अब बिहार में ईंटों के लिए बिना किसी पर्यावरण मंजूरी के ही मिट्टी का खनन करीब 1.5 मीटर तक किया जा सकता है। ईंट-भट्ठों के लिए भले ही यह राहत की खबर है लेकिन बिहार जैसे कृषि प्रधान सूबे के लिए यह काफी खतरनाक साबित हो सकता है। दरअसल मिट्टी की ऊपरी परत काफी महत्वपूर्ण होती है और खासतौर से उपज के लिए बेहद अहम भूमिका निभाती है। ईंटों के लिए उपजाऊ मिट्टी की बलि बिहार काफी ज्यादा चुका रहा है।
दिल्ली स्थित संस्था डेवलपमेंट अल्ट्रानेटिवस के डॉ सुमन मैती के मुताबिक बिहार में 5,283 पंजीकृत ईंट भट्ठे हैं। इनके जरिए सालाना 17.5 अरब ईंटों का निर्माण किया जाता है। इन ईंटों को पकाने के लिए 48 लाख कोयले और 5.3 करोड़ टन मिट्टी की जरूरत पड़ती है जो कि मृदा की ऊपरी परत होती है। इस पूरे उत्पादन में 16 लाख टन कॉर्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।
मिट्टी खनन के लिए बिहार में जब इस बार के विधानसभा चुनाव थे उसी बीच राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से पर्यावरण मंजूरी की शर्त को खत्म करने वाला आदेश जारी किया गया। 22 अक्तूबर, 2020 को जारी आदेश में कहा गया है कि खान एवं भूतत्व विभाग बिहार सरकार की ओर से 14 सितंबर, 2020 को जारी अधिसूचना में ईंट-भट्टठों के लिए ईंट मिट्टी के उत्खनन को खनन गतिविधि ही नहीं माना गया है, ऐसे में 1.5 मीटर गहराई तक मिट्टी खनन के लिए पर्यावरणीय सहमति की जरूरत नहीं होगी।
अपने आदेश में बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह भी कहा है कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 28 मार्च, 2020 को जारी अपने अधिसूचना में कहा था कि ऐसे क्रियाकलाप जिन्हें राज्य सरकार द्वारा गैर खननकारी क्रियाकलाप में रखा गया है, उनके लिए पूर्व में हासिल की जाने वाली पर्यावरण मंजूरी की छूट होगी। ऐसे में बिहार में काम करने वाले ईंट-भट्ठों को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 एवं वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1981 के तहत पूर्व पर्यावरण मंजूरी की जरूरत नहीं होगी।
बिहार ने भले ही 2040 तक कार्बन न्यूट्रल स्टेट बनने का सपना दिखाया हो लेकिन यह कदम उसे काफी पीछे ढ़केल सकता है।