किसानों की आर्थिक खुशहाली की कहानी: कितनी सही, कितनी गलत?
यह बात बार- बार दोहराई जाती है कि भारत आज भी कृषि प्रधान देश है और खेती ही बहुसंख्यक आबादी की आजीविका का सहारा है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के हाल ही में प्रकाशित ऑल इंडिया रूरल फाइनैंशियल इंक्लूजन सर्वे 2021-22 के दूसरे संस्करण की मानें तो 57 फीसदी ग्रामीण परिवार खेती से सीधे तौर पर जुड़े हैं या प्राथमिक तौर पर अपने पोषण के लिए खेती पर निर्भर हैं। इस तरह से यह सर्वेक्षण, देश में कृषि परिवारों की स्थिति पर एक वक्तव्य भी है।
सर्वेक्षण में बताया गया है कि किसानों में बढ़ते असंतोष और गहरे कृषि संकट के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में गैर कृषि-परिवारों की तुलना में कृषि-परिवारों की आय में वृद्धि हुई है। 2021- 22 के कृषि वर्ष में कृषि कार्यों से जुड़े परिवार की मासिक आय 13,661 रुपए थी, जबकि एक गैर कृषि-परिवार की मासिक आय 11,438 रुपए थी। एक कृषि-परिवार की आय संयुक्त राष्ट्रीय औसत ग्रामीण परिवार की मासिक आय यानी 12,698 रुपए से भी अधिक थी।
तो, किस स्रोत से एक कृषि-परिवार सबसे ज्यादा पैसे कमाता है। इससे संकेत मिलेगा कि क्या एक कृषि-परिवार वास्तव में खेती से गुजारा करने लायक कमा पा रहा है। सर्वेक्षण से कुछ निष्कर्ष निकले हैं, जो दिखाते हैं कि कृषि-परिवार आर्थिक झटकों के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं और खेती से होने वाली आमदनी के कम होेते जाने से उसे आय के अन्य स्रोतों पर निर्भर होना पड़ता है।
एक कृषि-परिवार की मासिक आमदनी में खेती से होने वाली आय उसकी कुल आय का लगभग एक तिहाई ही है। इसका मतलब है कि एक कृषि-परिवार आमदनी का दो तिहाई हिस्सा, सरकारी या निजी नौकरी, मजदूरी यह अन्य उद्यमों से कमा रहा है।
भारत आज भी प्राथमिक तौर पर छोटे और सीमांत किसानों (जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है) का देश बना हुआ है, जहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी जोतने वाली जमीन तेजी से कम होती जा रही है। सर्वेक्षण से भूमि जोत के आधार पर अलग-अलग लिए गए आंकड़ों की जांच करने पर कृषि परिवार की आय की समग्र स्थिति गंभीर दिखती है।
दो हेक्टेयर से अधिक भूमि वाला परिवार, कम जमीन जोतने वाले परिवार की तुलना में दोगुना कमाता है, और देश के अधिकांश किसान कम जमीन जोतने वाले ही हैं। अपेक्षा के अनुरूप ही जैसे -जैसे जमीन कम होती जाती है तो दूसरे स्रोतों से होने वाली आय, खेती से होने वाली आय से ज्यादा हो जाती है।
सर्वेक्षण में निष्कर्ष निकाला गया है कि ‘कुल मिलाकर, 2 हेक्टेयर से ज्यादा भूमि वाले परिवारों की खेती से होने वाली आय, 0.01 हेक्टेयर से कम भूमि वाले परिवारों की समान स्रोत से होने वाली आय से 57 गुना अधिक है।’
56 फीसदी से ज्यादा कृषि परिवार, अपनी मासिक आमदनी तीन या उससे भी ज्यादा जरियों से कमाते हैं। इसके बिल्कुल उलट, 66 फीसदी से ज्यादा गैर कृषि परिवारों के पास उनकी आमदनी का केवल एक ही स्रोत है।
सर्वेक्षण ने निष्कर्ष निकाला कि संकटग्रस्त छोटे और सीमांत किसानों के लिए यह एक प्रभावी कदम है। इसने यह साबित किया कि खेती से आय में होने वाले नुकसान की भरपाई करने के लिए उन्होंने अपनी आजीविका के साधन बढ़ाये हैं और इस तरह वे एक ही स्रोत पर निर्भर रहकर आर्थिक झटकों के प्रति कम संवेदनशील बने हैं।
इसका समर्थन करने के लिए एक बिंदु यह है कि आय के चार से अधिक स्रोत वाले कृषि परिवार, एक आय स्रोत वाले परिवार की तुलना में लगभग चार गुना कमाते हैं। यह इस निष्कर्ष की भी व्याख्या करता है कि ग्रामीण भारत में कृषि परिवार, गैर-कृषि परिवारों की तुलना में ज्यादा कमा रहे हैं।
क्या यह कृषि परिवारों के बीच बढ़ती आर्थिक खुशहाली का संकेत है? बिल्कुल नहीं, एक कृषि परिवार पर काफी कर्ज होता है, उसे भोजन पर ज्यादा खर्च करना होता है आर्थिक झटकों का भी सामना करना पड़ता है।
सर्वेक्षण से पांच पहले तीस फीसदी कृषि परिवारों ने अनियमित बारिश, कीड़ों के हमलों, चक्रवातों और सूखे की वजह से फसल चौपट होने का दंश झेला। ऐसे ही 12 फीसदी ने रिपोर्ट दी थी कि कीमतों में उतार-चढ़ाव की वजह से उन्हें नुकसान का सामान करना पड़ा। इन नुकसानों से उबरने के लिए कृषि परिवारों को अपनी बचत खर्च करनी पड़ी या फिर अनौपचारिक स्रोतों से कर्ज लेना पड़ा।
इससे उनकी कुल आय में कमी आती है। इसके अलावा एक कृषि परिवार का मासिक उपभोग व्यय 11,710 रुपए है, इस प्रकार पांच सदस्यों वाले औसत परिवार के लिए 1,951 रुपए की शेष आय (जिसे शुद्ध आय कहा जाता है) बचती है। छोटे और सीमांत किसान भोजन पर भी अधिक खर्च करते हैं।
इस अनिश्चित बहुस्रोत अर्थव्यवस्था में, और जलवायु घटनाओं के संदर्भ में बढ़ते आर्थिक झटकों में, आर्थिक रूप से एक कृषि परिवार पहले से कहीं अधिक मजबूर है। यह कृषि परिवारों के बीच कर्ज के स्तर में दिखाई देता है।
औसतन, एक कृषि परिवार पर 91,231 रुपये का कर्ज बकाया है, जबकि एक गैर-कृषि परिवार पर 89,074 रुपये का कर्ज है। इस प्रकार, एक कृषि परिवार पर कर्ज का बोझ उसकी मासिक सकल आय का लगभग सात गुना है। यही कारण है कि ज्यादातर भारतीय किसान अपना पूरी जिंदगी केवल कर्ज चुकाने में ही बिता देते हैं।