डाउन टू अर्थ तफ्तीश: किसानों को नहीं भरोसा कि दोगुनी हो जाएगी आय

2022 तक किसानो की आमदनी दोगुनी करने के लिए मध्यप्रदेश में भी कृषि विज्ञान केंद्रों ने जिलों में मॉडल गांव चुने हैं, ऐसा ही एक गांव है बनखेड़ी-
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 53 किमी की दूरी पर बसे गांव बनखेड़ी। फोटो: राकेश कुमार मालवीय
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 53 किमी की दूरी पर बसे गांव बनखेड़ी। फोटो: राकेश कुमार मालवीय
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर किसानों की आय दोगुनी हो जाए। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अलग-अलग स्तर पर योजनाएं चल रही हैं। इनमें से एक बड़ी योजना हर जिले में दो "डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज " बनाना, ताकि इन गांवों से सीख लेते हुए जिले के सभी गांवों के किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए। डाउन टू अर्थ ने इनमें से कुछ गांवों की तफ्तीश शुरू की है। इससे पहली कड़ी में आपने पढ़ा, हरियाणा के गुड़गांव जिले के दो गांवों की हकीकत । इसके बाद आपने पढ़ी, बिहार के भागलपुर जिले के गांव गंगा करहरिया की रिपोर्ट, आज पढ़ें मध्यप्रदेश के एक मॉडल गांव की कहानी- 

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 53 किमी की दूरी पर बसा गांव है बनखेड़ी। राजधानी से गांव तक पहुंचने में एक मीटर भी कच्ची सड़क नहीं मिलती। यहां 246 परिवारों में 1116 लोग रहते हैं। अमरावद बांध से निकली नहर गांव को दो हिस्सों में बांटती है। यहां प्रवेश करते ही पंचायत, स्कूल, आंगनवाड़ी भवन नजर आते हैं। साक्षरता दर प्रदेश से तकरीबन छह अंक ज्यादा है। ज्यादातर गांववासियों की आजीविका किसानी है। कुछ लोग नौकरी में भी हैं। 

गांव से पांच किमी दूर कृषि विज्ञान केंद्र है। यह केंद्र यहां मार्च 2004 से काम कर रहा है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के मकसद से केंद्र ने बनखेड़ी को मॉडल विलेज के रूप में चुना है। किसानों को केंद्र की गतिविधियों के बारे में तो जानकारी हैलेकिन आय दोगुनी करने के बारे में उन्हें जानकारी नहीं है। ऐसी कोई बड़ी बैठक या कार्यक्रम भी नहीं हुआ। गांव में ऐसा कोई बोर्ड भी नजर नहीं आया, जिससे यह समझा जा सके कि दो साल बाद यह गांव आय को दोगुनी करके दिखा देगा। किसानों को भी इस बात का भरोसा कम है। 

हमारी मुलाकात नंदलाल लोधी से हुई। छह एकड़ के किसान हैं। इस साल खरीफ में उन्होंने धान की फसल ली, जिसमें उन्हें कुल तीस हजार रुपए का फायदा हुआ। नंदलाल कहते हैं कि पहले की तुलना में उत्पादन तो बढ़ा है, लेकिन लागत डीजल, खादबीज और दवाई का खर्चा इतना बढ़ गया है, कि लाभ तो वहीं का वहीं है। जब सालों पहले दसबारह क्विंटल पिसी होती थी तब भी यही लाभ था और अब भी लाभ है, बात लेदेकर बराबर है। 

उनके बेटे जगदीश लोधी कहते हैं कि आय दोगुनी करने का एक ही तरीका है एमएसपी में बढ़ोत्तरी, लेकिन एमएसपी तो बढ़ता नहीं। केवीके से उन्हें जानकारी जरूर मिलती है, पर आय दोगुनी हो जाने का आत्मविश्वास उन्हें भी नहीं है।

