“तीन लाख रुपए तक कृषि ऋण के लिए सभी तरह के सेवा शुल्क जैसे प्रोसेसिंग फीस, इंस्पेक्शन चार्ज, लेजर फोलियो चार्ज पर छूट है। साथ ही, एक लाख रुपए के बजाए अब छोटी अवधि के लिए 1.60 लाख रुपए तक का कृषि ऋण बगैर किसी गिरवी के होगा।”
किसानों को सहज और सुलभ कृषि ऋण के एक सवाल पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में यह जवाब 14 दिसंबर, 2021 को दिया था।
दुर्भाग्य से लोकसभा में कृषि ऋण के संबंध में दिया गया यह कथन सिर्फ कागजी हैं। जमीन पर अब भी किसानों को कृषि ऋण हासिल करने के लिए बैंकों को न सिर्फ मोटी सेवा शुल्क देना पड़ रहा है, बल्कि उन्हें अपने खेतों को गिरवी भी रखना पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले में पटना खरगौरा गांव के रहने वाले किसान हिरावन डाउन टू अर्थ से कहते हैं, “इलाहाबाद बैंक ने 65,000 रुपए का किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) जारी करने के लिए कुल 1,700 रुपए सेवा शुल्क लिया है। बैंक ने 0.5 हेक्टेयर जमीन भी इसके लिए गिरवी रख ली है।”
हिरावन ने बताया कि बैंक से उन्हें 65 हजार रुपए की केसीसी में सिर्फ 60 हजार रुपए का ही चेक मिल पाया, शेष 5 हजार रुपए बैंक ने चार्ज काटने के लिए खाते में ही जमा रखने के लिए कहा है।
कृषि ऋण के लिए भारत में कई केंद्रीय और राज्यस्तरीय योजनाएं चल रही हैं लेकिन रोजमर्रा की खेती के लिए किसानों को ज्यादातर कृषि ऋण व्यवसायिक और सहकारी बैंकों के जरिए केसीसी के तहत वितरित किया जाता है (देखें, खेती-किसानी की सभी जरूरतों के लिए,)।
केसीसी जारी करने के लिए जिन नियम और मानकों का पालन किया जा रहा है और किस तरह के शुल्क किसानों से वसूले जाते हैं, यह जानने के लिए मार्च से अगस्त, 2022 के बीच डाउन टू अर्थ ने सूचना के अधिकार 2005 कानून के तहत रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) और देश के दो बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) व पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) से तथ्य जुटाए। आरटीआई के तहत हासिल हुए जवाब कृषि मंत्री के लोकसभा में 3 लाख रुपए तक के बिना किसी सेवा शुल्क वाले ऋण के दावे को झुठलाते हैं।
आरबीआई की ओर से हासिल जवाब यह स्पष्ट तौर पर बताता है कि केसीसी के संबंध में जारी 4 अप्रैल, 2018 की गाइडलाइन के तहत “प्रोसेसिंग फीस, इंस्पेक्शन चार्ज और अन्य चार्ज बैंकों के जरिए तय किया जाता है।” वहीं, एसबीआई ने अपने जवाब में वसूले जाने वाले सेवा शुल्क का एक ब्रेक-अप देते बताया कि 25 हजार रुपए से लेकर 3 लाख रुपए तक केसीसी के तहत दिए जाने वाले कृषि ऋण पर अधिकतम 2 हजार रुपए तक का सेवा शुल्क वसूला जाता है।
वहीं, पीएनबी ने कहा कि वह 3 लाख रुपए तक के कृषि ऋण पर कोई सेवा शुल्क नहीं लेता, हालांकि 1,000 से 1,500 रुपए तक का लीगल फीस केसीसी जारी करने से पहले वसूलता है। इन सेवा-शुल्कों के साथ गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) भी वसूला जाता है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक निजी बैंक में कृषि ऋण का प्रबंधन करने वाले दिवाकर श्रीवास्तव डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि ऋण हासिल करने के लिए जो पैसे लगते हैं उन्हें हम बैंकिंग भाषा में “कॉस्ट ऑफ फंड” कहते हैं। वह बताते हैं कि केसीसी के तहत कृषि ऋण में बैंक प्रोसेसिंग फीस, दस्तावेजीकरण की लागत, स्टाम्प ड्यूटी, लीगल फीस और अन्य चार्ज वसूलती है। यह किसान के लिए काॅस्ट ऑफ फंड है।
