जगह: झडौदा कलां
समय : 9:30 से 1:30 बजे
26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली कवर करने के लिए मैं सुबह 8 बजे दक्षिण दिल्ली से रवाना हुआ। मुझे टीकरी बॉर्डर पहुंचना था। जानकारी मिली थी कि किसान सुबह 10 बजे से अपना मार्च शुरू करेंगे, इसलिए मैं इससे पहले वहां पहुंचकर कुछ किसानों से बात और फेसबुक लाइव करना चाहता था।
नजफगढ़ होते हुए टीकरी बॉर्डर जाने की हमारी योजना थी। लेकिन हम जैसे ही नजफगढ़ पहुंचे टीकरी बॉर्डर जाने वाले रास्ते पर भारी बैरिकेडिंग मिली। यहां थोड़ी- थोड़ी दूर पर बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी तैनात थे। उनकी हलचल और संख्या को देखकर लग रहा था कि ट्रैक्टर रैली रास्ते से गुजरने वाली है। पुलिस उस रास्ते से किसी वाहन को जाने की इजाजत नहीं दे रही थी। अब हम ढांसा रोड पर निकले और वहां से कोई वैकल्पिक रास्ता खोजने लगे।
हम गांवों के रास्तों से होते हुए सुबह साढ़े नौ बजे झडौदा कलां गांव पहुंच गए। आगे रास्ता बंद था और गांव से किसानों का ट्रैक्टर मार्च निकल रहा था। गांव पहुंचकर पता चला कि करीब एक घंटे से किसानों का ट्रैक्टर मार्च जारी है। इसका मतलब यह हुआ कि किसानों का मार्च करीब साढ़े आठ बजे ही गांव में शुरू हो चुका था। टीकरी बॉर्डर गांव से करीब 5 किलोमीटर दूर था।
झडौदा कलां दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र का गांव है। यहां से कुछ दूर जाने पर हरियाणा की सीमा है। गांव में रैली के प्रति काफी उत्साह का माहौल था। ग्रामीण अपने जीवन में पहली बार इस प्रकार की रैली के गवाह बन रहे थे। थोड़ी-थोड़ी दूर दिल्ली पुलिस के जवान पूरी मुस्तैदी के साथ डटे थे। गांव में युवा, बच्चे और बुजुर्ग खाट व कुर्सियों में बैठकर किसान रैली का लुत्फ उठा रहे थे।
एक घर के सामने बैठे बुजुर्ग और युवाओं से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि उन्हें टेलिविजन पर आने वाली गणतंत्र दिवस परेड से ज्यादा आनंद किसानों की ट्रैक्टर परेड में आ रहा है। उन्होंने किसानों की परेड को ही असली परेड बताया। उनका कहना था कि वे रैली में शामिल किसानों के आंदोलन का समर्थन करते हैं और सरकार को उनकी बात मान लेनी चाहिए। उनका कहना था कि कोई बेवजह अपना घर छोड़कर ठंड में दो महीने तक बॉर्डर पर क्यों बैठेगा?