किसान रघुवीर सिंह भदौरिया बताते हैं कि जब उन्होंने 2016 में अपने 9 एकड़ के खेत में 21 क्विंटल धान पैदा करी थी तब उन्हें 4500 रुपए का रेट मिला था, इस साल उन्होंने 51 क्विंटल धान पैदा करती है और रेट 2100 से ज्यादा नहीं ​चल रहा। इससे वह खासे दुखी हैं।

नंदलाल लोधी को लॉकउाउन के कारण टमाटर खेत में सड़ाना पड़ा। उनका सौ क्विंटल टमाटर खेत में ही सड़ गया। कुछ माल बिका तो 300 रुपए कैरेट का रेट मिला, और अब जब किसान के पास टमाटर नहीं है तो वह 1100 रुपए प्रति कैरेट बिक रहा हैं उनका मानना है कि किसानों का फायदा नहीं होता, केवल व्यापारियों का ही फायदा मिलता है। 

सरपंच कल्याण सिंह लोधी कहते हैं कि केंद्र वाले तो बुलात भी हैं, नाश्ता भी करात हैं, और किसान भी सोचत है कि आय डबल हो जाए, पर हो कहां से जाए। वह उल्टे हमसे सवाल करते हैं कि आप ही बताओ प्रधानमंत्री ने छह हजार रुपए दए और लगे हाथ डीजल के रेट भी बढ़ा दए, तो डबल हो जाएगी। वह कहते हैं कि कई बार सिर्फ फोटो खिंचाने के लिए खिचाबे के लाने कार्यक्रम होत है।

गांव के युवा दीपक लोधी का कहना है कि जिस मकसद से किसी गांव को गोद लिया जाता है, पर वह इस तरह से लागू नहीं हो पाता कि मकसद पूरा हो सके। जैसे कृषि विज्ञान केंद्र ने बनखेड़ी को गोद तो ले लिया, लेकिन इसके लिए योजनाबदध काम नहीं हुआ है। 

केंद्र कभीकभार महिला समूह की मीटिंग आंगनवाड़ी में करता है। महिलाओं को मिर्ची, टमाटर, भटा के पौधे भी दिए जाते हैं, लेकिन इस साल कोरोना में कोई भी मीटिंग नहीं हो पाई है।   

हमीर सिंह लोधी के ने 25 डिस्मिल रकबे में लहसुन और टमाटर लगाया है। वह कृषि विज्ञान केंद्र में नियमित जाते हैं और वहां की जानकारी को जरूरी भी मानते हैं। हालांकि उनके पास अपनी जमीन नहीं है, पर वह खोट लेकर तीस एकड़ में खेती कर रहे हैं। उनका कहना है कि उनकी आय में डयोढ़ा का इजाफा हुआ है और यह दोगुनी भी हो जाएगी।

यहां से चालीस किमी दूर गैरतगंज के पास घाना गांव को कृषि विज्ञान केंद्र ने न्यूट्री विलेज के रूप में चुना है। पानबाई ने बताया कि कुछ समय खेत से मिट्टी के नमूने लेकर गए थे, लेकिन लौटकर नहीं आए, न कोई जवाब दिया। 

मनबाई अहिरवार ने बताया​ कि एक बार टमाटर और पपीते के चारचार पौधे देकर गए थे, जो सूख गए। उसके बाद उन्हें कुछ नहीं मिला। उन्हें नहीं पता कि उनके गांव में किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कुछ खास किया जा रहा है। 

किसान कल्याण सिंह देवजी और शंकलाल अहिरवार ने बताया कि बीज दिया, लेकिन उन्हें इसके रुपए देने पड़े और उसकी कोई रसीद भी नहीं मिली। इन किसानों को पिछले साल किसान सम्मान निधि की तीनों किस्त मिली थीं, पर इस साल अब तक केवल एक बार पैसा आया है। जबकि इस साल सोयाबीन की फसल खराब होने से उन्हें तीस हजार रुपए का घाटा हुआ है। अब उनकी उम्मीद गेहूं की फसल से है, इस पर अब तक 15 हजार रुपए खर्च कर चुके हैं।

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