उत्तर प्रदेश के बहराइच निवासी किसान अभिषेक मिश्रा बताते हैं कि उन्होंने ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (अब पीएनबी) से केसीसी जारी करवाया था, इसमें उन्हें 1,500 रुपए लीगल फीस और 1,000 रुपए अन्य खर्चे देने पड़े थे।
इसके अलावा डाउन टू अर्थ ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में करीब 25 केसीसी धारक किसानों से बातचीत की और सभी ने बताया कि बैंक से केसीसी जारी करवाते समय विभिन्न मदों में उन्हें औसतन 2,500 रुपए खर्च करने पड़े।
वहीं, कई किसान केसीसी होते हुए भी उसका इस्तेमाल करने से वंचित हो जाते हैं क्योंकि लंबित भुगतान के चलते उनका केसीसी इस्तेमाल लायक नहीं रह जाता।
मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में बिल्किसगंज गांव के रहने वाले महेश परमार बताते हैं कि कोविड महामारी के दौरान आमदनी नहीं होने पर वह दो वर्षों तक अपना केसीसी नहीं जमा कर पाए।
इसके चलते वह इस वर्ष सिंचाई के काम के लिए केसीसी का इस्तेमाल नहीं कर सके। वह बताते हैं, “मैंने 2019 में 2.9 लाख रुपए का केसीसी ऋण लिया था, इसके लिए मैंने अपनी 3.2 हेक्टेयर भूमि बंधक रखी थी। इसके तुरंत बाद महामारी आ गई जिसने मेरी खेती चौपट कर दी। मार्च 2021 में बैंक ने मुझे 66,000 रुपए का ब्याज भरने के लिए एक नोटिस भेज दिया। मैं उस वक्त 33,000 रुपए ही ब्याज भर सका, बाद में 1.56 लाख रुपए और भरे। लेकिन बैंक का कहना है कि अब भी 2.5 लाख रुपए का उधार है। मैं यह नहीं समझ पा रहा कि मेरा 2.9 लाख का ऋण कैसे 4 लाख रुपए में बदल गया।”
परमार के गांव में 15 ऐसे और परिवार हैं जो केसीसी ऋण के बाद एक लंबे ब्याज से त्रस्त हैं। महेश परमार ने ऐसी सूरत में अब फिर से एक निजी साहूकार का दरवाजा खटखटाया है जहां से उन्हें 3 फीसदी ब्याज प्रति महीने की दर से 2 लाख रुपए का ऋण मिला है। वह बताते हैं कि इसी पैसे से उन्होंने कुआं खोदकर अपनी सिंचाई का इंतजाम किया है। हाल ही के वर्षों में खासतौर से महामारी के बाद सरकार ने अपना ध्यान ज्यादा से ज्यादा केसीसी बांटने पर लगाया है। 2013-14 से 2020-21 के बीच संचालित केसीसी की संख्या में करीब 250 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। देश में 2013-14 में ऑपरेशनल केसीसी 2,11,46,132 था जो 2020-21 में 7,37,69,951 तक पहुंच गया है।
चुनावी तकाजा
सरकारी आंकड़े यह बताते हैं कि केसीसी जारी किए जाने और कृषि ऋण माफ किए जाने के बीच एक चुनावी संबंध है। केंद्र के जरिए पहली और अंतिम बार कृषि कर्जमाफी संयुक्त प्रगितिशील संगठन (यूपीए) सरकार में 2008-09 में हुई थी। 21 फरवरी, 2014 को सरकार की ओर से जारी प्रेस रिलीज के मुताबिक, यूपीए सरकार ने 52,000 करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया था, जिसमें केसीसी ऋण भी शामिल था। इस कर्जमाफी से 37 लाख किसानों को फायदा हुआ था।
