फाइल फोटो: सीएसई
फाइल फोटो: सीएसईफोटो साभार: सीएसई

पराली दहन पर अंकुश: किसान और पर्यावरण हितैषी समाधान की अनदेखी क्यों?

सरकारी योजनाओं के तहत लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करके पराली को बंडल बनाकर उद्योगों तक पहुंचाने की योजना अव्यावहारिक और पर्यावरण हितैषी नहीं है
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हर वर्ष सितंबर से नवंबर के बीच उत्तर भारत में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन जाती है। इसमें सबसे बड़ा योगदान धान की फसल कटाई के बाद खेतों में पराली जलाने से होता है। हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह प्रथा न केवल पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुँचाती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता घटाने और मानव स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पैदा करने का कारण भी बनती है। बावजूद इसके कि सरकार पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाती है और किसानों पर जुर्माना एवं एफआईआर तक करती है, स्थिति में कोई ठोस सुधार नहीं दिखता।

सरकारी प्रयास और उनकी सीमाएं

हरियाणा सरकार ने पराली दहन रोकने के लिए कई योजनाएं और जागरूकता शिविर चलाए हैं। किसानों के लिए ‘जीरो बर्निंग’ का लक्ष्य रखा गया है। नियमों के तहत पराली जलाने पर किसानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाती है, जुर्माना लगाया जाता है और एमएफएमबी रिकॉर्ड पर रेड एंट्री की जाती है, जिससे वे अगले दो सीजन तक मंडियों में अपनी फसल नहीं बेच पाते।

इसके बावजूद, पराली दहन की घटनाएंं रुक नहीं पाईं। कारण स्पष्ट है – किसानों के पास पराली प्रबंधन के लिए व्यावहारिक और सस्ते विकल्प नहीं हैं। सरकारी योजनाओं के तहत लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करके पराली को बंडल बनाकर उद्योगों तक पहुंचाने की योजना अव्यावहारिक और पर्यावरण हितैषी नहीं है। एक करोड़ टन पराली को 30 करोड़ बंडल बनाकर सड़क मार्ग से ढोने में करोड़ों लीटर डीजल खर्च होता है। यह न केवल महंगा है, बल्कि प्रदूषण बढ़ाने वाला भी है।

सर्वोत्तम समाधान: खेत में ही पराली का प्रबंधन

धान पराली का सबसे बेहतर और पर्यावरण हितैषी समाधान यह है कि इसे खेत में ही जैविक खाद में बदला जाए। इसके लिए किसानों को धान की कटाई के बाद प्रति एकड़ 30 किलो यूरिया का छिड़काव कर मोल्ड बोर्ड प्लाउ (एमबी पल्ग ) से पराली को मिट्टी की गहरी परतों में दबाना चाहिए। यह विधि मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखती है और अतिरिक्त खर्च नहीं बढ़ाती।

लेकिन इस समाधान को अपनाने के लिए जरूरी है कि धान की कटाई सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (सुपर एसएमएस) लगे हुए कम्बाइन हार्वेस्टर से हो। यह मशीन पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर खेत में फैला देती है, जिससे उसे आसानी से मिट्टी में मिलाया जा सकता है।

कानूनी आदेश और उनकी अनदेखी

हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 31-ए के तहत 2018 में स्पष्ट निर्देश दिए थे कि हरियाणा में किसी भी कम्बाइन हार्वेस्टर को सुपर एसएमएस के बिना धान की कटाई की अनुमति नहीं दी जाएगी। कृषि और किसान कल्याण विभाग ने भी इन निर्देशों को लागू करने का आदेश जारी किया था।

दुर्भाग्यवश, इन आदेशों को पिछले सात वर्षों से धरातल पर लागू नहीं किया गया। प्रशासनिक लापरवाही और हार्वेस्टर मालिकों के दबाव में यह पर्यावरण हितैषी नीति कागजों में ही सिमटी रही। इतना ही नहीं, हरियाणा सरकार ने इन आदेशों की जानकारी सर्वोच्च न्यायालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी प्रस्तुत नहीं की, जबकि ये संस्थान पराली दहन से होने वाले प्रदूषण पर लगातार सुनवाई कर रहे हैं।

सख्त अनुपालन और किसानों की मदद

पराली दहन रोकने के लिए आवश्यक है कि हरियाणा के सभी धान उत्पादक जिलों में सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम लगे बिना किसी भी कम्बाइन हार्वेस्टर को धान की कटाई की अनुमति न दी जाए। यह आदेश तुरंत प्रभाव से लागू होना चाहिए।

जब सुपर एसएमएस लगे कम्बाइन से कटाई होगी, तब किसान आसानी से यूरिया का छिड़काव और एमबी पल्ग से पराली को मिट्टी में दबाकर जैविक खाद बना सकेंगे। इससे न केवल पराली जलाने की समस्या खत्म होगी, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ेगी और प्रदूषण पर नियंत्रण मिलेगा।

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