
28 अप्रैल 2025 से स्विट्जरलैंड के जिनेवा में केमिकल सेफ्टी समिट शुरू होने से कुछ रोज पहले भारतीय विशेषज्ञों ने मांग की है कि भारत में अभी भी व्यापक रूप से उपयोग हो रहे क्लोरपिरिफोस पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए। यह एक विषैला कीटनाशक है, जो 40 से अधिक देशों में प्रतिबंधित हो चुका है।
28 अप्रैल से 9 मई तक जिनेवा में कांफ्रेसेज ऑफ द पार्टीज टू द बेसल, रोटरडम और स्टॉकहोम कंवेंशन (बीआरएस कॉप) में दुनिया भर के नीति निर्माता व वैज्ञानिक एकत्र होंगे। ये सम्मेलन बहुपक्षीय पर्यावरणीय समझौते हैं, जिनका सामान्य उद्देश्य मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को हानिकारक रसायनों और कचरे से बचाना है।
क्लोरपिरिफोस को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मध्यम दर्जे का हानिकारक की श्रेणी में डाला है। इसका उपयोग भारत में विभिन्न फसलों पर किया जाता है, जो किसानों, उपभोक्ताओं, आगामी पीढ़ियों और पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए गंभीर खतरा बन गया है।
आगामी बेसल कन्वेंशन की 17वीं बैठक, रोटरडम कन्वेंशन की 12वीं बैठक और स्टॉकहोम कन्वेंशन की 12वीं बैठक शामिल जिनेवा में एक के बाद एक आयोजित होंगी।
इससे ठीक पहले पेस्टीसाइड एक्शन नेटवर्क (पेन) इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एडी दिलीप कुमार ने कहा कि अब निर्णायक कार्रवाई का समय है।
उन्होंने कहा, “दुनिया को अब क्लोरपिरिफोस पर वैज्ञानिकों की राय की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। यह अविकसित बच्चों के दिमाग को नुकसान पहुंचाता है, जिसे न्यूरोटॉक्सिसिटी कहा जाता है। इसकी वजह से प्रजनन में विषाक्तता फैल सकती है। इसकी क्षमता हजारों मीलों तक यात्रा करने की है, जो सबसे दूरस्थ पारिस्थितिकी तंत्रों को भी प्रदूषित कर सकता है।”
पेन इंडिया ने रोटरडम कन्वेंशन के तहत क्लोरपिरिफोस को अनुच्छेद III में शामिल करने की सिफारिश की है, जो हानिकारक रसायनों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से पहले सहमति की आवश्यकता होती है। संगठन ने स्टॉकहोम कन्वेंशन के पक्षकारों से क्लोरपिरिफोस को अनुच्छेद-ए के तहत सूचीबद्ध करने की अपील की है, जो वैश्विक प्रतिबंध की मांग करता है।
हालांकि इस प्रावधान के तहत सामान्यत: छूट दी जाती है, लेकिन पेन इंडिया ने सुरक्षित विकल्पों की उपलब्धता का हवाला देते हुए कुल प्रतिबंध की मांग की है। हालांकि भारत में 18 फसलों पर क्लोरपिरिफोस के उपयोग की मंजूरी है। 2022 की एक रिपोर्ट में भारत भर में क्लोरपिरिफोस और पैरा-क्वाट जैसे खतरनाक रासायनिक पदार्थों के बिना अनुमोदन और अवैध उपयोग का खुलासा हुआ था।
स्टॉकहोम कन्वेंशन, जिसे 2001 में अपनाया गया था, का उद्देश्य स्थायी जैविक प्रदूषकों को समाप्त या प्रतिबंधित करना है — ऐसे रसायन जो पर्यावरण में बने रहते हैं, वन्यजीवों और मनुष्यों में जैविक संचय करते हैं और दीर्घकालिक पारिस्थितिकी और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने का कारण बनते हैं।
बीआरएस कॉप में क्लोरपिरिफोस के अलावा अन्य कीटनाशकों जैसे पैरा-क्वाट, एसीटोच्लोर, कार्बोसल्फान, आईपीरोडियोन, मेथिल ब्रोमाइड और फेन्थियॉन को रोटरडम कन्वेंशन के अनुच्छेद III में जोड़ने पर विचार करने की संभावना है। यह कदम कीटनाशकों के वैश्विक व्यापार में पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत करेगा।
भारत के पब्लिक पॉलिसी एक्सपर्ट डॉ. नरसिंह रेड्डी डोंठी ने कहा, “बीआरएस कन्वेंशन ने चुपचाप अपने काम को विज्ञान और सही सलाह के आधार पर किया है। मुझे लगता है कि इन कन्वेंशनों को ज्यादा संसाधनों की जरूरत है, ताकि रासायनों की जांच, लक्ष्य तय करना और एक ऐसा सिस्टम बनाना संभव हो सके, जो वास्तविक समय में जानकारी दे सके। सरकारों, खासकर भारत को, इन प्रक्रियाओं को अपनाना चाहिए, ताकि दुनिया भर में किए जा रहे काम को और बेहतर किया जा सके।”
हालिया डेटा से यह साफ हो रहा है कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ कदम मिलाने की जरूरत है। 568 कीटनाशक पदार्थों को एक या एक से ज्यादा देशों ने बंद कर दिया है, लेकिन इनमें से कई भारत में अभी भी इस्तेमाल हो रहे हैं। इससे यह जरूरी हो जाता है कि भारत अपनी नीतियों को सुधारें और अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के अनुसार काम करें।
इस साल की चर्चा को एक बड़ा मौका माना जा रहा है। एक्सपर्ट्स ने भारतीय नीति निर्माताओं, बीआरएस कन्वेंशनों के सदस्य देशों और उद्योग के लोगों से अपील की है कि वे खतरनाक कीटनाशकों जैसे क्लोरपिरिफोस को छोड़कर सुरक्षित और टिकाऊ विकल्पों की ओर बढ़ें।
थानल के डायरेक्टर और बीआरएस कन्वेंशनों में खतरनाक कीटनाशकों को खत्म करने के अभियान के प्रमुख सी जयकुमार ने कहा, “भारत को एक अलग रास्ता चुनना चाहिए, जो रासायनिक दवाइयों पर निर्भर रहने के बजाय इंसान की जिंदगी को प्राथमिकता दे।”
पेन यूके के इंटरनेशनल प्रमोशन मैनेजर जागो वाडली ने कहा कि देशों को अब क्लोरपिरिफोस और पैरा-क्वाट जैसे खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल रोक देना चाहिए और वैज्ञानिक तरीके से काम करना चाहिए।