अब हम रैली में किसानों से बात करने की कोशिश करने लगे। अधिकांश किसान ट्रैक्टर ट्रॉलियों में सवार थे लेकिन कुछ किसान पैदल मार्च भी कर रहे थे। अपने समूह के साथ पैदल चल रहे ऐसे ही एक किसान चरण सिंह ने बताया कि हमें कोई जल्दबाजी नहीं है। हम लंबे आंदोलन के लिए तैयार हैं।
पंजाब के फरीदकोट से आए चरण सिंह ने बताया कि दिल्ली की सीमा पर उन्होंने छह महीने का राशन रखा है, लेकिन अब तक उस राशन का इस्तेमाल नहीं हो पाया है। हरियाणा के स्थानीय लोगों से इतना सहयोग और खाने की सामग्री मिल जाती है कि वह अपने सामान को खोल भी नहीं पाए हैं। केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के प्रति गुस्सा जाहिर करते हुए उन्होंने बताया कि जिस तरह मंडी व्यवस्था बिहार में खत्म की गई है, नए कानून पंजाब में भी मंडी व्यवस्था खत्म कर देंगे।
उन्होंने बताया कि सरकारी मंडी से बाहर खरीदारी होगी तो व्यापारी शुरू में मंडी से अधिक कीमत देंगे। कुछ साल तक वे अच्छी कीमत देंगे जिससे मंडी में कारोबार खत्म हो जाएगा, व्यापारी अपनी दुकान बंद देंगे, मजदूर चले जाएंगे। इसके बाद मंडी से बाहर की खरीद में बड़े व्यापारियों का एकाधिकार हो जाएगा और वे किसानों को बहुत कम कीमत देंगे।
वह कहते हैं कि सरकार खुली मंडी की बात करती है लेकिन किसानों के लिए मंडी अब भी खुली हुई है। यही वजह है कि हिमाचल का सेब और नासिक की प्याज पूरे देश में बिकती है। उन्होंने बताया कि सरकार नए कानून के जरिए सरकारी मंडी में होने वाली खरीद को बंद करके किसानों को बड़े लोगों के हवाले करना चाहती है।
पंजाब के बरनाला से आए हरजिंदर सिंह ने बताया कि सरकार के काले कानूनों के विरोध में हम टीकरी बॉर्डर पर बैठे थे। उन्होंने माना कि तीनों कानून किसानों की मौत का वारंट हैं और जब तक सरकार कानून वापस नहीं लेती, संघर्ष चलता रहेगा। उन्होंने बताया कि सरकार भारतीय खाद्य निगम और मार्कफेड जैसी सरकारी एजेंसियों को खत्म कर कारपोरेट घरानों को खरीद का अधिकार दे रही है। ये लोग अपनी मर्जी से जिंस को खरीदेंगे, उसे स्टोर करेंगे और फिर मनमाने दाम पर बेचेंगे।
हमने रैली में पैदल चल रहे पंजाब के कुछ और किसानों से बात की और सभी ने माना कि नए कानून पंजाब की मंडी व्यवस्था को खत्म कर देंगे और किसानों को इसकी भारी कीमत चुकानी होगी। अधिकांश किसानों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रार्थना की कि वे किसानों के हित में कानूनों को वापस ले लें। एक किसान ने बताया कि रैली में लाखों की संख्या में ट्रैक्टर शामिल हैं, इसलिए पूरी रैली को गुजरने में शायद रात हो जाए।
हम पैदल चल रहे किसानों के साथ चलकर उनसे बातचीत कर रहे थे। रास्ते में हमें कुछ बच्चे और महिलाएं दिखीं जो मार्च में शामिल किसानों को पानी पिला रही थीं। उन्होंने बताया कि वे कानून के बारे में तो कुछ नहीं कह सकतीं लेकिन पानी पिलाकर अपना सेवा धर्म जरूर निभा सकती हैं। पानी पिला रहे बच्चे काफी जोश में थे। किसानों की परेड उन्हें काफी रास आ रही थी।
मैं करीब चार घंटे तक झडौदा कलां गांव और उसके आसपास रहा। किसानों का ट्रैक्टर मार्च बीच-बीच में जाम के कारण रुक रहा था। इन चार घंटों में हमने एक भी बार अनुशासनहीनता नहीं देखी। ट्रैक्टर के साथ लगी ट्रॉलियों में रोजमर्रा की जरूरतों का सामान था। किसानों के ट्रैक्टर एक-दूसरे के पीछे एकदम सीधी लाइन में धीरे-धीरे चल रहे थे। बीच-बीच में कुछ बाइक और कार में सवार किसान जरूर लाइन तोड़ते नजर आए। लेकिन कुल मिलाकर यहां किसानों का मार्च एकदम शांतिपूर्ण था। कोई भी स्थानीय ग्रामीण किसानों से नाराज या असंतुष्ट नजर नहीं आया। रैली में शामिल किसान केंद्र सरकार के खिलाफ नारे लगाकर कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे थे।