फाइल फोटो: विकास चौधरी
फाइल फोटो: विकास चौधरी

डीएपी उर्वरक की कमी - राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा

फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, 1 अक्टूबर 2024 तक केवल 16 लाख मीट्रिक टन डीएपी उर्वरक का स्टॉक उपलब्ध था। यह कुल आवश्यकता का केवल 29 प्रतिशत है
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गेहूं की बुआई समेत रबी फसलों का सीजन शुरू होते ही देशभर में डीएपी खाद कमी की गूंज सुनाई दे रही है। किसान खेती के कार्य छोड़कर डीएपी खाद खरीदने के लिए लाइन में लगने को मजबूर हैं। लेकिन, सरकार लगातार गलत बयानों से किसानों को गुमराह कर रही है कि देश मे डीएपी खाद की कोई कमी नहीं है. हरियाणा में डीएपी खाद के लिए किसानों द्वारा आत्महत्या व विरोध प्रदर्शन करने और पुलिस स्टेशनों में डीएपी खाद बेचने जाने जैसै दुखदायी खबरें रोजाना अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं।

गेहूं फसल की सालाना बुआई अक्टूबर- नवंबर के महीने में लगभग 31.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र पर की जाती है, जिससे औसतन 112 मिलियन टन वार्षिक गेहूं उत्पादन होता है। केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री ने 9.12.2022 को लोकसभा में लिखित जवाब में बताया कि देश को रबी सीजन के लिए 55.38 लाख मीट्रिक टन डीएपी उर्वरकों की आवश्यकता है और जिसमें से 33.74 लाख मीट्रिक टन डीएपी उर्वरक 1 अक्टूबर से 5 दिसंबर तक रबी सीजन की बुवाई अवधि के दौरान बेचा गया।

फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, 1 अक्टूबर 2024 तक केवल 16 लाख मीट्रिक टन डीएपी उर्वरक का स्टॉक उपलब्ध था। यह कुल आवश्यकता का केवल 29 प्रतिशत है जो स्पष्ट रूप से सरकार की झूठी बयानबाजी को उजागर करता है और देश में डीएपी उर्वरक की मौजूदा भारी कमी के संकट को दर्शाता है।

रासायनिक उर्वरकों और सिंचाई सुविधाओं के साथ गेहूं की उन्नत बौनी किस्मों को अपनाने से भारत ने पिछले छह दशकों के दौरान गेहूं उत्पादन में दस गुना वृद्धि की है। लगातार बढ़ती जनसंख्या के बावजूद खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की गई और उपरोक्त हरित क्रांति प्रौद्योगिकियों को अपनाने के कारण भारत एक आयातक देश से गेहूं का निर्यातक बन गया।

लेकिन 1.4 अरब लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने मई 2022 में गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया जो भारत की नाजुक खाद्य सुरक्षा को दर्शाता है। इसके अलावा, वर्ष-2023 और 2024 में 37 मिलियन टन के खरीद लक्ष्य के मुकाबले केवल 26.2 और 26.6 मीट्रिक टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई। जिससे स्पष्ट होता है कि भारत मे गेहूं का वार्षिक उत्पादन मांग और आपूर्ति के लगभग बराबर ही है। सरकार की गलत नीतियों के कारण डीएपी उर्वरक की आपूर्ति में कृत्रिम कमी भारत की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है।

डीएपी उर्वरक - खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण

डीएपी (डाइ-अमोनियम फॉस्फेट) भारतीय किसानों के बीच पसंदीदा खाद है जिसमें 18 प्रतिशत नाइट्रोजन और 46 प्रतिशत फॉस्फोरस (पी2ओ5) जैसे प्राथमिक मैक्रो-पोषक तत्व होते हैं जो जड़ों के विकास, टिलर (कल्ले) को बढ़ाने और पौधे के तने को मजबूत करने के लिए आवश्यक होते हैं और पैदावार को बढाते है। डीएपी खाद का प्रयोग केवल बुआई के समय पर ही किया जाता है।

आईसीएआर और विभिन्न कृषि विश्वविधालायो द्वारा किए गए क्षेत्रीय प्रयोगों के आंकड़ों से पता चला है कि प्रति एकड़ 50 किलोग्राम की दर से डीएपी की अनुशंसित खुराक का उपयोग करने से गेहूं और धान फसल की उपज 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसीलिए, डीएपी उर्वरक की कमी से गेहूं फसल सहित रबी सीजन की सभी फसलों की पैदावार पर एक तिहाई तक प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना है।

भारत डीएपी उर्वरक की कुल खपत का केवल आधा हिस्सा ही उत्पादित कर रहा है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार 1970 से ही रासायनिक उर्वरकों के उत्पादन और आयात पर सब्सिडी दे रही है। लेकिन हाल के वर्षों में, वैश्विक दबाव से उर्वरक पर सब्सिडी को 35 प्रतिशत कम कर दिया गया है, जैसा कि केंद्रीय बजट में अनुपूरक मांग से स्पष्ट है।

इसके अनुसार वर्ष 2022-23, 2023-24 और 2024-25 में रासायनिक उर्वरकों की सब्सिडी के लिए क्रमशः 2,51,340 करोड़ रुपये, 1,88,901 करोड़ रुपये और 1,64,102 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं। परिणामस्वरूप, राष्ट्रीय खाद संघ को डीएपी उर्वरक सहित सभी रासायनिक उर्वरकों के आयात और उत्पादन में भारी कमी करने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जिसके बुरे परभाव से गेंहू उत्पादक मुख्य राज्यो पंजाब, हरियाणा आदि मे डीएपी उर्वरक का संकट गम्भीर बन गया। जच क देश की खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकता हैं।

इस प्रकार, सरकार के गलत नीतिगत निर्णय ने खुले बाजार में डीएपी उर्वरक की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है जो देश में वर्तमान डीएपी उर्वरक संकट का प्राथमिक कारण है। इसके अलावा, पारंपरिक रासायनिक उर्वरक के विकल्प के रूप में तरल नैनो डीएपी और नैनो यूरिया को बढ़ावा देना वैज्ञानिक तौर पर गलत नीति है और इन बेकार पदार्थो की जबरन बिक्री सरकार द्वारा किसानों की खुली लूट के समान है।

क्योंकि प्रतिष्ठित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के शोध में, पारंपरिक उर्वरकों के विकल्प के रूप में उपयोग किए जाने वाले नैनो डीएपी और नैनो यूरिया से पौधों की ऊंचाई, पोषक तत्व और गेहूं फसल की उपज में एक तिहाई से अधिक की कमी देखी गई है, जो अंततः राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हो सकता है। इसलिए, वैज्ञानिक नीतिगत मामलों जैसे डीएपी उर्वरक के उत्पादन और उपलब्धता और नैनो डीएपी के उपयोग आदि में सरकार को तकनीकी रूप से अक्षम प्रशासनिक नौकरशाही के बजाय सक्षम वैज्ञानिकों पर जयादा भरोसा करना चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी।

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