डाउन टू अर्थ तफ्तीश: क्या 2022 तक किसानों की आमदनी हो जाएगी दोगुनी

देश के हर जिले में दो मॉडल गांव चुने गए हैं, जिनके किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन डाउन टू अर्थ की तफ्तीश में क्या मिला?
फोटो: सुनीता नारायण
फोटो: सुनीता नारायण
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28 फरवरी 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के शहर बरेली में किसान रैली को संबोधित करते हुए कहा कि उनका सपना है कि जब देश साल 2022 में आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा हो तो किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए।

इसके बाद कुछ विशेषज्ञों ने इसे अव्यवहारिक बताते हुए कहा था कि पांच साल में किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए 14.86 फीसदी सालाना कृषि विकास दर की जरूरत पड़ेगी। लेकिन बाद में यह स्पष्ट किया गया कि सरकार किसानों की आमदनी का आधार वर्ष 2015-16 मानेगी और कृषि वर्ष 2022-23 में यह लक्ष्य हासिल किया जाएगा। जिसका मतलब था कि सरकार सात साल में किसानों की आमदनी दोगुनी करेगी। नीति आयोग के सदस्य रमेश कुमार द्वारा मार्च 2017 में जारी पॉलिसी पेपर में आकलन किया गया कि सालाना विकास दर 14.86 फीसदी नहीं बल्कि 10.4 प्रतिशत की जरूरत पड़ेगी।

इस आधार पर देखा जाए तो अब दो साल 4 माह का समय बचा है। अब तक किसान की आमदनी कितनी बढ़ी है। इस बारे में सरकार के पास कोई जानकारी नहीं है।

15 सितंबर 2020 को लोकसभा में मारगनी भरत और रणजीत रेड्डी द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तौमर ने जानकारी दी कि किसानों की आय का आकलन राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के द्वारा किया जाता है। इस संगठन ने पिछला अनुमान कृषि वर्ष 2012-13 तैयार किया था। नए अनुमान अभी उपलब्ध नहीं हुए हैं। हालांकि किसानों के कल्याण के लिए कार्यान्वित किए जा रहे विभिन्न गतिविधियां व योजनाओं के प्रभाव से यह संकेत मिलता है कि किसानों की आय दोगुनी करने संबंधी कार्यनीति सही दिशा में चल रही है। तौमर ने स्पष्ट तौर पर कहा कि ऐसी कोई भी आय मूल्यांकन रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है, जिससे किसानों की आय दोगुनी करने संबंधी लक्ष्य पर कोरोना वायरस से पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन किया जा सके।

इसका मतलब है कि सरकार आय दोगुनी करने की बात तो कर रही है, लेकिन साल दर साल इस तरह का कोई आकलन नहीं किया जा रहा है, जिससे पता चल सके कि सरकार अपने लक्ष्य से कितनी दूर है। हालांकि कृषि मंत्री ने यह भी बताया कि एनएसओ वर्ष 2019-20 के लिए परिवारों का भूमि स्वामित्व और पशुधन का सर्वेक्षण व कृषि भू स्वामियों की स्थिति का मूल्यांकन कर रहा है। यानी कि एनएसओ की इस रिपोर्ट में ही पता चल पाएगा कि चार साल के दौरान किसानों की आमदनी में कितनी वृद्धि हुई।  

सरकार का कहना है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई स्तर पर काम चल रहा है। सरकार ने सभी संबंधित विभागों को इस काम में जुटने के निर्देश दिए थे। इसके मद्देनजर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने किसानों की आय दोगुना करने के लिए राज्य विशिष्ट कार्यनीति दस्तावेज तैयार किया और राज्य सरकारों को भेज दिया। लेकिन इस कार्यनीति को सही मायने में लागू करने के लिए आईसीएआर ने हर जिले में  मॉडल के तौर पर दो गांवों के किसानों की आमदन दोगुनी करने का बीड़ा उठाया और हर जिले में कृषि विज्ञान केंद्र को यह जिम्मेवारी सौंपी गई कि वे दो गांव को गोद ले लें। तीन मार्च 2020 को संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत कृषि पर बनी स्थायी समिति की रिपोर्ट में बताया गया कि तीस राज्यों व केंद्र शासित क्षेत्रों के 651 कृषि विज्ञान केंद्रों ने 1,416 गांवों को गोद ले लिया है। इन गांवों को "डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज " नाम दिया गया है।

इसके अलावा आईसीएआर से सबंद्ध अलग-अलग संस्थान भी कुछ मॉडल पर काम कर रहा है। जैसे कि इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ शुगर रिसर्च, लखनऊ ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल अपनाते हुए उत्तर प्रदेश के आठ गांव को गोद लिया है और यहां की 2028 किसान परिवारों की आमदनी दोगुनी करने का बीड़ा उठाया है।

डाउन टू अर्थ ने पांच राज्यों के कुछ गांवों की तफ्तीश की कि आखिर यह योजना किस स्तर पर चल रही है और किसानों की आमदनी कैसे बढ़ रही है। अगली कड़ियों में आप राज्यवार जानेंगे कि क्या 2022 तक इन गांवों के किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी, क्या ये गांव दूसरे गांवों के मिसाल बनेंगे।

पढ़िए, डाउन टू अर्थ की तफ्तीश की पहली कड़ी- अंधेरे में तीर मारने जैसी है किसानों की आय में वृद्धि की कवायद

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