मुक्त व्यापार समझौतों के खिलाफ खड़े हुए किसान संगठन

भारत सरकार इस वक्त 10 मुक्त व्यापार समझौते की भागीदार है और 6 ऐसे एफटीए हैं जिनमें हस्ताक्षर किए हैं। इससे भारतीय किसानों की कमर टूट सकती है
राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ ने मुक्त व्यापार समझौतों के खिलाफ मुहिम शुरू करने का ऐलान किया। फोटो: विवेक मिश्रा
राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ ने मुक्त व्यापार समझौतों के खिलाफ मुहिम शुरू करने का ऐलान किया। फोटो: विवेक मिश्रा
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इसी महीने अमेरिका का एक प्रतिनिधि मंडल भारत से व्यापारिक समझौते के मकसद से आने वाला है। वहीं, किसान संगठन आरसीईपी के बाद अब विदेशी व्यापारिक समझौतों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं। राष्ट्रीय किसान महासंघ ने कहा है कि यदि संसद में बिना बहस विदेशी व्यापारिक समझौतों पर सरकार एकतरफा निर्णय लेगी तो यहां के किसान दाने-दाने को मोहताज हो जाएंगे। इसलिए पहले संसद में पुराने एफटीए के प्रभावों पर बात करते हुए प्रस्तावित एफटीएपर पर बहस होनी चाहिए। किसानों के विरोध के चलते यूरोपियन यूनियन से होने वाला मुक्त व्यापार समझौता भी टल चुका है।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (आरसीईपी) पर भले ही सरकार ने हाथ पीछे खींचने की बात कही हो लेकिन दूसरी तरफ मुक्त व्यापारिक समझौतों (एफटीए) में दिलचस्पी बढ़ा रही है। 15 अक्तूबर 2019 को निर्मला सीतारमण ने अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में दिए गए  एक भाषण के दौरान कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक समझौते को लेकर संवाद बेहतर है जल्द ही इसे अंतिम रूप दे दिया जाएगा।  वहीं, 13 नवंबर, 2019 को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने वाशिंग्टन में अमेरिकी प्रतिनिधि से मिलकर एफटीए पर जल्द ही निर्णय लेने को कहा है। इसी सिलसिले में नवंबर में अमेरिकी दल भारत पहुंचेगा।

राष्ट्रीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक केवी बीजू ने बताया कि भारत अमेरिका के निर्यात क्षेत्र से नहीं लड़ सकता। यदि इस समझौते पर भारत हस्ताक्षर करता है तो अमरेिका से जीरो प्रतिशत आयात शुल्क पर अखरोट, बादाम, सेब, दूध उत्पाद, सोयाबीन का आयात किया जएगा जिससे हमारे किसानों की कम टूट जाएगी। 2015 में भारत कृषि उत्पाद मामलों में देश में नौवें स्थान पर था।   2018 में भारत शीर्ष दस निर्यातक देशों की सूची से बाहर हो गया। अभी भारत 14वें स्थान पर है। अमेरिका अपने यहां किसानों को काफी सब्सिडी देता है। विश्व व्यापार संगठन बनने के बावजूद कई देशों ने अमेरिका के इस सब्सिडी का विरोध किया लेकिन यह जारी रही। सब्सिडी को ग्रीन बॉक्स के नाम पर शिफ्ट कर दिया गया। इसलिए अमेरिका से किसी भी तरह के मुक्त व्यापार समझौते से पहले संसद में बहस बेहद जरूरी है।   

भारत सरकार इस वक्त 10 मुक्त व्यापार समझौते की भागीदार है और 6 ऐसे एफटीए हैं जिनमें हस्ताक्षर किए हैं। जबकि एफटीए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की शर्तों और दायरे के पार चला जाता है। डब्ल्यूटीओ ने अधिकतम आयात शुल्क को तय कर रखा है जबकि एफटीए इस पाबंदी को खत्म कर देता है। वहीं, आयात शुल्क कम होने से भारतीय किसान बड़ी दुविधा में फंस सकते हैं। भारत में निर्यात लगातार गिर रहा है। 2013-14 में भारत का निर्यात आंकड़ा 43.23 अरब डॉलर था जो कि 2016-17 में गिरकर 33.87 अरब डॉलर पहुंच गया। वहीं, इस अविध में कृषि उत्पादों (खासतौर से पौधे और समुद्री उत्पाद) के आयात में काफी वृद्धि हो गई। कृषि उत्पादों के मामले में 2013-14 में भारत का आयात 15.03 अरब डॉलर था जो कि 2016-17 में 25.09 अरब डॉलर पहुंच गया।  

मुक्त व्यापार समझौते के चलते भारतीय खाद्य तेल को पहले से ही भारी नुकसान पहुंचा है। केरल के नारियल किसान सबसे बड़े भुक्तभोगी हैं।  1999-2000 में जहां 600 करोड़ का नारियल उत्पादन हुआ वहीं, 2016-17 में यह उत्पादन गिरकर 300 करोड़ नारियल पहुंच गया। भारत खाद्य तेल के मामले में कभी आत्मनिर्भर था आज वह खुद ही 55 फीसदी तेल का आयात करता है। इसके चलते खाद्य तेल की कई ईकाइयां बंद हो चुकी हैं। राष्ट्रीय किसान महासंघ ने चेतावनी दी है कि यदि भारत अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते की तरफ बढ़ती है तो एक बार फिर व्यापक आंदोलन किया जाएगा।

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