यूपीए सरकार की ओर से उठाए गए इस कदम के बाद 2008 लोकसभा में उसे फिर से बहुमत हासिल हुआ था। जबकि इसके उलट कृषि ऋण अधिक से अधिक बांटे जाने का भी चुनावी समीकरण सामने आया। मसलन 2017-18 और 2018-19 में अचानक केसीसी की संख्या में जबरदस्त बढ़त हुई। इस अवधि में ऑपरेशनल केसीसी 2,35,28,132 से बढ़कर 6,62,99,599 तक यानी एक वर्ष में ही 181 फीसदी अधिक बढ़त हासिल कर गया। यह आंकड़ा 4 अप्रैल को केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री भगवत कारद ने लोकसभा के एक जवाब में बताया (देखें, चुनाव में कर्ज वितरण)।
कृषि ऋण सिर्फ केंद्र सरकारों के लिए नफा-नुकसान का सौदा नहीं है बल्कि राज्य सरकारों ने भी इसे एक चुनावी टूल की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। कुल दस राज्यों ने अभी तक कृषि ऋण की कर्जमाफी का ऐलान किया है। आरबीआई ने 13 सितंबर, 2019 को “रिपोर्ट ऑफ द इंटरनल वर्किंग ग्रुप टू रिव्यू एग्रीकल्चरल क्रेडिट ” जारी किया था। इन 10 राज्यों में आठ ऐसे राज्य हैं जो सबसे ज्यादा कृषि क्षेत्र ऋण में डूबे हुए हैं। हालांकि, इन राज्यों के जरिए कृषि कर्जमाफी का ऐलान करना और उसे पूरा कर पाना दोनों में काफी फर्क दिखाई देता है। 2014 से 2019 तक कुल 10 राज्यों ने 2,36,460 लाख करोड़ रुपए कृषि ऋणमाफी की घोषणा की लेकिन सिर्फ 1,49,790 लाख करोड़ रुपए (करीब 66 फीसदी) ही बैंकों को रिलीज किया। आरबीआई ने इसकी तस्दीक राज्य सरकार के बजट से की है।
अगला लोकसभा चुनाव 2024 में होना है और केंद्र सरकार दोबारा से केसीसी वितरण पर यानी ज्यादा से ज्यादा कृषि ऋण बांटने पर अपना ध्यान लगा रही है। 7 जुलाई को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश के सार्वजनिक और सहकारी व ग्रामीण बैंकों के साथ एक बैठक में केसीसी के लंबित मामलों का तुरंत निपाटारा करने को कहा है।
लेकिन क्या सरकार की ओर से केसीसी ऋण के जरिए कैश फ्लो नीति किसानों को लंबे समय के लिए राहत पहुंचा रही है? राज्यसभा में 15 मार्च, 2022 को राज्य वित्त मंत्री भगवत कारद की ओर से दिए गए जवाब से यह साफ होता है कि हाल के वर्षों में कृषि ऋण का प्रवाह बढ़ा है। वित्त वर्ष 2015-16 में कृषि ऋण बकाया जहां 12 लाख करोड़ रुपए था, वहीं 2020-21 में यह 18.4 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया।
वहीं, कृषि ऋण हासिल करने वाले किसानों की संख्या 6.9 करोड़ से 10 करोड़ तक पहुंच गई। यदि केसीसी के तहत बांटे गए कृषि ऋण का आंकड़ा देखें तो 4 अप्रैल को कारद की ओर से लोकसभा में दिए गए जवाब के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 में करीब 7.5 लाख करोड़ रुपए का केसीसी ऋण बांटा गया है। हालांकि कारद 15 मार्च को राज्यसभा में दिए गए अपने जवाब में बताते हैं कि बीते छह वर्षों में केंद्र सरकार के जरिए किसी भी तरह कृषि कर्जमाफी नहीं की गई है और न ही कोई ऐसा प्रस्ताव विचाराधीन है कि जिससे किसानों का ऋण माफ कर दिया जाए।
यह तब हो रहा है जब व्यवसायिक बैंक के जरिए 2017-18 से 2021-22 के बीच 10 लाख करोड़ रुपए का नॉन परफॉर्मिंग एसेट या खराब ऋण को बट्टे में डाल दिया गया। इसकी पुष्टि भी राज्यसभा में 2 अगस्त, 2022 को भगवत कारद की ओर से दिए गए एक अन्य जवाब से होती है। वहीं, दूसरी तरफ ऐसा लगता है कि आने वाले वर्षों में कृषि ऋण से दबे परमार जैसे किसान फिर से उच्च ब्याज दरों पर निजी साहूकारों की चपेट में आते रहेंगे।