बजाय रबी के प्याज का भंडारण होता है। खरीफ के प्याज का लंबे समय तक भंडारण नहीं किया जा सकता। अतः मजबूरन किसानों को उस समय तय हुई कीमत में ही अपना प्याज बेचना पड़ता है। हो सकता है उसे उस वक्त अच्छी कीमत मिले या लागत भी ना निकल सके।
ध्यान देने वाली बात है कि ऐसे में यह किसानों के लिए एक जोखिम भरा कार्य होता है। सुनील कहते हैं कि रबी के प्याज की भंडारण क्षमता अच्छी होने से सक्षम व भंडारण को लंबे समय तक रख पाने में सफल किसान इसका पूरा- पूरा लाभ उठा पाते हैं, जिनको समय के अनुसार उचित दाम में बेचकर उसका लाभ ले पाते हैं। लेकिन उसमें भी उचित शर्त वही है कि डिमांड सप्लाय से अधिक होने की स्थिति में ही किसान को उसका लाभ मिल पाता है।
प्याज विशेषज्ञों का कहना है कि प्याज की खेती तभी लाभदायक है जब सारी परिस्थितियां किसान के अनुकूल हों। और ऐसा संभव भी नहीं है। इस संबंध में सिरोही कहते हैं कि प्याज के लाभ की खेती पूरी तरह से उसके उत्पादन और बाजार में उसकी मांग पर निर्भर करती है। पहला प्याज का खरीफ का जो उत्पादन होता है वो सीमित होता है प्रति हेक्टेयर लगभग डेढ़ सौ से दो सौ क्विंटल होता है। प्याज के लोकल सप्लाई और निर्यात सप्लाई की वजह से अकस्मात डिमांड में वृद्धि हो जाती है, जिसके फलस्वरूप प्याज की कीमतों में अत्यधिक उछाल आने से किसानों को अच्छा फायदा मिलता है।
वहीं, प्रकृति या मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण जैसे अतिवृष्टि या सूखा आदि पड़ने पर उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तो मांग के अनुरूप प्याज की पूर्ति नहीं होने से भी भाव में वृद्धि होती है, जिसका लाभ किसानों को मिलता है।
प्याज की खेती से जुड़ा एक बड़ा मुद्दा है प्याज का कुल उत्पादन। इसका 10 प्रतिशत भी भंडारण क्षमता प्रदेश में उपलब्ध नहीं है। इस संबंध में निमाण क्षेत्र के किसान श्रवण पाटीदार कहते हैं कि जब इस तरह की फसल के भंडारण की व्यवस्था नहीं होगी और ऊपर से यह उपज जल्दी खराब होती है तो उसका नुकसान ज्यादा उठाना पड़ता है।
इसका उत्पादन 80 से 100 क्विंटल हेक्टेयर तक जाता है। ऐसे में हम किसान के इतने बड़े घर भी नहीं होते कि वह उसका भंडारण करके रख सकें। इसलिए हमको उस प्याज को तत्काल बाजार में बेचना ही पड़ता है, हर हाल में सरकार को भंडारण क्षमता को बढ़ाने की जरूरत है। प्याज के एक अन्य किसान राकेश ठाकुर बताते हैं कि हमारी दूसरी बड़ी समस्या है परिवहन की। एक-डेढ़ रुपए की चीज का परिवहन खर्च 2 रुपए लग जाता है। यह किसानों के लिए भारी पड़ता है।
ऐसे में सही कीमत न मिल पाने के कारण वे लागत भी नहीं निकाल पाते हैं। प्याज उत्पादक किसान अनिल पाटीदार ने बताया कि सरकार ने प्याज की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया जिससे प्याज की कीमतों में निश्चत ही गिरावट आएगी। ऐसे में बहुत लागत लगाकर जो किसान प्याज की उपज लेता है वह तो प्याज की खेती और इसके परिवहन व स्टोरेज पर होने वाला व्यय भी नहीं निकाल पाएगा। सबसे बड़ी चुनौती प्याज के भंडारण को लेकर ही होती है, क्योंकि यदि प्याज एक बार खराब होनी शुरू हो जाती है तो फिर उसे संभाल कर रखना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में प्याज को जो रेट उपलब्ध है उस पर बेचना पड़ता है।
ध्यान रहे कि मध्य प्रदेश में लगभग 6 से 8 लाख किसान पूरी तरह प्याज की खेती पर निर्भर हैं। प्याज की ज्यादातर खेती मालवा और निमाड़ क्षेत्र में होती है। देश में मध्यप्रदेष दूसरा सबसे बड़ा प्याज उत्पादक राज्य है। प्रदेश में सालाना 102.9 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में खेती होती है और 3721.61 लाख टन पैदावार होती है। प्रदेश में प्याज की पैदावार तीनों मौसम में यानी खरीफ, लेट खरीफ और रबी में होती है। प्रदेश में मुख्य प्याज उत्पादक जिले इंदौर, सागर, शाजापुर, खंडवा, उज्जैन, देवास, रतलाम, शिवपुरी, मालवा, राजगढ़, धार, सतना, खरगौन और छिंदवाड़ा।