उत्तर प्रदेश में सूखे जैसे हालात ने धान की रोपाई के लिए बारिश की आस लगाए बैठे किसानों की कमर तोड़ दी है। कई गांवों में सिंचाई के लिए ट्यूबवेल का पानी इस्तेमाल करने पर पुलिसिया कार्रवाई का खौफ फैला हुआ है। हालात इतनी खराब है कि समूचे प्रदेश में 20 जुलाई, 2022 तक प्रदेश के कुल 75 जिलों में से 72 जिलों में यानी 96 फीसदी जिलों में सामान्य से कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है। इनमें 59 जिले ऐसे हैं जहां सामान्य से अत्यधिक कम वर्षा रिकॉर्ड हुई है, जिसे भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) लार्ज डेफिसिट (60 फीसदी से अधिक वर्षा की कमी) परिभाषित करता है। जबकि 13 जिले ऐसे हैं जहां सामान्य से कम वर्षा यानी डेफिसिट (20 से 59 फीसदी कम वर्षा वाले जिले) रिकॉर्ड की गई है।
सूखे जैसे हालात से गुजर रहे उत्तर प्रदेश में 4 जिलों में वर्षा न के बराबर हुई है और वे जिले 90 से 98 फीसदी तक वर्षा की कमी वाले क्षेत्र बन गए हैं। इन इलाकों में रबी सीजन के नुकसान के बाद अब खरीफ फसलों का संकट शुरू हो गया है।
आईएमडी के मुताबिक 20 जुलाई, 2022 तक मानसून सीजन में सर्वाधिक वर्षा की कमी वाला जिला कौशांबी है। जहां सामान्य से 98 फीसदी कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है। इसके बाद बाढ़ क्षेत्र में आने वाले गोंडा जिले में 91 फीसदी कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है। इसके अलावा बुंदेलखंड क्षेत्र में आने वाले बांदा जिले में 91 फीसदी कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है। इसके अलावा कानपुर देहात में सामान्य से 90 फीसदी कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है।
उत्तर प्रदेश में कौशांबी जिले में मानसून सीजन में 20 जुलाई तक 98 फीसदी सामान्य से कम वर्षा होने के कारण खेत सूखे पड़े हैं। किसानों के बेहन (नर्सरी में तैयार रोपाई के लिए प्लांट) भी तेजी से सूख रहे हैं।
कौशांबी जिले में सोभना गांव के रहने वाले 58 वर्षीय महेंद्र सिंह 20 बीघे में खेती करते हैं और अपने क्षेत्र में जाने-माने किसान हैं। वह डाउन टू अर्थ से बात करते हुए कहते हैं “ मैने इससे पहले 1980 में ऐसा सूखा अनुभव किया था। इस बार 4 बीघे की धान की रोपायी के लिए बेहन तैयार किया है लेकिन अभी तक बारिश न होने के कारण वह भी सूख रही है।” वह बताते हैं “मेरे गांव में जो लोग 10 बीघे धान लगाते थे वह इस वर्ष सिर्फ 2 बीघे तक सिमट गए हैं।”
ट्यूबवेल से पानी निकालने को लेकर महेंद्र बताते हैं कि उनके गांव में पुलिस ने मौखिक इसकी मनाही की है। इसलिए गांव में सभी को वर्षा का इंतजार है लेकिन अब बहुत ही देर हो चुकी है।
सूखे जैसी स्थिति वाले उत्तर प्रदेश में ट्यूबवेल से सिंचाई को लेकर पुलिस का खौफ कई जिलों में है। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में राजापुर कला के बुधई लोध बताते हैं “आस-पास के गांव में शोर है कि पुलिस धान की खेती के लिए ट्यूबवेल के जरिए पानी नहीं निकालने दे रही है। हमने इस डर से अभी तक धान की रोपाई नहीं की है। बारिश की आस में रोपाई के लिए तैयार किया गया बेहन खराब होता जा रहा है।”
प्रतापगढ़ जिले में कटरा गांव के निवासी 50 वर्षीय तुलसीराम बताते हैं “हर साल हम 4 बीघे में धान की रोपाई करते थे। लेकिन इस बार बार लगता है केवल 15 बिस्वा ही रोपाई हो पायेगी। अभी तो बिल्कुल भी रोपायी नही हो पायी है। हर साल नहर में पानी आ जाता था लेकिन इस बार बहुत कम पानी आ रहा है जो आ भी रहा है। वो हमारे खेतो तक नही पहुंच पा रहा है।”
उत्तर प्रदेश में इस बार खरीफ सीजन में धान का रकबा काफी ज्यादा सिकुड़ गया है। कई जिलों में किसान खुद इस बात की गवाही दे रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र के प्रमुख जिले प्रयागराज में मेंडारा गांव के 58 वर्षीय किसान फूलचंद्र मौर्य डाउन टू अर्थ से बताते हैं “हमारे क्षेत्र में हर वर्ष 20 जुलाई तक 90 प्रतिशत धान की रोपाई हो जाती थी। लेकिन इस बार हो केवल 20-25 प्रतिशत ही रोपाई हो पायी है।” वह बताते हैं कि जिनके पास खुद के सिंचाई के साधन हैं केवल वो ही अब तक रोपाई कर पाये हैं। बाकी किसानों को वर्षा की आस है।
सूखे को याद करते हुए फूलचंद्र बताते हैं कि “मैने प्रयागराज में इस तरह का सूखा 2007 में देखा था लेकिन उस समय भी बारिश हो थोड़ी बहुत हो गयी थी। इस बार बारिश शुरु से ही नहीं हुई है। साथ ही लग रहा है। आस-पास के गांवों में ट्यूबवेल के इस्तेमाल पर पुलिसिया कार्रवाई का भय है लगता है हमारे गांव में भी रोक लग जाएगी।
प्रयागराज के गनीपुर गांव के 52 वर्षीय निवासी रामनरेश यादव बताते हैं कि इनका गांव गंगा नदी के पास है लेकिन बारिश न होने की वजह से गंगा में इस बार पानी बहुत कम रह गया है। वह कहते हैं कि हर बार उनके आस-पास के खेत गंगा के पानी से डूब जाते थे लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है कि गंगा भी सूख जायेगी।
रामनरेश हर साल 4-5 बीघे के करीब धान रोपते थे लेकिन इस बार 2 बीघे ही लगा रहे वो इस उम्मीद में की बारिश होगी।
वह आगे कहते हैं “अगर बारिश नही होगी तो हम लोगो के लिए बहुत ही विकट स्थिति हो जायेगी। राम नरेश कहते हैं की वह धान के अलावा कद्दू (स्थानीय भाषा में कोहणा) की भी खेती करते हैं लेकिन बारिश न होने से उनकी फसल सूख रही है।”
इस खरीफ संकट के लिए सरकार ने हाल ही में बैठक की थी, जिसमें सूखे को लेकर कोई निर्णय नहीं हो पाया। 17 जुलाई, 2022 तक पूरे प्रदेश में धान की रोपाईका 45 फीसदी रकबा ही कवर हो सका। सरकार सूखे और राहत को लेकर अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है। आला अधिकारियों को एक जोरदार वर्षा का इंतजार है ताकि लगातार वर्षा की कमी वाले क्षेत्रों में डेफिसिट को कम किया जा सके।
बहुत कम समय में ज्यादा वर्षा हो जाने की उम्मीद लगाई जा रही है, अगर ऐसा हुआ तो किसानों को खरीफ सीजन में और बड़ा झटका लग सकता है।