एफएओ ने जारी किया नया एक्शन प्लान, कृषि से जुड़ी जलवायु रणनीति करेगा तैयार

कार्य योजना को एफएओ ने अपनी महत्वाकांक्षी रणनीति के समर्थन के लिए जारी किया है, जिसे कृषि क्षेत्र में जलवायु से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए 2022 में जारी किया गया था
एफएओ ने जारी किया नया एक्शन प्लान, कृषि से जुड़ी जलवायु रणनीति करेगा तैयार
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खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने अपनी महत्वाकांक्षी रणनीति के समर्थन के लिए एक नया एक्शन प्लान जारी किया है। गौरतलब है कि इस कार्यनीति को 2022 से 2031 के बीच कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए 2022 में जारी किया गया था। यह रणनीति ऐसी टिकाऊ, समावेशी और लचीली कृषि खाद्य प्रणालियों की कल्पना करती है, जो जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बन सकती हैं।  

वैश्विक कृषि खाद्य प्रणालियों की बात करें तो इनमें खाद्य एवं गैर-खाद्य कृषि उत्पादों के उत्पादन से लेकर भंडारण, परिवहन, प्रसंस्करण, वितरण, विपणन, निपटान और उपभोग तक सभी को शामिल किया जाता है।

यह सही है कि मौजूदा समय में ये प्रणालियां वैश्विक स्तर पर होने वाले कुल उत्सर्जन में करीब एक तिहाई का योगदान कर रही हैं, लेकिन साथ ही यह भी सच है कि कृषि जलवायु में आते बदलावों और उसने पैदा हुए संकट से बुरी तरह प्रभावित भी है।

हालांकि एफएओ के मुताबिक इन कृषि खाद्य प्रणालियों के पास जलवायु में आते बदलावों का सामना करने के साथ उनसे निपटने के उपाय भी मौजूद हैं। देखा जाए तो ये प्रणालियां जलवायु अनुकूलन के साथ जलवायु शमन में भी मददगार हो सकती हैं। ऐसे में रणनीति का लक्ष्य इन समाधानों के प्रति जागरूकता पैदा करना और निवेश को बढ़ावा देना है।

रणनीति, वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए अन्य कृषि उत्पादों और सेवाओं के साथ  प्रचुर मात्रा में सुरक्षित और पौष्टिक आहार की उपलब्धता सुनिश्चित करने की भी वकालत करती है, जिससे कोई भी पीछे न छूटे। इतना ही नहीं इसका उद्देश्य ऐसी अर्थव्यवस्थाएं तैयार करना हैं जो जलवायु अनुकूल होने के साथ-साथ उसमें आने वाले बदलावों का सामना करने के भी काबिल हो। साथ ही वो बढ़ते उत्सर्जन में भी जितना हो सके कम से कम योगदान दें।

महत्वपूर्ण यह है कि रणनीति त्वरंत कार्रवाई की आवश्यकता को भी स्वीकार करती है। ऐसे में यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह रणनीति समय पर सफलतापूर्वक लागू हो, एफएओ ने अपने सदस्य देशों के साथ चर्चा के बाद इस एक्शन प्लान को तैयार किया है।

इस बारे में एफएओ के महानिदेशक क्यू डोंगयु का कहना है कि, "यह रणनीति जलवायु संकट से जुड़े प्रभावों से निपटने की वैश्विक चुनौती के प्रति हमारी प्रतिक्रिया है। इसका उद्देश्य जैव विविधता को होते नुकसान, मरुस्थलीकरण, पर्यावरणीय क्षरण, सस्ती-सुलभ अक्षय ऊर्जा की आवश्यकता के साथ खाद्य और जल सुरक्षा जैसी एक दूसरे से जुड़ी चुनौतियों की विस्तृत श्रंखला का समाधान करना है।" उनके अनुसार यह कार्य योजना एफएओ के सभी कार्यक्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कृषि खाद्य प्रणालियों से जुड़े सभी समाधानों को लागू करने में मदद करेगी।

जानें किन मुद्दों पर केंद्रित है यह एक्शन प्लान

एफएओ के मुताबिक यह कार्य योजना मुख्य रूप से तीन बिंदुओं पर केंद्रित है, इसमें सबसे पहले वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर जलवायु से जुड़ी कार्रवाईयों की वकालत करना शामिल है। बता दें कि एफएओ वैश्विक मंचों पर जलवायु से जुड़ी कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए अपने प्रयासों को भी बढ़ा रहा है।

दूसरा मुख्य बिंदु राष्ट्रीय स्तर पर नीतियों का समर्थन करना है। जहां तक एफएओ के सदस्य देशों में नीतिगत समर्थन की बात आती है, इस योजना का उद्देश्य जलवायु प्रतिबद्धताओं, विशेष रूप से राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं (एनएपी) और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को विकसित और लागू करने में मजबूत समर्थन देना है।

एफएओ अपने एनडीसी और एससीएएलए कार्यक्रम के माध्यम से इस प्रयास में सक्रिय रूप से शामिल है। जो मौजूदा समय में अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका के 12 देशों में काम कर रहा है। बता दें कि एससीएएलए कार्यक्रम एनडीसी और एनएपी के माध्यम से भूमि उपयोग और कृषि में जलवायु महत्वाकांक्षा को बढ़ाने पर केंद्रित है।

देखा जाए तो नेपाल जैसे देशों में जहां सीमित क्षमता के चलते जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से निपटने में मुसीबतें आ रहीं हैं, वहां एससीएएलए कार्यक्रम महत्वपूर्ण प्रभाव डाल रहा है। यह कार्यक्रम देशों को तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान कर रहा है। इससे नेपाल को मजबूत और जलवायु का सामना कर सकने के योग्य कृषि प्रणाली विकसित करने के साथ, भूमि उपयोग के बेहतर तरीकों को अपनाने में मदद कर रहा है।

इस एक्शन प्लान का तीसरा अहम बिन्दु है, स्थानीय लोगों विशेष तौर पर महिलाओं और मूल निवासियों जैसे कमजोर समूहों की पहचान करना, और उन्हें साथ लेकर चलना। इसके तहत स्थानीय लोगों की भागीदारी के साथ बेहतर प्रथाओं को अपनाने पर विशेष ध्यान देना जरूरी है।

जो न केवल खाद्य सुरक्षा और जीविका के बेहतर अवसर सुनिश्चित करेगा, साथ ही जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता को होते नुकसान और जमीन की गुणवत्ता में आती गिरावट को भी संबोधित करेगा।

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